WordPress database error: [Deadlock found when trying to get lock; try restarting transaction]
CREATE OR REPLACE VIEW wp_5pzm3tzkyg_wsm_monthWiseVisitors AS SELECT DATE_FORMAT(CONVERT_TZ(visitLastActionTime,'+00:00','+05:30'),'%Y-%m') as recordMonth, COUNT(*) as visitors FROM wp_5pzm3tzkyg_wsm_logUniqueVisit GROUP BY DATE_FORMAT(CONVERT_TZ(visitLastActionTime,'+00:00','+05:30'),'%Y-%m')

WordPress database error: [Deadlock found when trying to get lock; try restarting transaction]
CREATE OR REPLACE VIEW wp_5pzm3tzkyg_wsm_monthWisePageViews AS SELECT DATE_FORMAT(CONVERT_TZ(visitLastActionTime,'+00:00','+05:30'),'%Y-%m') as recordMonth, SUM(totalViews) as pageViews FROM wp_5pzm3tzkyg_wsm_pageViews GROUP BY DATE_FORMAT(CONVERT_TZ(visitLastActionTime,'+00:00','+05:30'),'%Y-%m')

सत्संग की एक घड़ी भी लाखो तप साधना से ज्यादा है कल्याणकारी : कंवर साहेब - Bharat Sarathi
बिना परमात्मा और सतगुरु के आपके कर्म भी उस शून्य की भांति निर्थक हैं
कर्म के लेख केवल सतगुरु सुधार सकते हैं

चरखी दादरी/रोहतक जयवीर फौगाट,

26 नवंबर, सत्संग का प्रेमी चातक पक्षी की भांति होता है। सत्संग प्रेमी हर सुख दुख से ऊपर उठ कर लाभ हानि से बेखबर सत्संग करता है क्योंकि वह सत्संग के महत्व को समझता है। सत्संग की तो एक घड़ी भी लाखो तप साधना से ज्यादा कल्याणकारी है। सत्संग परमात्मा मिलन का द्वार है। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने रोहतक के गोहाना रोड पर स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाए। 

गुरु महाराज ने कहा कि परमात्मा के जहूर के लिए तन मन धन की बाजी लगानी पड़ती है। जिस प्रकार शिक्षा के लिए हमें स्कूल कॉलेज विश्वविद्यालय में जाना पड़ता है और शिक्षको से पढ़ना पड़ता है वैसे ही सतज्ञान और परमात्मा मिलने के लिए सतगुरु के सत्संग रूपी विश्वविद्यालय में जाना ही पड़ेगा। हुजूर ने फरमाया कि हमने यमराज के भेंट ना जाने कितने सिर दिए होंगे। ना जाने हम कितनी यौनी इस काल और माया के जाल में भटके होंगे। अगर हम केवल एक सिर सतगुरु के भेंट कर देते यानी तन मन धन सतगुरु के अर्पण करके मान अभिमान बड़ाई से छूट जाते तो हमारा यह भटकाव भी खत्म हो जाता। हुजूर महाराज जी ने कहा कि इंसान पूरा जीवन संग्रह में लगा देता है। कितनी बद्दुआ लेता है लेकिन जब इस संसार से विदा होता है तो सब कुछ यहीं रह जाता है। फिर इंसान तड़पता है पछताता है लेकिन जो लेख वो लिख चुका वो मिटते नहीं हैं। कर्म के लेख केवल सतगुरु सुधार सकते हैं। तन मन से कर्म अच्छे किया करो क्योंकि आपके कर्मो का लेखा आपके साथ चलता है।

सतगुरु महाराज ने कहा कि कई इस गफलत में रहते हैं कि जब हमने किसी का बुरा किया ही नहीं तो फिर हमें किसी सत्संग या सतगुरु की क्या आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कर्म गति आप तय नहीं करते। बिना परमात्मा और सतगुरु के आपके कर्म भी उस शून्य की भांति निर्थक हैं जिनके आगे एक दो या कोई और अंक नहीं लिखा जाता। सतगुरु वो महत्वपूर्ण अंक ही जो आपके जीरो रूपी कर्मो का महत्व बढ़ाते हैं। उन्होंने कहा कि हम कहते तो हैं कि हमने नाम ले लिया लेकिन क्या आपने अपने आप को उस नाम का सही पात्र भी बनाया क्या।

उन्होंने कहा कि एक कुएं में एक जानवर गिर कर मर गया और पानी में दुर्गंध हो गई। गांव वालो ने कई बार कुएं से पानी निकाला लेकिन दुर्गंध नहीं गई। वहीं से गुजर रहे महात्मा ने देखा तो उन्होंने कहा कि पानी बदलने से दुर्गंध नहीं जाएगी दुर्गंध तो तब जाएगी जब उसके अंदर से जानवर की सड़ी हुई करंग नहीं निकाल देते। हमारे साथ भी यही हो रहा है। हम बाहर की सफाई तो रोज करते हैं लेकिन मन में पड़े हुए करंग को नहीं निकालते।

गुरु महाराज जी ने कहा कि हम सामाजिक प्राणी है। हमारा प्रथम अभ्यास सामाजिक जीवन को सुधारने का होना चाहिए। जब बुराइयां हट जाएगी तो अच्छाई भी आराम से टिकेंगी। गुरु महाराज जी ने कहा कि सुरत शब्द का योग सहज सरल योग है लेकिन कठिनाई यह है कि इस योग के लिए तन मन धन की बाजी लगानी पड़ती है। उन्होंने कहा कि बेशक ध्यान साधना ना करना लेकिन अपने जीवन को संवार लो। परमात्मा हर पल हमारे संग है लेकिन हम अपने बदकर्मो के कारण उसके जुहूर का दीदार नहीं कर पाते। 

गुरु महाराज जी ने कहा कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। हर पल अपने आप को चेतावनी देते रहो।  अपने बच्चो को हर पल अपनी नजरों में रखो। उन्हे विरासत में धन नहीं संस्कार दो क्योंकि अगर वो संस्कारी बन गया तो धन स्वयं ही कमा लेगा। इस जीवन को वृथा मत खोना क्योंकि यह जन्म लाखो जन्मों के भटकाव के बाद पाया है। हर पल चेत कर भक्ति कमाओ। साधना धैर्य संतोष रूपी गुण धारो। उन्होंने कहा कि परमात्मा का मार्ग बहुत सुगम है अगर आप इस सुगम मार्ग पर भी नहीं चल सकते तो दोष आपका ही है और यह बिल्कुल ऐसा है जैसे नाच ना आने पर आंगन को टेढ़ा बताना। हुजूर ने कहा कि गुरु बनने की कोशिश मत करो। बनो तो शिष्य बनो क्योंकि जो पूर्ण शिष्य बन जाता है वो अपना अपना नहीं दूसरो का भी कल्याण कर जाता है। उन्होंने परोपकार और परहित का संदेश देते हुए कहा कि पहले स्वयं को सुधारो, पहले स्वयं के अंदर दया प्रेम और भक्ति का संचय करो, पहले खुद अपने कर्म सुधारो।

error: Content is protected !!