भारत सारथी/ कौशिक

नारनौल। दिल्ली में जंतर मंतर पर चल रहे खिलाड़ियों के आंदोलन और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह व कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच चल रही तनातनी को भारतीय कुश्ती महासंघ पर दबदबे की जंग से जोड़कर देखा जाने लगा है। पहलवानों के धरने के चलते सात मई को होने वाले भारतीय कुश्ती महासंघ के चुनाव टाल दिए गए हैं। अब इन चुनाव के लिए नए सिरे से शेड्यूल घोषित होगा, लेकिन भारतीय कुश्ती महासंघ पर कब्जे के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश की लाबी जबरदस्त तरीके से एक दूसरे की घेराबंदी में जुट गई है।

2011 में दीपेंद्र सिंह हुड्डा के पैर वापस खींच लेने की वजह से बृजभूषण शरण सिंह भारतीय कुश्ती महासंघ के पहली बार अध्यक्ष बने थे। उसके बाद 2015 और 2019 में भी बृजभूषण भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रहे हैं। महासंघ के नियमों के चलते अब बृजभूषण शरण चुनाव नहीं लड़ सकते। माना जा रहा है कि वह महासंघ में उपाध्यक्ष पद पर काबिज अपने बेटे करण सिंह को अध्यक्ष पद का चुनाव लड़वाना चाहते हैं, इसलिए दबदबे की लड़ाई रोचक होती जा रही है।

मई में प्रस्तावित चुनाव में हालांकि कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के स्वयं चुनाव लड़ने की संभावना बिल्कुल भी नहीं है, लेकिन वह चाहते हैं कि जिस हरियाणा के पहलवान सबसे अधिक पदक जीतकर लाते हैं, भारतीय कुश्ती महासंघ में उनका दबदबा पूरी तरह से कायम रहे।

बृजभूषण के इस्तीफे की मांग

पहलवानों ने हरियाणवी खिलाड़ी विनेश फोगाट के नेतृत्व में भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। यौन शोषण के आरोप लगाते हुए बृजभूषण सिंह के इस्तीफे की मांग की जा रही है, लेकिन वह किसी सूरत में इसके लिए तैयार नहीं हैं। बृजभूषण शरण सिंह ने खिलाड़ियों के आंदोलन का पूरा ठीकरा दीपेंद्र सिंह हुड्डा पर फोड़ दिया है।

उनका कहना है कि विरोध करने वाले खिलाड़ी एक ही प्रदेश (हरियाणा) और एक ही जाति (जाट) विशेष के हैं। दीपेंद्र सिंह हुड्डा को यह बात काफी खराब लगी है। उन्होंने खिलाड़ियों को जाति और प्रदेश में बांटने के बृजभूषण सिंह के आरोपों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। बृजभूषण सिंह उत्तर प्रदेश के हैं और दीपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के हैं।

इसलिए चली उत्तर प्रदेश बनाम हरियाणा की लड़ाई

आंदोलन के बहाने भारतीय कुश्ती महासंघ में वर्चस्व की लड़ाई उत्तर प्रदेश बनाम हरियाणा हो चली है। इस लड़ाई को आगामी चुनावों में दोनों दलों की रणनीति से भी जोड़कर देखा जाने लगा है। जानकार बताते हैं कि यह लड़ाई नई नहीं है। दीपेंद्र हुड्डा और बृजभूषण के बीच टकराव 12 साल पुराना है।

2011-12 में शरण और हुड्डा दोनों भारतीय कुश्ती महासंघ की राजनीति में आमने-सामने थे। महासंघ के अध्यक्ष पद के लिए बृजभूषण चुनाव में उतरे तो सामने दीपेंद्र हुड्डा से उन्हें चुनौती मिली। तब बृजभूषण समाजवादी पार्टी के सांसद थे। सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल को भरोसे में लेकर दीपेंद्र हुड्डा को इस चुनाव में पैर पीछे खींचने के लिए तैयार कर लिया। दीपेंद्र के नामांकन वापस लेते ही बृजभूषण निर्विरोध अध्यक्ष बन गए, जिसके बाद दीपेंद्र हुड्डा ने हरियाणा कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल ली।

भाजपा और कांग्रेस के रणनीतिकार मुस्तैद

बृजभूषण सिंह पर राज्य कुश्ती संघों में अपने लोगों को बिठाने के आरोप हैं। पिछले साल जून में जब नई दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई तो कहासुनी के बाद बृजभूषण सिंह ने हरियाणा कुश्ती संघ को भंग कर दिया। उन्होंने अध्यक्ष की जिम्मेदारी दीपेंद्र हुड्डा से वापस लेते हुए रोहतक के रोहतास नांदल को सौंप दी। यहां से शरण और हुड्डा के बीच टकराव काफी अधिक बढ़ गया। अगले साल चुनाव हैं। इसलिए पहलवानों के बहाने सबकी निगाह जाट वोट बैंक पर टिकी हुई है।

कांग्रेस की तमाम कोशिश के बावजूद भाजपा इस जंग में खुद को कहीं पिछड़ने नहीं देना चाहेगी, इसलिए बताते हैं कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने खिलाड़ियों की बात सुनने के लिए खुद केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से बात की है। इसके बाद भी दोनों खेमों से जबरदस्त राजनीतिक चालें चली जा रही हैं। खुद पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा खिलाड़ियों का समर्थन करने दिल्ली पहुंचे हैं तो अब बृजभूषण और दीपेंद्र एक दूसरे के खिलाफ मजबूती मोर्चेबंदी में लगे हैं, जिस पर दोनों दलों के रणनीतिकारों की निगाह टिकी हुई है।

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