हरियाणा के राजनीतिक परिवारों में भी रही वर्चस्व की लड़ाई अशोक कुमार कौशिक परिवारवाद को लेकर आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच भारतीय राजनीति में ऐसे नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है, जिन्हें विरासत में सियासत तो मिली, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा परिवार में बगावत का कारण बन गई। देश की राजनीति में कई ऐसे उदाहरण हैं कि माता या पिता ने जिंदगी भर किसी एक दल का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन पुत्र, पुत्री, बहु या परिवार के अन्य सदस्यों ने दूसरे दलों का दामन थाम लिया। भारत में राजनीतिक परिवारों में बगावत का एक लंबा इतिहास रहा है। इसमें सबसे प्रमुख गांधी-नेहरू परिवार की बहू मेनका गांधी की बगावत थी। परिवार से अलग होकर 1982 में उन्होंने अपने पति संजय गांधी के नाम पर ‘संजय विचार मंच’ गठित कर लिया था। बाद में उसका विलय जनता दल में कर दिया। मेनका ने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था, हालांकि वह असफल रहीं। वर्ष 2004 में उन्होंने अपने बेटे वरुण गांधी के साथ भाजपा का दामन थाम लिया। पिता किसी दल में और बेटा अन्य दल में, इसकी सबसे बड़ी बानगी हरियाणा में देखने को मिलती है। हरियाणा में कभी 3 परिवारों का राजनीति में बोलबाला रहा इसमें चौधरी बंसीलाल चौधरी देवी लाल और भजन लाल का परिवार प्रमुख था। दक्षिणी हरियाणा में भी राव बिरेंदर सिंह का परिवार कि कभी तूती बोलती थी इसका अच्छा उदाहरण रहा। बात भजनलाल परिवार से करें तो भजनलाल जीते जी उन्होंने कांग्रेस से किनारा कर लिया था। जनहित कांग्रेस बनाने के बाद भी उनके बड़े पुत्र चंद्रमोहन बिश्नोई कांग्रेस के खेमे में ही रहे। आज भी कुलदीप बिश्नोई जबकि भाजपा में तो चंद्रमोहन कांग्रेस के साथ ही हैं। वस्तुतः यही स्थिति चौधरी बंसीलाल परिवार के साथ भी रहे जब चौधरी बंसीलाल ने कांग्रेस को टाटा कहकर हरियाणा विकास पार्टी के नाम से नया दल का गठन किया। फिर भाजपा के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई थी। तब उनकी पुत्रवधू किरण चौधरी कांग्रेस का ही दामन थामे रही थी। दक्षिणी हरियाणा के सिरमोर कहे जाने वाले ‘रामपुरा हाऊस’ की राजनीति भी कांग्रेसी विरोध के ऊपर ज्यादा रही। यह दीगर बात है इमरजेंसी के बाद ‘राव राजा’ बीरेंद्र सिंह ने इंदिरा गांधी के आग्रह पर कांग्रेस का दामन थाम लिया। पर कांग्रेस के साथ प्रेम ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया और राजीव गांधी के समय उन्होंने कांग्रेस को फिर से बाय-बाय कह दिया। उस समय उनके जेष्ठ पुत्र राव इंद्रजीत सिंह कांग्रेस के झंडे के नीचे ही रहे। बाद में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ अनबन के चलते उन्होंने भाजपा का दामन थामा। आज भी रामपुरा हाउस के राव राजा इंदरजीत सिंह भाजपा में है। मंझोंले राव राजा अजीत सिंह सदा कांग्रेस के विरोधी रहे पर उनका भतीजा राव अर्जून सिंह कांग्रेस के साथ है। छोटे राव राजा राघवेंद्र सिंह भी कांग्रेस (चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा) के साथ ही है। कुछ यही स्थिति हरियाणा के तीसरे बड़े राजनीतिक परिवार चौधरी देवीलाल के साथ भी रही। चौधरी देवी लाल के तीन पुत्रों में भी राजनीतिक वर्चस्व के लिए लंबे समय तक रहा। रणजीत सिंह चौटाला और प्रताप सिंह चौटाला ओम प्रकाश चौटाला से अलग ही सुर अलापते थे। आज भी चौधरी रणजीत सिंह परिवार से अलग राह अपनाए हुए हैं। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के संस्थापक एवं पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के दोनों ही बेटे अलग-अलग दलों से जुड़े हैं। सीनियर चौटाला के बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला और उनके पुत्र दुष्यंत चौटाला ने मतभेद के बाद जननायक जनता पार्टी (जजपा) का गठन किया। दुष्यंत फिलहाल हरियाणा के उपमुख्यमंत्री हैं। वहीं, सीनियर चौटाला के छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला फिलहाल इनेलो के प्रधान महासचिव हैं। वह इन दिनों राज्य में हरियाणा परिवर्तन यात्रा की अगुवाई कर रहे हैं। हाल ही में ओम प्रकाश चौटाला भी इस यात्रा में शामिल हुए थे। हरियाणा से निकलकर अब दूसरे राज्यों की बात करें तो कुछ ऐसी ही कहानी आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस की है। मुख्यमंत्री वाई एस जगनमोहन रेड्डी वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। लंबे समय तक उनके साथ रही उनकी बहन शर्मिला ने अपनी पार्टी वाईएसआर तेलंगाना पार्टी का गठन किया है। जगन की मां ने वाईएसआर कांग्रेस के मानद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और बेटी की पार्टी की गतिविधियों से जुड़ गईं। शर्मिला की पार्टी मुख्य रूप से तेलंगाना में सक्रिय है। इस कड़ी में नया नाम जुड़ गया है कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार केरल के पूर्व मुख्यमंत्री एके एंटनी और उनके बेटे अनिल के एंटनी का। अनिल पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। सीनियर एंटनी पांच बार विधानसभा के सदस्य रहे और पांच बार राज्यसभा भी पहुंचे। वह तीन बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए गए और इतनी ही बार केरल के मुख्यमंत्री भी रहे। भाजपा में शामिल होने के फैसले के बारे में अनिल से जब ‘मीडिया ने पूछा तो उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर यह एक कठिन फैसला था, लेकिन ”हमें कुछ सार्थक करने की आवश्यकता है।” उन्होंने कहा कि जिस कांग्रेस में उनके पिता ने अपनी जिंदगी खपा दी और जिसकी वजह से उनकी पहचान है, वह (कांग्रेस) आज ”विनाशकारी” दिशा में है। हालांकि, सीनियर एंटनी ने अपने बेटे के भाजपा में शामिल होने पर दुख जताते हुए इसे ‘गलत फैसला’ करार दिया और कहा कि वह खुद आखिरी सांस तक कांग्रेस के सिपाही बने रहेंगे। एंटनी 37 वर्ष के थे, जब वह पहली बार केरल के मुख्यमंत्री बने थे। अभी कुछ दिन पहले ही महाराष्ट्र में भी इसी तरह का घटनाक्रम देखने को मिला था। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) गुट के प्रमुख नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेहद करीबी सुभाष देसाई के बेटे भूषण देसाई ने पार्टी छोड़कर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना का दामन थाम लिया था। सुभाष देसाई ने तब कहा था कि बेटे ने भले ही पाला बदल लिया हो, लेकिन उनकी निष्ठा शिवसेना, मातोश्री, दिवंगत बाला साहेब ठाकरे और उद्धव ठाकरे के प्रति ही रहेगी। इसी कड़ी में एक प्रमुख नाम समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव का भी आता है। वह 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सपा का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं। इसी तरह, उत्तर प्रदेश से भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी के पुत्र मयंक जोशी ने पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान ही सपा का दामन थाम लिया था। प्रयागराज की सांसद रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे के लिए लखनऊ कैंट से टिकट चाहती थीं, लेकिन भाजपा नेतृत्व ने उनकी नहीं सुनी। इसके बाद मयंक सपा में शामिल हो गए। ऐसा ही एक प्रमुख नाम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी का है। करीब डेढ़ दशक तक कांग्रेस के संगठन महासचिव रहे और सोनिया गांधी के करीबियों में शुमार जनार्दन द्विवेदी के बेटे समीर द्विवेदी फरवरी 2020 में भाजपा में शामिल हो गए थे। उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टी ‘अपना दल’ की कहानी भी काफी मिलती-जुलती है, जिसकी स्थापना राज्य में कुर्मी समुदाय के प्रमुख नेता रहे सोनेलाल पटेल ने की थी। उनके निधन के बाद परिवार में उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष छिड़ गया, जो आज तक जारी है। अपना दल फिलहाल दो गुटों में बंट गया है। एक की कमान अनुप्रिया पटेल के हाथों में है, जबकि दूसरे गुट का नेतृत्व उनकी बड़ी बहन पल्लवी पटेल कर रही हैं। अनुप्रिया पटेल केंद्र सरकार में मंत्री हैं, जबकि पल्लवी पटेल ने उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में सपा का दामन थाम लिया था। उन्होंने सिराथू विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को पराजित किया था। उत्तर प्रदेश के ही कद्दावर नेताओं में गिने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य सपा में हैं, जबकि उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य भाजपा की सांसद हैं। ऐसे परिवार, जहां बगावत पिता ने की, उसका जिक्र होने पर भाजपा के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा का ख्याल आना लाजिमी है। यशवंत सिन्हा जनता पार्टी, जनता दल से होते हुए भाजपा में पहुंचे, लेकिन नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनका पार्टी से मोहभंग हुआ और वह कुछ समय बाद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल हो गए। उनके बेटे जयंत, हालांकि भाजपा में ही बने रहे। Post navigation हरियाणा में जीरो ड्रॉप आउट नीति पर किया जा रहा काम – कंवर पाल मुख्यमंत्री का ‘वादा’ पोर्टल के चक्कर में ना पूरा ना आधा,