डा. गुरविंदर बाँगा के ग़ज़ल संग्रह ‘पत्थरों पर इबारत’ पर समीक्षात्मक चर्चा
दिल्ली , फरीदाबाद , बहादुरगढ़ व गुरुग्राम के कवियों ने बिखेरे विविध रंग 

गुरुग्राम – सुरुचि साहित्य कला परिवार के तत्त्वावधान में एस्टर्स स्कूल सेक्टर 45 गुरुग्राम के सभागार में रविवार 19  मार्च को सायं  4 बजे समीक्षात्मक चर्चा एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें गुरुग्राम के रचनाकार डा. गुरविंदर बाँगा के ग़ज़ल संग्रह ‘पत्थरों पर इबारत’ पर समीक्षात्मक चर्चा हुयी I प्रसिद्ध ग़ज़लकार दीक्षित दनकौरी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे I संस्था अध्यक्ष डा. धनीराम अग्रवाल ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की I सी.सी.ए. स्कूल के चेयरमैन कर्नल कुँवर प्रताप सिंह एवं प्राचार्य निर्मल यादव ने मंच को सुशोभित किया I 

अतिथिगण द्वारा दीप प्रज्जवलन एवं नरोत्तम शर्मा के मधुर कंठ द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ I कार्यक्रम का सूंदर संचालन महासचिव मदन साहनी ने किया I सर्वप्रथम डा. धनीराम अग्रवाल ने अतिथिगण का शाब्दिक स्वागत किया I 

डा. गुरविंदर बांगा ने लेखन की यात्रा के विषय में बताते हुए कहा कि विभाजन और 1984 की त्रासदी झेलने के बाद उनके  लेखन में स्वभाविक रूप से तीखापन आ गया I उन्होंने कहा पढ़ने की प्रेरणा पिता से मिली जो आज भी कायम है I 

‘फाड़ डालीं किताबें तो क्या, पत्थरों पर इबारत रही’

त्रिलोक कौशिक ने पुस्तक पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा प्राचीनकाल में जैसे  शिलालेख होते थे, वैसे ही डा. बाँगा की पत्थरों पर इबारत है I  दरअसल ये पत्थरों पर नहीं, बल्कि  दिल पर इबारत हैI  उन्होंने संग्रह से कुछ शेर उद्धृत भी किये-

“हर हाल में , हर दौर में हलकान रहेगा , जंगल के निशाने पर इंसान रहेगा “

दीक्षित दनकौरी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि डा. बाँगा के उदबोधन ने मुझे द्रवित किया है I  इस पुस्तक में उनका दर्द छलका है, करुणा और विनम्रता छलकी है I 

“मेरी बोली लगी मगर मैं खुश  हूँ , अपनी शर्तों पर ही बिका साहिब”

अशआर का पाठक को पसंद आना, पाठक के मिजाज पर निर्भर करता है I 

इसके बाद काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें  दिल्ली , फरीदाबाद , बहादुरगढ़ से पधारे कवियों के साथ स्थानीय कवि  मित्रों ने काव्य पाठ किया I वरिष्ठ एवं नवोदित कवियों  सहित लगभग 32 कवियों ने काव्य पाठ किया , जिसमें मुख्य रूप से  दीक्षित दनकौरी, नीना सहर, डा मुक्ता, कृष्ण गोपाल विद्यार्थी, अजय अज्ञात, बबीता किरण, आभा कुलश्रेष्ठ, इन्दु राज निगम, राजेंद्र निगम राज, आर.पी.सेठी कमाल, गार्गी कौशिक, रूपा राजपूत, देवेन्द्र शर्मा, नन्दिनी जी, मोनिका शर्मा, निवेदिता चक्रवर्ती, मीना  चौधरी, ज्योत्सना कलकल, सौरभ तिवारी, शुभम तिवारी, हरींद्र यादव , नरेंद्र खामोश, राजेश प्रभाकर, सोनिया रूह, बिमलेन्दु सागर, आर. सी. शर्मा,  सुरिंदर मनचंदा, मदन साहनी, त्रिलोक कौशिक, अनिल श्रीवास्तव ने काव्य पाठ  किया I 

दीक्षित दनकौरी की ग़ज़ल को श्रोताओं की खूब दाद  मिली    

“मैं दर पर तुम्हारे ग़ज़ल कह रहा हूँ , ये दामन पसारे ग़ज़ल कह रहा हूँ “

“समुन्दर हूँ कोई कतरा  नहीं हूँ , मगर तेरे जितना गहरा नहीं हूँ “

इस अवसर पर शशांक मोहन शर्मा , आर. एस. पसरीचा सहित संस्था के सदस्य , पदाधिकारी व गणमान्य महानुभाव श्रोताओं के रूप में उपस्थित थे I 

मदन साहनी ने  जहाँ आमंत्रित अतिथि, कवियों व श्रोताओं के प्रति आभार व्यक्त किया, वहीं संस्था के सतत सहयोगी के रूप में  कर्नल कुँवर प्रताप सिंह व निर्मल यादव  की सराहना करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया I 

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