भारत सारथी/ कौशिक

नारनौल। एक समय था जब सुबह नींद से आंखें चिड़िया रानी अर्थात गौरैया की चहचहाट से खुलती थी । गौरैया की चीं -चीं की आवाज भौर होते ही घर के आंगन में एक मनोहर ध्वनि उत्पन्न करती थी। पर्यावरणविद धर्म सिंह गहली ने बताया कि आज वही गौरैया रानी आंगन में कभी-कभी दिखाई देती है। क्या वास्तव में गौरैया रानी डरी हुई ,असहाय व अनमनी है ? मेरी गौरया रानी को किसने डराया है ? शायद गौरैया की घटती आबादी के लिए मैं स्वयं मानव तथा मेरी वर्तमान जीवन शैली तो उत्तरदाई नहीं है ? सच माने तो आज की आधुनिक चकाचौंध में मेरी गौरया रानी कहीं खो गई है। पहले मकान कच्चे व छप्पर नुमा होते थे जिसमें गौरैया रानी खुश होकर अपना बसेरा व सपनों की दुनियां सुरक्षित तथा सुविधापरक बसाती थी। वहां उसे घोंसला बनाने की सामग्री व स्थान आसानी से मिल जाता था ।

वर्तमान बहुमंजिला इमारतों जिसमें सभी जगह लगी हुई टाइल्स ने इस नन्हीं का आश्रय छीन लिया है। पर्यावरण असंतुलन, बढ़ते हुए ध्वनि व वायु प्रदूषण के कारण यह अपने आप को असहाय समझती है। अधिक तापमान गोरैया सहन नहीं कर सकती। कृषि कार्यों में अधिक उपयोग होने वाले कीटनाशक, आधुनिक तरीके से बने मकान, हरियाली का कम होना, पेड़ों का कटना, मोबाइल टावर गौरैया के कम होने के प्रमुख कारण हैं। पहले खेतों में अनाज को हाथों से कूटकर या पशुओं के द्वारा निकाला जाता था जिससे कुछ अनाज खेतों में मिट्टी में मिल जाता था उसे चिड़िया बड़े चाव से चुुुग लेेेती थी।

श्री गहली का कहना है कि आज आधुनिक कृषि यंत्रों के कारण अनाज को मशीनों से निकालकर सिधेे बोरों व पात्रों में भर लिया जाता है। गौरैया को घास के बीज बहुत पसंद होते हैं। पहले घरों में महिलाएं आंगन में बैठकर गेहूं सूखाती थी, अनाज को फटकती थी, साफ करती थी ,धान कूूूटती थी जिससे गौरैया को आसानी से अपना आहार मिल जाता था। शहरों के चारों ओर फैला बिजली व टेलीफोन की तारों का मकड़जाल चिड़ियों के लिए खतरा बनता जा रहा है। एक सर्वे में पाया गया है कि चिड़ियों के कम होने का सबसे बड़ा कारण मोबाइल टावर हैं। मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगे चिड़ियों की दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित करती हैं। इन तरंगों का इनके प्रजनन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

घरों की खिड़कियों में लगे कूलर तथा रोशनदान की जगह विंडो में लगे एयर कंडीशनर ने गौरैया के जीवन को खतरे में डाल दिया है । पहले कस्बे व गांवों में पंसारी की दुकान होती थी जिससे गौरैया को दाना आसानी से उपलब्ध हो जाता था। वर्तमान मॉल व सुपरमार्केट संस्कृति ने गौरैया का दाना छीन लिया है। पहले जोहड़, तालाब, बावडीयां व नदी नाले जल से भरे रहते थे जिसमें चिड़िया आजादी से पंखों को पानी में भिगोकर फड़ फड़ाती हुई जल ग्रहण करती थी। चिड़िया मनुष्य के बनाए घरों के आसपास रहना पसंद करती है। यह लगभग हर प्रकार की जलवायु में रह सकती है।

गौरैया को बचाने के लिए दिल्ली सरकार ने गौरैया को राज्य पक्षी घोषित किया है। आंगन, घर, बगीचे , रोशनदान व खपरैल के कोनों को छोड़कर गौरैया रानी कहां चली गई है। गौरैया को बचाने के लिए पहली बार 20 मार्च 2010 को विश्व गौरैया दिवस मनाया गया था तब से प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। नन्ही गौरया को अपने आंगन में बुलाने के लिए हम सबको मिलकर प्रयास करने होंगे। जहां घर पक्के हो वहां लकड़ी के घोंसले, बॉक्स बनाकर लगाएं, घर में ऐसा स्थान उपलब्ध करवाएं जहां गौरया आसानी से घोंसला बना सके। लकड़ी, मटके, कागज के गत्ते के डिब्बे के घोंसले बनाकर आसपास के स्थानों पर लगाए। भोजन का दसवां भाग पशु पक्षियों के लिए निकालकर उनको अवश्य डालें। चिड़ियों के लिए रोज दाना डालें। घरों की छत पर सकोरे पानी से भर कर रखें समय-समय पर उनकी सफाई करें। घरों में लगे हुए घोसलों को न हटाएं ।आओ हम सब मिलकर छोटी सी, प्यारी सी गौरया रानी को बचाने का प्रयास करें क्योंकि यह हमारे आंगन ,घर व परिवार का एक हिस्सा है।

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