गुरुग्राम, 6 मार्च : सुरुचि परिवार ने किया लोकार्पण एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन  सुरुचि साहित्य कला परिवार के तत्त्वावधान में रविवार, 5 मार्च, 2023 को सायं 3 बजे से सी.सी.ए. स्कूल, सेक्टर 4 के सभागार में लोकार्पण एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया I इसके अंतर्गत प्रख्यात कवि त्रिलोक कौशिक के काव्य संग्रह ‘चलो, अब घर चलते हैं’ को लोकार्पित किया गया I कार्यक्रम की अध्यक्षता सी.सी.ए स्कूल के चेयरमैन कर्नल कुंवर प्रताप सिंह ने की I  मुख्य वक्ता एवं समीक्षक के रूप में दूरदर्शन के पूर्व निदेशक अमरनाथ ‘अमर’ प्रख्यात साहित्यकार अलका सिन्हा , वरिष्ठ  साहित्यकार कुलबीर सिंह मलिक एवं मदन साहनी  ने मंच की शोभा बढ़ाई I नरेंद्र खामोश द्वारा प्रस्तुत सुमधुर  सरस्वती वंदना एवं अतिथिगण द्वारा दीप प्रज्जवलन से विधिवत कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ I संस्थाध्यक्ष डा. धनीराम अग्रवाल ने संस्था का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करते हुए आमंत्रित अतिथिगण का शाब्दिक स्वागत किया I त्रिलोक कौशिक ने अपने काव्य संग्रह  के विषय में उदगार व्यक्त करते हुए कहा, ” भीतर की पीड़ा जब स्वतः  बाहर निकलती है तो कविता जन्म लेती है I उन्होंने  संग्रह की दो कविताओं का पाठ किया, जिसकी श्रोताओं ने उन्मुक्त कंठ से सराहना की I “जब -जब घर की रीढ़ झुकी , तब- तब तन कर आये बाबूजी” 

मदन साहनी ने समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा, “त्रिलोक कौशिक मूलतः प्रेम के कवि हैं I यद्यपि उनकी कुछ कविताओं में आक्रोश क्रोध दिखाई देता है, लेकिन वो क्षणिक है I वो अपने सत्य के साथ रहना और दिखना जानते हैं I उनका ह्रदय सागर की तरह है जो तट पर आये लोगों से छुअन का सुख लेकर वापस लौट जाता है I”

कुलबीर सिंह मलिक ने कहा, “त्रिलोक कौशिक विद्रोह और असंतोष के कवि हैं I वो रचनाधर्मिता का निर्वाह बखूबी कर रहे हैं I उनकी कविताओं में संवेदना के स्वर दिखाई देते हैं I

अमरनाथ अमर ने कहा, “शीर्षक ‘चलो, अब घर चलते हैं’ अपने आप में कविता है I उससे  भी बढ़कर उसमें अब तक के जीवन का निचोड़ छिपा है I शीर्षक प्रासंगिक भी है और सार्थक भी I त्रिलोक अकेले नहीं चलते बल्कि मानवीय संवेदनाओं, सौंदर्य बोध और सामाजिक  सरोकारों के साथ चलते हैं I उनके कविता की भावभूमि अन्य से जुदा है I” 

अलका सिन्हा ने कहा “रूह का तत्व त्रिलोक जी की कविताओं में दिखाई देता है I शीर्षक में चलने का आग्रह भी है और ठहराव भी I कवि की लड़ाई अपने भीतर बैठे कमजोर आदमी से है I उनके भीतर की कसमसाहट कविताओं में दिखाई देती है I उनकी कविताएं अंतर्मुखी हैं जो आईने की तरह तटस्थ खड़ी हैं I 

पुस्तक समीक्षा के तत्पश्चात काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया I इसका सुन्दर सञ्चालन कवयित्री मोनिका शर्मा ने किया I इसमें मुख्य रूप से डा.मुक्ता, डा.अशोक बत्रा, राजपाल यादव, राजेश प्रभाकर, बिमलेन्दु सागर, आर.सी.शर्मा, मदन साहनी, मीना चौधरी, हरींद्र यादव, मेघना शर्मा, सुरिंदर मनचंदा , मोनिका शर्मा , कुलबीर सिंह मलिक, अलका सिन्हा, अनिल श्रीवास्तव सहित 17 कवियों ने काव्य पाठ किया I समाजसेवी डी.पी. गोयल ने सम्बोधित करते हुए कहा कि साहित्यकार चिन्तन मंथन द्वारा समाज को सन्देश देने का महती कार्य करते हैं I उन्होंने सुरुचि परिवार को सार्थक आयोजन के लिए साधुवाद दियाI इस अवसर पर प्राचार्य निर्मल यादव, नरोत्तम शर्मा, रवि किरण सचदेव, शशांक मोहन शर्मा, सुनील पुजारी, आर.एस. पसरीचा, राधा शर्मा, रविंद्र यादव सहित कई गणमान्य श्रोताओं के रूप में उपस्थित थे I

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