गुरुग्राम  7 अप्रैल – चिकित्सा का खर्च कर्जा लेने का प्रमुख  कारण हैl परिवार का व्यक्ति बीमार हो जाए तो 75 प्रतिशत भारर्तियों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ता हैl जब सरकारी अस्पताल केवल 30% लोग का इलाज करते हैं तो आज भी प्रमुख तौर पर निजी नर्सिंग होम, क्लिनिक और अस्पताल अधिकतम लोगों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं। जायज बात है निजी अस्पताल का खर्च या तो मरीज देता है या बीमा कंपनी देती है l 

भारत सरकार पूरे विश्व में चिकित्सा पर सबसे कम खर्च करने वाली सरकार है l भारत अपने जीडीपी का मात्र 1.3% स्वास्थ्य सेवा पर खर्चा कर्ता है। हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश और श्रीलंका भी 6% जीडीपी स्वास्थ्य पर खर्च करते हैंl 3 वर्ष से आयुष्मान भारत योजना 5 करोड़ परिवार के लिए बीमा कवर दे रही है और हरियाणा सरकार ने चिरायु योजना की घोषणा की जिसमें सालाना 1.8 लाख रुपये से कम कमाने वाले परिवार को बीमा दिया जाएगा l यह दोनो योजना मौजूदा निजी अस्पताल पर ही आधारित है। हजारों करोड़ रुपये जो बीमा कंपनी को दिया जा रहा है अगर वह अस्पताल के रूप में जमीन पर लगाया जाए तो आने वाली पीढ़ी को बेहतर स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध हो सकती हैl

हाल ही में राजस्थान सरकार ने राइट टू हेल्थ बिल के नाम पर सभी निजी अस्पतालों को सरकारी रेट पर इलाज देने का आदेश दिया जिसका पुरी मेडिकल फ्रेटरनिटी ने जमकर विरोध किया और 18 दिन की हड़ताल के बाद सरकार को कानून संशोधन करना पड़ा और निजी अस्पताल और निजी चिकित्सक को इस बिल से बाहर कर दिया गया। 

मंत्री और अधिकारी अपने लिए तो निजी सुपर स्पेशियलिटी डॉक्टर तलाश लेते है लेकिन जनता को अच्छा इलाज देने में विफल हैं।बात अगर प्राथमिकता की हो तो गुड़गांव का पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस 7 महीने के रिकॉर्ड टाइम में तैयार हो गया था लेकिन गुड़गांव का सिविल अस्पताल 4 साल में टूटा ही है। गुड़गांव मेडिकल कॉलेज  7 साल से चुनाव घोषना पत्र पर तो दिखता है लेकिन जमीन पर दिखाई नहीं देता। 

आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है और “हेल्थ फोर आल” का नारा दिया गया है। इतने वर्षों से स्वास्थ्य पर राजनीति तो हो रही है लेकिन अधिकतम लोगों को स्वास्थ्य सेवा के लिए कर्ज लेना पिचली सभी सरकारो के प्रदर्शन पर तमाचा है।अगर भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आना है तो चिकित्सा में निवेश करना ही पड़ेगा।

डॉ सारिका वर्मा , ईएनटी एसोसिएशन गुडगाँव अध्यक्ष, ( विचार व्यक्तिगत हैं)

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