भाजपा-जजपा सरकार द्वारा समय पर पंचायत चुनाव न करवाने के चलते गांवों के विकास का लगभग 4500 करोड़ रूपये का बजट पहले ही लैप्स हो चुका है : विद्रोही
इस वित्त वर्ष के बजट खर्च में जब केवल दो माह का समय बचा है, तब सरकार ने गांवों के 2 लाख रूपये से ज्यादा के विकास कार्यो में ई-टेडरिंग की शर्त लगाकर अघोषित रूप से इस वर्ष के ग्रामीण विकास बजट को लैप्स करवाने की भूमिका भी बना दी है : विद्रोही

18 जनवरी 2023 – ग्राम पंचायतों के विकास कार्यो में ई-टेडरिंग मुद्दे पर भाजपा सरकार की हठधर्मिता के चलते नवनिर्वाचित सरपंचों व सरकार के बीच बढ रहे टकराव पर स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने गंभीर चिंता प्रकट करते हुए इसे ग्रामीण विकास को रोकने की सरकारी साजिश बताया। विद्रोही ने कहा कि भाजपा-जजपा सरकार द्वारा समय पर पंचायत चुनाव न करवाने के चलते गांवों के विकास का लगभग 4500 करोड़ रूपये का बजट पहले ही लैप्स हो चुका है और इस वित्त वर्ष के बजट खर्च में जब केवल दो माह का समय बचा है, तब सरकार ने गांवों के 2 लाख रूपये से ज्यादा के विकास कार्यो में ई-टेडरिंग की शर्त लगाकर अघोषित रूप से इस वर्ष के ग्रामीण विकास बजट को लैप्स करवाने की भूमिका भी बना दी है। सरकार व मुख्यमंत्री खट्टर के रवैये से साफ है कि वे गांव के विकास पर राशी खर्च करने की बजाय उसे लैप्स करवाकर सरकार के बजट घाटे की पूर्ति के लिए एक सुनियोजित रणनीति के तहत नवनिर्वाचित सरपंचों से टकराव पैदा कर रहे है। 

विद्रोही ने कहा कि पंचायत मंत्री देवेन्द्र बबली के अभद्र बोलो व सरपंचों को चोर बताने से शुरू हुआ टकराव अब बडा होता दिखाई दे रहा है। सरकार ई-टेडरिंग के लाख फायदे गिनवाये लेकिल प्रदेश के ज्यादातर सरपंच इस व्यवस्था को स्वीकारने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नही है। ई-टेडरिंग के विरोध को पहले भाजपा-जजपा सरकार कुछ सरपंचों का विरोध बताकर हल्के में ले रही थी। अब तो यह विरोध पूरे प्रदेश में फैल चुका है। हर जगह सरपंच ई-टेडरिंग का विरोध कर रहे है। ई-टेडरिंग के फायदे या नुकसान अब इस पर बहस बेमानी हो चुकी है। सरकार के सत्ता अहंकार से ग्रामीण विकास तो प्रभावित हो रहा है, साथ में सरपंचों व सरकार के बीच में जो टकराव बढ़ रहा है, वह ग्रामीण विकास व प्रदेश की शांति के लिए शुभ संकेत नही है। विद्रोही ने सवाल किया कि सरकार सरपंचों को विश्वास में लिए बिना दो लाख रूपये से ज्यादा के ग्रामीण विकास कार्यो पर ई-टेडरिंग व्यवस्था थोपने को क्यों उतारू है? सरकार के इस हठधर्मी रवैये से यह तय है कि इस वित्त वर्ष के बचे दो महीनों मेें गांवों के विकास का पैसा निश्चित रूप से लैप्स होगा। सरकार यदि गांवों के विकास के प्रति जरा भी गंभीर है तो लोकतांत्रिक भावना का परिचय देकर ई-टेडरिंग की व्यवस्था को वापिस ले और सरपंचों को विश्वास में लेकर ही अगले वित्ता वर्ष से ई-टेडरिंग व्यवस्था पर आगे बढे। 

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