ताश के पत्ते नहीं अधिकारी ,,,

क्या अधिकारी राजनेताओं के सामने ताश के पत्ते मात्र हैं या जनसेवक ?

-कमलेश भारतीय

क्या अधिकारी राजनेताओं के सामने ताश के पत्ते मात्र हैं या जनसेवक ? यह बात हिसार नगर निगम के कमिश्नर के रूप में ट्रांसफर किये गये रेवाड़ी के उपायुक्त अशोक गर्ग के साथ किये गये अपमानजनक तरीके से बहुत बुरी तरह महसूस हुई । अशोक गर्ग पहले भी हिसार नगर निगम के कमिश्नर रह चुके हैं । इससे पहले हिसार में अतिरिक्त उपायुक्त भी रहे । बहुत ही संवेदनशील , भावुक और जैसे सच्चे जनसेवक होने चाहिएं बिल्कुल उस कसौटी पर खरे उतरने वाले ! निगम में कार्यरत महिलाओं के दर्द को समझा और महिला दिवस मनाने की भव्य स्तर पर शुरूआत की । वही महिलायें और उनकी बच्चियां कार्यक्रम देतीं । कितना सम्मान दिया ! सर्दियां आने पर गरीबों के लिये कंबल, स्वैटर और शाॅलें इकट्ठी कर बांटते । इनके सरकारी आवास में घुसते ही स्वागत् कक्ष में कुछ रैक्स इन कपड़ों से भरे रहते । हर आम आदमी के लिये इनके द्वार हमेशा खुले रहते । बड़े अफसर जैसा रौब दाब दिखाने से कोसों दूर रहते । साहित्य प्रेमी और चिंतक ! क्या और कितनी खूबियां ! फिर भी वे राजनेताओं की आखों में खटकने लगे जैसे कभी एसपी श्रीकांत जाधव खटकने लगे थे और उनकी ट्रांस्फर कर दी गयी थी । अब वे वर्षों बाद एडीजीपी बन कर लौटे हैं और अपने मिशन स्ट्रे कैटल के साथ नशे से युवाओं को बचाने व ट्रैफिक नियमों का पालन करवाने में जुट गये हैं ।

कल अशोक गर्ग को नगर निगम के कमिश्नर पद पर ज्वाइन करना था और वे रेवाड़ी के उपायुक्त का पद छोडकर हिसार आये लेकिन जो ड्रामा हुआ , वह कभी न हुआ पहले । सिर्फ पच्चीस मिनट का ड्रामा ! इससे पहले सामाजिक संस्थाओं ने अशोक गर्ग का फूलों के गुलदस्तों से स्वागत् किया । निगम के आयुक्त प्रदीप दहिया ने भी स्वागत् किया लेकिन होंठ और चाय की प्याली में बहुत अंतर रह गया । इससे पहले कि वे ज्वाइन करते ऊपर से फोन आ गया कि आपने ज्वाइन नहीं करना बल्कि चंडीगढ़ आकर रिपोर्ट करना है । बस , यहीं सवाल उठता है कि अधिकारी क्या ताश के पत्तों जैसे हैं जिन्हें अपनी खुशी के हिसाब से फेंटा जाता है ? क्या पहले सरकार के ध्यान में नहीं था कि वे पहले भी यहां इसी पद पर रह चुके हैं ? उनकी कार्यशैली से यहां के राजनेताओं को अपनी लोकप्रियता का ग्राफ कम होता दिख रहा था । जो सच्चा जनसेवक था ,वह राजनीति के अंगने में खटक रहा था ! मात्र चौबीस घंटे लगे और इससे पहले कि अशोक गर्ग ज्वाइन कर फिर से सिरदर्द बन जायें , ट्रांस्फर करवा कर ही दम लिया ! पर अधिकारी का अपमान क्यों ? क्या अच्छे काम करने का यही सिला दिया ?

अच्छा सिला दिया मेरे काम का !

राजनीति के अंगने में जैसे अशोक खेमका का कोई काम नहीं , वैसे ही अशोक गर्ग भी उनके शिकार हुए हैं ! अब दूसरे अधिकारी भी सोचेंगे कि आराम से नौकरी करनी है या फिर ऐसे सचिवालय या शहर दर शहर अशोक खेमका की तरह ट्रांस्फर होते जाना है अंर ट्रांस्फर्ज का कीर्तिमान बनाना है !

सरकार को पुनर्विचार करना चाहिये ! इससे सरकार की छवि को ही आघात पहुंचा है !

शायद मुझे निकाल कर पछता रहे हों आप
महफिल में इस ख्याल से फिर आ गया हूं मैं !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । 9416047075

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