हरियाणा में सरपंचों ने सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा
क्यों हो रहा है ई-टेंडरिंग को लेकर प्रदेशभर में विरोध?
राइट टू रिकॉल प्रदेश के विधायकों पर लागू क्यों नहीं?
राइट टू रिकॉल की बात सबसे पहले ताऊ देवीलाल ने की थी

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में सरकार की ई-टेंडरिंग और राइट टू रिकॉल के खिलाफ विरोध तेज होता जा रहा है। ई टेंडरिंग के पीछे सरपंचों व सरकार की मंशा पाक साफ नही और दोनों की निगाहें येन केन प्रकरण से पैसा कमाने की है। इसके साथ राइट टू रिकॉल को लेकर प्रदेश में एक बहस चल पड़ी है। आम जनता का मानना है कि राइट टू रिकॉल अच्छा कार्य है यह पंचायत स्तर के साथ-साथ विधानसभा में भी लागू किया जाना चाहिए। अतीत में राइट टू रिकॉल का नारा ताऊ देवीलाल ने दिया था। हरियाणा के सरपंच सरकार के खिलाफ लगभग हर जिले में प्रदर्शन कर इसे वापस लेने की मांग कर रहे है। सरपंचों का कहना कि पहले दो साल चुनाव देरी से करवाना और अब सरपंचों के अधिकारों पर कैंची चलाकर सरकार पंचायती राज संस्थाओं को कमजोर करना चाहती है। जिसे सहन नहीं किया जाएगा।

ग्राम पंचायत को गांव की छोटी सरकार माना गया है। पंचायत की चुनाव भी विधानसभा चुनाव की तरह होता है और विधानसभा चुनाव के बाद सरकार गठन के बाद राज्य सरकार को जो अधिकार मिले हैं। उसी तर्ज पर छोटी सरकार को भी अधिकार मिले हैं। दुखद बात यह है कि बड़ी सरकार तो अपने अधिकार सलामत रखना चाहती है लेकिन छोटी सरकार के अधिकारों पर कैंची चला रही है। जो सहन योग्य नहीं है । सरपंचों का कहना है कि यदि ई-टेंडरिंग ज्यादा फायदेमंद है तो दो साल पहले जब गांवों का काम सरकार के अधीन आया, तब सरकार सारे काम ई-टेंडरिंग से करवाकर इसका प्रयोग कर लेती। लेकिन तब अपने चहेतों को ठेके देने व लाभ पहुंचाने के लिए लाखों के काम टुकड़ों में मैनुअल तरीके से करवाए गए और गांवों में छोटी सरकार का गठन होते ही सरकार ई-टेंडरिंग ले आई।

वही ई- टेंडरिंग के विरोध कर रहे सरपंचों को लेकर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पहले ही कह चुके है कि ई- टेंडरिंग के माध्यम से सरकार ने पंचायतों की शक्तियां कम नहीं की हैं बल्कि बढ़ाई हैं। सरपंचों को भी अब सुशासन के हिसाब से चलना होगा।

क्या है ई-टेंडरिंग? 

ग्राम पंचायतों में होने वाले कामों में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए हरियाणा सरकार ने ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया बनाई है जिसके तहत दो लाख से अधिक का काम करवाने के लिए ई-टेंडर जारी किया जाएगा। फिर अधिकारियों की देखरेख में ठेकेदारों से काम करवाया जाएगा। इसके अलावा सरपंचों को गांवों के विकास कार्यों के बारे में सरकार को ब्योरा देना होगा। सरकार का मानना है कि ऐसा करने से भ्रष्टाचार को रोकने में कामयाबी मिलेगी।

क्या है राइट टू रिकॉल? 

राइट टू रिकॉल के तहत अब हरियाणा के गांवों के लोगों के पास ये अधिकार आ गया है कि अगर सरपंच गांव में विकास कार्य नहीं करवाएगा तो उसे बीच कार्यकाल में हटाया जा सकता है। सरपंच को हटाने के लिए गांव के ही 33 प्रतिशत मतदाता को लिखित शिकायत संबंधित अधिकारी को देनी होगी । जिसके बाद सरपंच को हटाया जा सकता है। यह अधिकार खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी तथा सीईओ के पास जा सकता है।

राइट टू रिकॉल को मान रही है जनता अच्छा, विधानसभा स्तर पर लागू करे सरकार

सरपंचों पर राइट टू रिकॉल लागू करने की बात करने वाली सरकार को अपने विधायकों व मंत्रियों पर भी यह कानून लागू करना चाहिए। यदि सरपंच जनता की आशाओं पर खरा नहीं उतरते तो सरकार के मंत्री उन्हें राइट टू रिकॉल के जरिए हटाने की बात करते है लेकिन वे यह जवाब भी दें कि यदि कोई विधायक या मंत्री जनता की आशाओं पर खरा न उतरे तो उस पर यह कानून लागू क्यों नहीं किया जाता।

यहां यह बता दें कि राइट टू रिकॉल का नारा देश के दिवंगत प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल ने दिया था। यह उनकी सोच थी की लोकराज लोक लाज चलता है। यह दिगर बात है कि दुष्यंत चौटाला ने इस कानून को कानूनी रूप दिया। आज प्रदेश में उनके वंशज उपमुख्यमंत्री है तो उन्हें आगे आकर विधानसभा स्तर पर अपने पूर्वज के सपने को साकार करना चाहिए। 

टेंडरिंग का विरोध क्यों कर रहे है सरपंच

हरियाणा के सरपंचों का कहना है कि सरकार की ये स्कीम सरपंचों के खिलाफ है. कि अगर गांवों में विकास करने के लिए पैसा उन्हें सीधे तौर पर नहीं दिया जाएगा तो ठेकेदार और अधिकारी अपनी मनमर्जी से काम करेंगे। इससे गांव का विकास नही हो पाएगा।

वही आपको बता दें कि सरपंच लगातार अपनी मांगों को लेकर अड़े हुए है और सरकार से ई-टेंडरिंग और राइट टू रिकॉल को वापस लेने की मांग कर रहे है। सरपंचों ने सरकार पर ठेका प्रथा को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सरकार अधिकारियों और ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने का काम कर रही है।

ई टेंडरिंग के पीछे क्या पैसा है?

आम जनता में यह धारणा प्रबल बलवती होती जा रही है की सरकार और सरपंचों के बीच ई टेंडरिंग की है लड़ाई सीधी भ्रष्टाचार से जुड़ी हुई है। इस मामले में न तो सरकार ईमानदार दिखाई देती है और ना ही सरपंच। प्रदेश में अनेक स्थानों पर सरपंचों द्वारा घोटाले के अनेक मामले समय-समय पर उजागर होते रहे हैं। यहां यह विदित रहे कि इससे पूर्व सरकार ने नगर निकायों मैं भी चुने हुए प्रतिनिधियों की शक्तियों को कम किया है। जब नगर निगम और नगर पालिका के प्रधान इसके विरोध में नहीं आए तो सरपंच ही क्यों आ रहे हैं?

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