ओम शांति रिट्रीट सेंटर में हुआ कार्यक्रम
सम्पूर्ण जीवन दर्शन है श्रीमद भगवत गीता – स्वामी धर्मदेव महाराज

3 दिसम्बर 2022, गुरुग्राम – गीता अंतःकरण शुद्ध करने का दिव्य संदेश देती है। ब्रह्माकुमारीज संस्था की शिक्षाएं गीता को चरितार्थ कर रही हैं। उक्त विचार महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव ने ब्रह्माकुमारीज के गुरुग्राम स्थित ओम शांति रिट्रीट सेंटर में व्यक्त किए। उन्होंने श्रीमद भगवत गीता जयंती के उपलक्ष में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अथिति के तौर पर शिरकत की। उन्होंने कहा कि गीता सम्पूर्ण जीवन दर्शन है। जिसके दर्शन ब्रह्माकुमारीज संस्था में आकर होते हैं। श्रीमद भगवत गीता को अगर किसी ने आत्मसात किया तो ब्रह्माकुमारीज ने किया है। गीता को जीवन में उतारना ही उसका उद्देश्य है। गीता हमें विपरीत परिस्थितियों में स्थिर रहने का ज्ञान देती है। गीता श्रेष्ठ कर्म करने का संदेश देती है। वास्तव में कर्तव्य ही जीवन का श्रृंगार है। समूचे विश्व दर्शन में कहीं न कहीं गीता की विशेष भूमिका रही है।

संगीतकार ओम व्यास ने संगीत के मधुर स्वरों में दी गीता की प्रस्तुति

सुप्रसिद्ध संगीतकार ओम व्यास ने प्रभु स्मृति के गीतों के साथ-साथ गीता ज्ञान को भी संगीत के स्वरों में पिरोया। उन्होंने कहा कि संस्था के साथ उनका सम्बन्ध 40 वर्षों से है। राजयोग से जीवन में एक अद्भुत परिवर्तन आया है।

सर्व शास्त्रों का सार है श्रीमद भगवद गीता

निराकार परमात्मा द्वारा दिए गए सहज ज्ञान और राजयोग का यादगार है श्रीमद भगवद गीता

ओम शांति रिट्रीट सेंटर की निदेशिका आशा दीदी ने कहा कि श्रीमद भगवत गीता सर्व शास्त्र शिरोमणि है। भगवत गीता कर्मयोग का शास्त्र है। गीता हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। गीता जयन्ति मनाने का वास्तविक भाव उसकी प्रासंगिकता को समझना है। गीता एक ही शास्त्र है, जिसमें भगवानुवाच है। गीता वास्तव में परमात्मा के द्वारा दिए गए ज्ञान का यादगार ग्रंथ है। गीता में वर्णित धर्मग्लानी का असली स्वरूप कलयुग के अंत को दर्शाता है। निराकार शिव परमात्मा कलयुग अंत में साधारण मनुष्य तन में अवतरित होते हैं। जिनका कर्तव्य वाचक नाम प्रजापिता ब्रह्मा रखते हैं। ब्रह्मा के द्वारा ही परमात्मा शिव सहज ज्ञान और राजयोग से सतयुगी स्वर्णिम दुनिया की स्थापना करते हैं। महाभारत में वर्णित युद्ध कलियुगी महाविनाश का यादगार है। कलयुगी महाविनाश से पूर्व ही परमात्मा ने आत्मज्ञान से दैवी संस्कारों को पुनर्जागृत किया। जिसको कालान्तर में श्रीमद भगवत गीता का स्वरूप प्रदान किया गया।

संस्था के दिल्ली, करोल बाग की संचालिका बीके पुष्पा ने कहा कि गीता के आगे ही श्रीमत शब्द आता है। जिसका मूल कारण उसमें समाई परमात्मा की श्रेष्ठ मत है।

दिल्ली से बीके जय प्रकाश एवं बीके राज ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम में संस्था के अनेक सदस्यों ने शिरकत की। कार्यक्रम का संचालन बीके विधात्री ने किया।

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