मोहन भागवत के बयान पर छिड़ी जुबानी जंग, महंत बोले- ये व्यवस्था पंडितों ने नहीं, राजनीति ने बनाई
जाति व्यवस्था को लेकर अखिलेश यादव ने संघ प्रमुख भागवत से पूछा सवाल
गीता कहती है जन्मना जायते शूद्र: , संस्काराद द्विज उच्यते. यानि जन्म से सभी शूद्र, अपने संस्कार से वो द्विज (ब्राह्मण) बनते हैं
जाति शब्द की उत्पत्ति ही अंग्रेजों के समय में हुई

अशोक कुमार कौशिक 

रामचरितमानस पर चल रहे सियासी बवाल के बाद शूद्र-सवर्ण पर वार-पलटवार चल ही रहा था कि अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने वर्ण और जाति व्यवस्था पर बयान देकर नई बहस छेड़ दी है। चुनावी साल है देश के 9 राज्यों में विधानसभा चुनावों के साथ अगले वर्ष लोकसभा चुनाव भी है और इस बीच आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का एक ऐसा बयान सामने आया है जो भाजपा के लिए मुसीबत बन गया है। भाजपा और आरएसएस दोनों ही मिलकर इस बयान पर डेमेज कंट्रोल में जुट गई है। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने मुंबई में कहा की भगवान ने कहा था की उनके लिए सब एक है, उनमें कोई जाति वर्ण नहीं है लेकिन पंडितों ने श्रेणी बनाई जो गलत था। इस बयान के बाद बाद संघ और भाजपा के ब्राह्मण नेता डैमेज कंट्रोल में जुट गए हैं। 

जानकारी के अनुसार सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर ब्राह्मणों ने संघ प्रमुख के बयान पर नाराजगी जाहिर की हैं। इधर, विपक्ष को भी बैठे बिठाए ये मुद्दा मिल गया है। ऐसे में विपक्ष भागवत के बयान को हथियार बनाकर एक तीर से दो निशाने साधेगी।

जाति व्यवस्था को लेकर अखिलेश यादव ने संघ प्रमुख भागवत से पूछा सवाल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा पंडितों और जाति-संप्रदाय को लेकर दिए गए बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) सुप्रीमो अखिलेश यादव ने सोमवार को कहा कि उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि जाति-वर्ण को लेकर क्या वस्तुस्थिति है? 

सपा प्रमुख ने सोमवार को एक अखबार में प्रकाशित खबर की तस्वीर साझा करते हुए ट्वीट किया, ”भगवान के सामने तो स्पष्ट कर रहे हैं, कृपया इसमें ये भी स्पष्ट कर दिया जाए कि इंसान के सामने जाति-वर्ण को लेकर क्या वस्तुस्थिति है।” खबर के अनुसार, भागवत ने कहा है कि भगवान के सामने कोई जाति वर्ण नहीं हैं, श्रेणी पंडितों ने बनाई है।

भागवत के इस बयान के बाद रामचरितमानस पर बयान की वजह से विरोधियों के निशाने पर रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने बिना देर किए कह दिया कि जाति-व्यवस्था पंडितों ने बनाई है, यह कहकर संघ प्रमुख श्री भागवत ने धर्म की आड़ में महिलाओं, आदिवासियों, दलितों व पिछड़ों को गाली देने वाले तथाकथित धर्म के ठेकेदारों व ढोंगियों की कलई खोल दी है। इधर इस बात को लेकर राजनीतिक दलों से लेकर विद्वानों तक ने अपने अपने तरीक़े से विश्लेषण शुरू कर दिया है।

वाराणसी के अखाड़ा, गोस्वामी तुलसीदास के महंत और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर बिशम्भर मिश्रा सीधे-सीधे कहते हैं कि ऐसी व्यवस्था पंडितों ने नहीं बनाई. अगर किसी ने बनाई तो राजनीति ने बनाई है। वो कहते हैं कि मोहन भागवत कोई भगवान नहीं हैं. मोहन भागवत जी को ये बताना चाहिए कि इस बात का रेफ़्रेन्स  क्या है? यानि किस पंडित ने श्रेणी बनाई और ये बात कहां से उन्होंने ली है? 

प्रोफ़ेसर विशम्भर मिश्र वाराणसी के संकट मोचन मंदिर के महंत भी हैं। उनका कहना है कि ये बात पूरी तरह से ग़लत है। इसके लिए प्रोफ़ेसर विशम्भर मिश्रा तुलसीकृत रामचरितमानस के ही कई उदाहरण देते हैं।

“मम माया सम्भव संसारा, जीव चराचर विविध प्रकारा

सब मम प्रिय सब मम उपजाये, इसमें अधिक मनुज मोहि भाये.”

यानि मनुष्यों से ही सबसे ज़्यादा प्रेम भगवान करते हैं। प्रोफ़ेसर विशम्भर मिश्रा कहते हैं, ‘रामचरितमानस में अगर इस तरह की बात कर रहे हैं तो सब कुछ स्पष्ट हो जाता है। जैसे शबरी का उदाहरण है । शबरी स्वयं को ‘अधम’ कहती हैं लेकिन राम ने ‘भामिनी’ कहा है। रामचरितमानस में ऐसे कई उदाहरण हैं, जो इस बात को साबित करते हैं कि कोई जातीय भेदभाव नहीं था।

“रामराज बैठे त्रैलोका, हर्षित गए भए सब सोका’ यानि ऐसे रामराज्य की कल्पना है जिसमें सभी प्रसन्न हों।”

प्रोफ़ेसर विशम्भर मिश्रा मोहन भागवत की बात पर तो सवाल उठाते हैं लेकिन ये कहते हैं कि इस वजह से और विशेषकर रामचरितमानस पर हाल के समय में कुछ लोगों द्वारा सवाल उठाने से लोग मानस को पढ़ रहे हैं। अच्छा है लोग इस बहाने रामचरितमानस पढ़ रहे हैं। उस पर चर्चा कर रहे हैं.

‘लोग गुणों के अनुसार विभाजित होते हैं’

वहीं ज्योतिषाचार्य और वैदिक साहित्य का अध्ययन करने वाले पंडित दिवाकर त्रिपाठी मोहन भागवत की बात को ख़ारिज करते हैं। उनका कहना है कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है जन्मना जायते शूद्र: , संस्काराद द्विज उच्यते. यानि जन्म से सभी शूद्र होते हैं। अपने संस्कार से वो द्विज (ब्राह्मण) बनते हैं। ये स्पष्ट है कि लोग जन्म से किसी श्रेणी में विभाजित नहीं थे।अपने रुझान, स्वभाव, अध्ययन के अनुसार वर्ण में शामिल हुए तो पंडितों ने कैसे ये कर दिया? इन्हीं गुणों के अनुसार उपनय (संस्कार) होता था, न कि जाति के अनुसार।

‘जाति शब्द अंग्रेजों के समय आया’

पंडित दिवाकर त्रिपाठी ने भागवत से सवाल करते हुए कहा कि अगर ब्राह्मणों-पंडितों ने ही ये विभाजन किया होता तो अनुसूचित जाति के लोगों का मृत्यु उपरांत संस्कार ब्राह्मणों की तरह बारहवें दिन नहीं होता। पंडितों (ब्राह्मणों) के द्वारा लोगों को जाति में विभाजन करने की बात पूरी तरह ग़लत है। क्योंकि जाति शब्द की उत्पत्ति ही अंग्रेजों के समय में हुई। हां वर्ण की श्रेणी वैदिक साहित्य का हिस्सा है और वर्ण जन्म से नहीं बल्कि कर्म, स्वभाव, रुझान के अनुसार ही होता है. जैसे महर्षि वाल्मीकि की लिखी रामायण हम सब पढ़ते हैं तो वो ब्राह्मण तो थे नहीं? वो वनवासी थे लेकिन अपने गुणों के कारण महर्षि की पदवी प्राप्त की। वहीं गायत्री मंत्र जो पूरी वैदिक संस्कृति जो उपनयन संस्कार का भी मंत्र है, ब्राह्मणों का भी मूल मंत्र है, वो तो क्षत्रीय विश्वामित्र का दिया मंत्र है। अतः ये बात पूरी तरह से ग़लत है कि पंडितों (ब्राह्मणों) ने श्रेणी बनाई। 

‘भागवत के बयान को ब्राह्मणों से जोड़कर नहीं देखना चाहिए’

इस बीच संघ प्रमुख के इस बयान को लेकर ये बात भी बताने की कोशिश शुरू हो गई है कि ये बात किसी जाति को लेकर उन्होंने नहीं कही होगी. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग के प्रोफ़ेसर बृजभूषण ओझा का कहना है कि पंडित का अर्थ जाति से ब्राह्मण नहीं रहा होगा। मोहन भागवत के इस बयान को इस दृष्टि से देखना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जा सकता है कि वो जो कुछ भी बोलेंगे बहुत विचार कर बोलेंगे। ऐसे में पंडित का अर्थ ‘विद्वान’ लग रहा है। जैसे किसी विषय का पंडित कहा जाता है और ज़ाहिर है वो किसी जाति का सकता है। इसे ब्राह्मण जाति से जोड़कर नहीं देखना चाहिए।

भागवत का बयान राजनीति से प्रेरित’

प्रयाग धर्म संघ, प्रयागराज के अध्यक्ष राजेंद्र पालीवाल इस बयान को ग़ैर ज़रूरी और राजनीति से प्रेरित मानते हैं। उनका कहना है कि ये श्रेणी कोई जन्म का विभाजन नहीं कार्य के आधार पर एक व्यवस्था है तो इसमें ऊंच-नीच की बात बिल्कुल नहीं है। ये संघ प्रमुख का अपना व्यक्तिगत बयान है। इसका आम लोगों से कोई लेना देना नहीं। अगर पंडित या ब्राह्मण इसको करते तो अखाड़े में लेना देना नहीं। अगर पंडित या ब्राह्मण इसको करते तो अखाड़े में सब जातियों के लोग कैसे होते? जब सनातन धर्म पर हमला हुआ तो अखाड़े अस्तित्व में आए। आप देखिए उसमें हर जाति का व्यक्ति शामिल हुआ। इस तरह का बयान पूरी तरह राजनीति से प्रेरित है जो कि ग़लत है। आज इस तरह का विभाजन कहीं भी प्रभावी नहीं है।

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