धर्मपाल वर्मा

चंडीगढ़। हरियाणा की राजनीति की बात करें तो आज दो चर्चाएं आम है एक यह कि कॉन्ग्रेस बहुत मजबूत हो रही है और इसका मतलब यह भी लगाया जा रहा है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी कमजोर स्थिति मे है।

पहले कांग्रेस की मजबूती की बात करते हैं । इसमें दो राय नहीं कि जब से कांग्रेस आलाकमान ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को फ्री हैंड दिया है तब से वह अपनी राजनीतिक समझ और परिपक्वता का परिचय देते हुए इस कोशिश में लगे हुए हैं कि पूरे प्रदेश में यह चर्चा हो कि कांग्रेस मजबूत हो रही है । इसके लिए उन्होंने एक फार्मूला आरंभ से अख्तियार किया और वह है दूसरे दलों से नेताओं को विश्वास में लेने और कांग्रेस में शामिल कराने का। उन्होंने पॉलीटिकल स्टेटस के कई पुराने नेताओं, पूर्व विधायकों, पूर्व मंत्रियों को कांग्रेस में शामिल कराने का अभियान शुरू से जारी रखा है ।इससे कांग्रेस के पक्ष में एक सकारात्मक राय बनी है ।जब भी शक्ति परीक्षण का समय आता है श्री हुड्डा ,अपने सभी अनुयायियों को एक जगह इकट्ठा करके ताकत दिखा देते हैं ।उन्होंने आदमपुर उपचुनाव बेशक जीता ना हो लेकिन सब ने देखा कि हरियाणा के कोने कोने के हुड्डा समर्थक आदमपुर में आकर डट गए थे ।दूसरा यह कि उन्होंने इस चुनाव में अपने दम पर ही काम किया न कुमारी शैलजा को बुलाया, न रणदीप सुरजेवाला को, न किरण चौधरी को ।उन्होंने यह संदेश दे दिया कि जितनी वोट मिली है उन्हें खुद के दम पर मिली है।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस बार कुमारी शैलजा के चुनाव क्षेत्र में जगाधरी में विपक्ष आपके समक्ष कार्यक्रम आयोजित किया। इसमें भी बड़ी हाजिरी थी और प्रदेश के कोने-कोने से उनके समर्थक इस कार्यक्रम में भी पहुंचे थे । उनका अगला कार्यक्रम किरण चौधरी के क्षेत्र भिवानी में रखा गया है और हो सकता है इससे अगला कार्यक्रम कैथल में रणदीप सिंह सुरजेवाला को मध्य नजर रखते हुए रख दिया जाए।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा की लोकप्रियता, कांग्रेस के सरकार बनने की बातें भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के दावे सब जगह हो रहे हैं। यद्यपि अभी चुनाव में 1 वर्ष से भी ज्यादा का वक्त बाकी है परंतु सारी पॉलिटिकल पार्टियां अभी से चुनावी मोड में है और पॉलिटिकल एक्सरसाइज करने में लगी हुई है।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए अच्छी खबर यह है कि उनके समर्थक चुनाव जीतने और सरकार बनने के आसार को लेकर पूरी तरह से सकारात्मक हैं और वह भविष्य में और अधिक ऊर्जा के साथ काम करते नजर आ सकते हैं। लेकिन एक सवाल सबके जहन में यह है कि लोकसभा के चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस बार रोहतक की सीट जीत पाएंगे या नहीं ।यदि इस सीट पर फिर से भारतीय जनता पार्टी काबिज हो गई तो फिर समझा जा सकता है कि हरियाणा में भाजपा एक बार फिर 10 की 10 सीटें जीत जाने की स्थिति में होगी। यदि ऐसा हुआ तो फिर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के आसार कम हो जाएंगे।

अब हम भाजपा की बात करते हैं। कई दिन से चर्चा है कि भारतीय जनता पार्टी ने एक इंटरनल सर्वे कराया‌ था ।जिसमें यह बात सामने आई है कि भाजपा की हालत बहुत पतली है। कुछ लोगों का कहना है कि इस सर्वे में 14 सीटें आने की बात कही गई है। कुछ पहले से आधी मतलब 20 सीटें आने की बात बता रहे हैं। लेकिन हमारा यह मानना है कि भारतीय जनता पार्टी अब भी न्यूनतम 30 सीटों पर खड़ी है ।लेकिन 30 विधायकों से सरकार नहीं बनती।

भाजपा की कमजोरी के कई कारण है।
एक कारण तो यह है कि ऐसा लगता है कि 9 साल के भाजपा के शासन से हरियाणा की जनता छक चुकी है। जेजेपी के गठबंधन के बाद भाजपा का कार्यकर्ता निराश और हताश नजर आ रहा है। महंगाई और बेरोजगारी बढ़ी है और सभी वर्गों के लोग निराश नजर आ रहे हैं। सरकार पर कर्ज बढ़ने की बात बार-बार कहीं जा रही है और हरियाणा सरकार कोई ऐसा जवाब नहीं दे पा रही है कि लोगों की संतुष्टि हो जाए। विपक्ष इस बात को हथियार के रूप में प्रयुक्त कर रहा है।

भाजपा की स्थिति यह है कि पार्टी के हरियाणा के प्रधान ओमप्रकाश धनखड़ की कमजोरी को हरियाणा में भाजपा के भविष्य के साथ जोड़कर भी प्रस्तुत किया जा रहा है और आमतौर पर यह कहकर भाजपा पर तंज कसे जा रहे हैं कि पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष पिछला चुनाव तो हार ही चुका है वह आगे भी नहीं जीत पाएगा। अभय सिंह चौटाला तो मंच से यह बात कहने लगे हैं कि ओमप्रकाश धनखड़ हार से डरकर एक बार फिर हल्का बदलने की तैयारी में है ।वे गुरुग्राम के बादशाहपुर हलके से चुनाव लड़ना चाहते हैं। श्री धनखड़ ने जीवन में एक ही चुनाव जीता है वह भी बादली से और वह भी तब जब उनके मुख्यमंत्री बनने के आसार बताकर चुनाव लड़ा गया था।

श्री धनखड़ पुराने नेता हैं ।भाजपा में बड़े नेताओं में उनके अच्छे संबंध हैं लेकिन पॉलिटिकल मैनेजमेंट में बहुत कमजोर माने जाते हैं। मीडिया में उनका प्रबंधन प्रभावी और कारगर नहीं माना जा रहा। यह कमजोरी भाजपा के लिए इसलिए खतरनाक है कि वे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। धनखड़ की हार की आशंका के दृष्टिगत हरियाणा में लोग यह कहकर भी भाजपा का भविष्य तय कर देते हैं कि आ लिया जनेत का ओड़, जब बनड़े का नाम माडू।

एक बात यह भी सही है कि जहां मुस्लिम मतदाता अमूमन भाजपा को वोट नहीं देते लगभग ऐसी स्थिति जाटों की भी हो गई है। जाट मतदाताओं के बारे में एक प्रचलित राय यह भी है कि बे पार्टी से ज्यादा नेता का अनुसरण करते हैं। बहुत लोग इस विचार से सहमत हैं कि हरियाणा में जाट कांग्रेस पार्टी या उसकी विचारधारा के समर्थक नहीं है लेकिन नेता के कारण कांग्रेस की बात करने लगे हैं । अब जाट लगभग सारे भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ओर जाते नजर आ रहे हैं। यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी मानी जा रही है। खास बात यह भी देखी जा रही है कि अगले चुनाव में जाटों में मत विभाजन बहुत कम हो पाएगा। उधर यह भी खबर है कि गैर जाटों में भी कुछ लोग भाजपा के खिलाफ बोलने लगे हैं और कांग्रेस की चर्चा करते देखे जाने लगे हैं। हरियाणा में राजनीतिक जानकार इस बात का दावा करते हैं कि प्रदेश में एक चुनाव हौच पौच होता है तो दूसरा आंधी तूफान और लहर का , और इस बार लहर का नंबर है और वह लहर कांग्रेस की आएगी।

भाजपा राष्ट्रीय दल है जिसमें टिकट बांटने का कोई सर्वमान्य फार्मूला अप्लाई नहीं होता और गलत टिकटें भी बट जाया करती हैं । पिछले दिनों भाजपा के नेता और सांसद रामचंद्र जांगड़ा ने बकायदा मीडिया में इस सवाल को उठाया था।बेशक इसका खामियाजा भाजपा को 2019 में भुगतना पड़ा परंतु आम राय यह है कि भाजपा इस बार भी बहुत अच्छे तरीके से टिकटें नहीं बांट पाएगी। जबकि प्रतिद्वंदी दल कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा एक सूत्रधार के रूप में नजर आ सकते हैं और भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत के दृष्टिकोण पर ऐसी लिस्ट जारी कराने में सफल हो सकते हैं कि लोग यह कहने को मजबूर हो जाएंगे कि कांग्रेस पार्टी ने टिकट ठीक बाटी हैं।

इसके बावजूद अब भी भारतीय जनता पार्टी के समर्थक तीन चीजों को अपनी जीत का आधार मानकर चल रहे हैं ।एक नरेंद्र मोदी की राजनीतिक सोच और मजबूती ।दूसरे फिर से केंद्र में भाजपा की सरकार बनने की पक्की संभावना । ऐसे लोग हरियाणा में भाजपा के फिर से सत्ता में आने के पीछे एक और बड़ा कारण जाट, गैर जाट का फैक्टर भी बताते हैं और यह कह कर बात समाप्त कर देते हैं कि चुनाव तक कांग्रेस की बागडोर भूपेंद्र हुड्डा के हाथ में रहनी चाहिए ,यही पर्याप्त है। भाजपा की जीत का यही टर्निंग प्वाइंट साबित हो जाएगा। ऐसे लोगों की राय यह है कि जाटों का एकजुट हो जाना भाजपा के लिए चिंता का विषय नहीं है। यदि ऐसा होता है तो इसका सबसे ज्यादा लाभ किसी को होगा तो उस राजनीतिक दल का नाम है भारतीय जनता पार्टी।

दो दो बार लगातार मुख्यमंत्री तो कई और भी रहे पर क्या हैट्रिक और नया रिकॉर्ड बना पाएंगे मनोहर लाल।

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