उपहार की कीमत से अधिक भावना होती है सर्वाेपरि

किसी आयोजन पर उपयोगी उपहार ही बड़ी यादगार

फतह सिंह उजाला

पटौदी । कहावत है जैसा खाए अन्न वैसा हो जाए मन। जैसा पिए पानी वैसी हो जाए वाणी और संगत की रंगत अपना असर और प्रभाव अवश्य दिखाती ही है । सडे को समाज सुधारक ,चिंतक, संस्कृत के प्रकांड विद्वान, धर्म ग्रंथों-वेदों के मर्मज्ञ आश्रम हरि मंदिर संस्कृत महाविद्यालय पटौदी के पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव का 61वां जन्मोत्सव धूमधाम के साथ भूरारानी में श्रद्धालुओ के बीच श्रद्धाभाव से मनाया गया।

श्रद्धालुओं के द्वारा जन्मोत्सव के मौके पर भेंट स्वरूप दी गई सामग्री को देखते ही सबसे पहले महामंडलेश्वर धर्मदेव के यही शब्द थे कि, वाह – यह भेंट करने के लिए मंगवाई गई है। यही वह शब्द थे जो अपने आप में बहुत बड़ा आध्यात्मिक और दुनियादारी सहित सामाजिक सरोकार रखने वाला संदेश, शिक्षा और ज्ञान देने के लिए पर्याप्त होते हैं ।

भेंट में मिले उपहार को देखते ही उपहार स्वीकार करने वाले के मन में सीधा धर्म-कर्म  व श्रद्धाभाव ही उनके जेहन में आया, तो इसी बात से स्पष्ट भी हो जाता है की भेट अथवा उपहार जिसे भी दिया गया, वही उसकी उपयोगिता और महत्व को सबसे अधिक समझने में सक्षम होता है।  जन्मोत्सव का उपहार स्वीकार करने के बाद महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने प्रफुल्लित मनोभाव से अपना शुभ आशीष प्रदान किये। उन्होंने कहा किसी भी आयोजन में भेंट अथवा उपहार के मूल्य से अधिक महत्व उपहार की उपयोगिता और भेंट देने वाले की भावना को समझना भी एक अध्यात्मिक ज्ञान का ही एक भाग अथवा खंड कहा जा सकता है। जीवन में अनेक मौके और अवसर ऐसे आते हैं की जब कोई भी व्यक्ति किसी को निस्वार्थ भाव से कोई भी भेंट अथवा उपहार देता है , तो इस बात में संकोच नहीं होना चाहिए कि स्वीकार करने वाले और भेंट देने वाले के मनोभाव एक जैसे ही होना भी तय है। यही सब बातें अध्यात्मिक ज्ञान और आत्मीयता की पहचान भी कही जा सकती हैं।

इसी मौके पर महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव ने कहा सभी लोगों को अपने जीवन के उत्साही और यादगार पल समाज के उपेक्षित, जरूरतमंद लोगों के बीच ही साझा करने चाहिये, ऐसा करने से अत्यधिक आत्म संतोष प्रदान होने के साथ ही परमपिता परमात्मा भी प्रसन्न होते है।

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