पंचायत मंत्री और पार्टी के बीच विरोधाभास सरपंचों का एलान, नौ को बात नहीं बनी तो 11 को फिर सीएम आवास का घेराव राइट टू रिकॉल नियम लागू करना है तो पहले विधायकों और सांसदों पर किया जाए अशोक कुमार कौशिक हरियाणा में सरपंचों का आंदोलन पूरी तरह से राजनीतिक रूप ले गया है। सरपंच पंचायतों के विकास कार्यों में ई-टेंडरिंग व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं। प्रदेश सरकार ने दो लाख रुपए से ऊपर के सभी विकास कार्यों को ई-टेंडरिंग के माध्यम से स्वीकृत कराने की व्यवस्था की है। सरपंच चाहते हैं कि इन विकास कार्यों को स्वीकृत करने का अधिकार सीधे उन्हें मिलना चाहिए। इसलिए वह ई-टेंडरिंग के पक्ष में नहीं हैं। हरियाणा सरकार खासकर मुख्यमंत्री मनोहर लाल ई-टेंडरिंग व्यवस्था से किसी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं हैं, जबकि विपक्ष खासकर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, इनेलो सहित कुछ खाफ तथा किसान संगठन इस मुद्दे पर सरपंचों के साथ हैं। अंबाला रोड स्थित पैलेस में सोमवार को सरपंच एसोसिएशन की राज्यस्तरीय बैठक हुई। इसमें ई-टेंडरिंग व राइट टू रिकॉल नियम के विरोध में शुरू किए गांव देहात बचाओ आंदोलन की रणनीति पर चर्चा की गई। प्रदेश के पंचायत एवं विकास मंत्री देवेंद्र बबली भाजपा सरकार में साझीदार जननायक जनता पार्टी के कोटे से मंत्री हैं। ई-टेंडरिंग पर बबली मुख्यमंत्री मनोहर लाल के साथ खड़े हैं, लेकिन बबली की पार्टी के नेता उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला व जजपा के प्रधान महासचिव दिग्विजय सिंह चौटाला सरपंचों का साथ दे रहे हैं। जजपा नेताओं का ई-टेंडरिंग को लेकर विरोध सिर्फ राजनीतिक नजर आ रहा है। यदि जजपा नेता वास्तव में सरपंचों के हक में हैं तो वह अपनी पार्टी के कोटे से मंत्री बने देवेंद्र बबली पर इस फैसले को वापस लेने का दबाव बना सकते थे, मगर ऐसा नहीं हो रहा है। ई-टेंडरिंग को लेकर स्टैंड पूरी तरह से स्पष्ट किया जाए जजपा नेता ठीक उसी तरह से सरपंचों के हक में हैं, जिस तरह से किसान आंदोलन के दौरान वह सरकार में साझीदार होने के बावजूद बार-बार किसानों के हक की बात कर रहे थे। मुख्यमंत्री मनोहर लाल का ई-टेंडरिंग को लेकर स्टैंड पूरी तरह से स्पष्ट है। उनका मानना है कि गांव के विकास के लिए दिया जाने वाला पैसा गांवों में ही खर्च होना चाहिए। इसलिए दो लाख रुपए से अधिक के जितने भी काम हैं, वह पारदर्शिता से स्वीकृत हों और गांव में ही लगें। रस्साकसी में गांवों का विकास कार्य प्रभावित भाजपा की निगाह गांव के लाभार्थी लोगों पर है, जबकि कांग्रेस, इनेलो व आम आदमी पार्टी समेत जजपा की निगाह सरपंचों के माध्यम से लोगों के बीच पैठ बनाने की है। इस रस्साकसी में गांवों का विकास कार्य प्रभावित हो रहा है। बावजूद इसके साढ़े तीन हजार विकास कार्यों के प्रस्ताव हरियाणा सरकार को आनलाइन माध्यम से मिल चुके हैं, जो ई-टेंडरिंग के प्रबल समर्थन की तरफ इशारा कर रहे हैं। गांव के लोग सरकार के इस फैसले से काफी खुश हैं। उन्हें लगता है कि ई-टेंडरिंग के माध्यम से पैसा खुर्दबुर्द नहीं होगा और सारा पैसा गांव में ही लगेगा, जबकि कुछ सरपंचों की सोच है कि चुनाव में हुए उनके खर्च की भरपाई तभी होगी, जब उन्हें ई-टेंडरिंग की बजाय सीधे पैसा खर्च करने की पावर मिलेगी। दरअसल, हरियाणा में 2024 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव हैं। हरियाणा में इस बार 71 हजार 741 पदों पर पंचायत चुनाव हुए हैं। इनमें 6228 सरपंच, 62 हजार 22 पंच, ब्लाक समिति के 30 हजार 380 और जिला परिषद के 411 सदस्य शामिल हैं। राजनीतिक दलों का मानना है कि गांवों में अपनी राजनीतिक पैठ मजबूत करने के लिए सरपंचों के साथ खड़े रहना जरूरी है। इसलिए वह ई-टेंडरिंग के हक में नहीं हैं। ई-टेंडरिंग के विरोध में कांग्रेस तो राजभवन तक दस्तक दे चुकी है। ई-टेंडरिंग पर राजनीतिक दलों का स्टैंड भाजपा नेताओं का मानना है कि जब सरकारी योजनाओं के लाभ को आनलाइन करने से सरकार 1150 करोड़ रुपए की बचत कर सकती है तो ई-टेंडरिंग के माध्यम से पूरा पैसा गांवों में पहुंचाया जा सकता है। बैठक के दौरान सरपंचों ने फैसला लिया कि यदि मुख्यमंत्री के साथ नौ मार्च को होने वाली मुलाकात के बाद भी परिणाम नहीं निकला तो 11 मार्च को सीएम आवास का घेराव किया जाएगा। इसके बाद गांवों में सरपंचों का प्रवेश बंद किया जाएगा। बैठक में सरपंच एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष रणबीर सिंह समैण ने कहा कि सरकार सरपंचों पर अत्याचार करने में लगी है। इस कारण प्रदेशभर के सरंपच परेशान हो चुके हैं। पंचकूला में सरकार ने तानाशाही रवैया अपनाकर सरपंचों को जबरन उठाया जबकि सरपंचों ने एक तरफ से रास्ता खोल दिया था। फिर भी सरकार हाईकोर्ट में गई। माननीय हाईकोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए वहां से सरपंचों को उठना पड़ा। अब सरकार की तरफ से उन्हें मुख्यमंत्री मनोहर लाल से बातचीत का निमंत्रण मिला है। इस मुलाकात में सहमति नहीं बनी तो 11 मार्च को करनाल में मुख्यमंत्री के आवास का घेराव किया जाएगा। इसके बाद भी सरकार नहीं मानी तो गांवों में सत्ताधारी विधायकों और मंत्रियों का प्रवेश बंद करवाया जाएगा। इसको लेकर गांव में सूचना पट्ट लगाएंगे। राइट टू रिकॉल नियम लागू करना है तो पहले विधायकों और सांसदों पर किया जाए समैण ने कहा कि सरकार को गांवों में पंचायतें तो पढ़ी लिखी चाहिए, भले ही उनके विधायक व सांसद आठवीं पास हों। आरोप लगाया कि सरकार सरपंचों पर जो नए नियम थोप रही है, वह केवल कमीशनखोरी का माध्यम होगा। सरकार केवल विधायकों औैर मंत्रियों की जेब भरने के लिए ही राइट टू रिकॉल और ई-टेंडरिंग लागू कर रही है। यदि सरकार को ई-टेंडरिंग और राइट टू रिकॉल नियम लागू करना है तो पहले विधायकों और सांसदों पर किया जाना चाहिए। इस मौके पर एसोसिएशन की उपाध्यक्ष संतोष बैनीवाल सिरसा, चुन्नी लाल, रमेश, गुरिंद्र हाबड़ी, नरेंद्र कुमार, चंद्रमोहन, आशीष भिवानी, कर्मबीर भाल कैथल, विकास खतरी रोहतक, ईशम करनाल सुधीर सहित अन्य मौजूद थे। Post navigation अर्न्तराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च पर 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