सावित्रि बाई फुले को है देश की पहली महिला अध्यापिका होने का गौरव: ओम प्रकाश धनखड़
कुप्रथा, अंधश्रद्धा के जाल से समाज को मुक्त कराना चाहते थे महात्मा ज्योति बा फुले: ओम प्रकाश धनखड़
महात्मा ज्योतिबा फुले के मजबूत इरादों से समाज में आया बदलाव: ओम प्रकाश धनखड़

चंडीगढ़, 11 अप्रैल। भारतीय जनता पार्टी हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने कहा कि देश में लड़कियों के लिए पहला विद्यालय खोलने का श्रेय महात्मा ज्योतिबा फुले को जाता है। समाज में शिक्षा को मजबूत हथियार बनाकर महात्मा ज्योतिबा फुले ने बेहतर समाज के निर्माण की नींव रखी थी। विशेषकर महिला शिक्षा को उन्होंने तवज्जो देकर महिलाओं को समाज में मजबूत स्तंभ के रूप में खड़ा किया। सबसे पहले उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रि बाई फुले को शिक्षित किया, जिससे सावित्रि बाई फुले को देश की पहली महिला अध्यापिका होने का गौरव प्राप्त हुआ। यह बात श्री धनखड़ ने महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कही।

धनखड़ ने कहा कि महात्मा ज्योतिबा फुले सामाजिक कुरीतियों को दूर करने और वंचितों, पीड़ितों व महिलाओं की आवाज बनने वाले महान समाज सुधारक, सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे। महान दार्शनिक व महात्मा फुले को उनकी जयंती पर नमन करते हुए श्री धनखड़ ने बताया कि महात्मा फुले समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभव के विरूद्ध थे, उनका मूल उद्देश्य महिलाओं को शिक्षा का अधिकार प्रदान करना, बाल विवाह का विरोध, विधवा विवाह का समर्थन करना रहा है। वे समाज को कुप्रथा, अंधश्रद्धा के जाल से समाज मुक्त करना चाहते थे।

प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोलने का श्रेय ज्योति बा को दिया जाता है। उन्होंने 1848 में लड़कियों के लिए पहली पाठशाला पुणे में खोली। यह वह समय था जब समाज में बेटियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी, तब उन्होंने महिला-पुरूष भेदभाव मुक्त समाज की संरचना की। महात्मा फूले का मानना था कि भारत में राष्ट्रीयता के भावना का विकास तब तक संभव नहीं होगा, जब तक खान-पान और वैवाहिक संबंधों पर जातीय बंधन बने रहेंगे। उन्होंने समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाने का निश्चय किया। उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री बाई फूले को खुद शिक्षा दी और सावित्रि बाई फूले भारत की प्रथम महिला अध्यापिका बनीं।

श्री धनखड़ ने कहा कि देश में छूआछूत खत्म करने और समाज को संतुलित करने में अहम किरदार निभाया। उन्होंने ब्राह्मण पुरोहित के बिना ही विवाह संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से मान्यता भी मिली। समाज की कुरीतियों और फैली परम्पराओं का सच सामने लाने के लिए ज्योतिबा फुले ने गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत आदि पुस्तकें भी लिखीं।

ओमप्रकाश धनखड़ ने बताया कि ज्योतिबा फुले का जीवन का मिशन समाज में सुधार लाना था। सुधारवादी आंदोलनों के जरिए उन्होंने सामाजिक व बौद्धिक स्तर पर लोगों को परतंत्रता से मुक्त कराने का काम किया। उनकी मेहनत से लोगों में नए विचार और नए चिंतन की शुरूआत हुई जो आगे जाकर आजादी की लड़ाई में संबल बनें। महात्मा ज्योतिबा फुले खुद भी फूलों की खेती करते थे और किसानों व पीड़ितों के लिए लगातार संघर्ष करते थे। उनके प्रयासों के कारण सरकार ने एग्रीकल्चर एक्ट पास किया। निर्धन तथा निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने सत्यशोधक समाज 1873 में स्थपित किया। उनकी समाज सेवा देखकर 1888 में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई। 28 नवंबर 1890 को भारतीय समाज एवं जीवन को नई दिशा देने वाले इस महात्मा का निधन हो गया। आज भी उनके दिखाया गया मार्ग समाज के लिए प्रेरणा का काम कर रहा है।

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