-कमलेश भारतीय

रंग आंगन नाट्योत्सव तीसरे दिन ही शिखर की ओर बढ़ने लगा है । एक नाटक का मंचन जिंदल स्टेनलेस कम्पनी के तुलसी सभागार में तो दूसरे का मंचन बाल भवन में हुआ । दोनों नाटकों ने नाट्योत्सव को ऊंचाइयां प्रदान कीं । यह शाम और ये नाटक बहुत दिनों तक याद रहेंगे और कलाकार भी !

‘जीना इसी का नाम है’ नाटक में दो वृद्ध अपने अपने एकांत के बीच हैल्प सेंटर में मिलते हैं । वहां राजेंद्र गुप्ता एक डाॅक्टर भुल्लर की भूमिका में हैं तो हिमानी शिवपुरी एक पेशेंट सरिता शर्मा के रूप में मौजूद हैं । दोनों की पहली दो मुलाकातें नोंक झोंक से ही शुरू और इसी पर खत्म होती हैं । यहां तक कि डाॅक्टर कहता है कि आपके साथ बैठकर तो मैंने अपनी काॅफी का स्वाद ही खराब कर लिया । फिर अगली मुलाकातों में दोनों करीब तो आने लगते हैं लेकिन थोड़ा-थोड़ा झूठ भी बोल कर अपने एकांत और अकेलेपन को छिपा लेते हैं लेकिन धीरे धीरे बातें खुलती जाती हैं और दिल भी खुलने लगते हैं । बारिश में भीगते हैं , डांस करते हैं , झूमते है और आखिर एक दूसरे के करीब आ जाते हैं कि हिमानी शिवपुरी सरिता शर्मा के रूप में जाते जाते लौट आती है और इस तरह दोनों प्रसिद्ध कलाकारों ने शानदार अभिनय से भुल्लर और सरिता शर्मा को जीवंत कर दिया । कुछ कुछ बागवान के अभिताभ बच्चन और हेमामालिनी की भूमिकाओं के करीब पहुंचते लगे ! सुरेश भारद्वाज का निर्देशन खूब सराहनीय रहा । यह नाटक और इन दोनों कलाकारों का अभिनय हिसारवासियों को बहुत देर तक याद रहेगा ।

दूसरा नाटक बाल भवन में विजय कुमार के निर्देशन में हुआ -मोहन राकेश लिखित चर्चित आधे अधूरे ! समाज में हर घर अंदर से कितना खोखला हो चुका है । घर सिर्फ एक छत भर रह गये । अंदर टूटे और हताश-निराश लोग रहते हैं । पत्नी कुछ खोज रही है तो बेटियां कुछ और बेटा कुछ । ऐसे में पति महेंद्र पूछता है कि क्या मेरी इस घर में कोई इज्जत भी है ? इस तरह वह घर छोड़कर चला जाता है । बेटे के लिए मां बाॅस सिंघानिया को खुश करना चाहती हो लेकिन बेटे को यह पसंद नहीं और वह बाॅस का कार्टून बना देता है । आखिर महेंद्र लौटता है लेकिन घर और घर के लोग आधे अधूरे ही रहते हैं । इसमें विजय कुमार ने महेंद्र , सिंघानिया , दोस्त सहित चार चार भूमिकाएं निभाईं । इनकी पत्नी गीता त्यागी ने ही इसमें सावित्री की भूमिका निभाई और दोनों ने बहुत ही खूबसूरत भूमिकाएं निभा कर शाम को और खूबसूरत बना दिया और नाट्योत्सव को शिखर की ओर ले गये । मोहन राकेश के इस नाटक का लेखन का आइडिया इनकी पत्नी अनीता राकेश ने ही दिया था और एक प्रकार से यह उनके ही परिवार की कहानी थी । यह बात अनीता राकेश ने मेरे साथ इन्टरव्यू में स्वीकार करते बताया था कि उनकी भूमिका चिट्ठी यानी छोटी बेटी की थी । यह नाटक अपने समय के साथ आज भी जीवंत है और अनेक रंगटोलियां इसे मंचित करती रहती हैं । विजय कुमार के इस मंचन के समय राजेन्द्र गुप्ता और हिमानी शिवपुरी भी मौजूद रहे । समाजसेविका पंकज संधीर ने दोनों नाटकों की प्रस्तुति और कलाकारों के अभिनय को दिल खोल कर सराहा ।

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