मानेसर तहसील के सामने प्रभावित किसानों का धरना 145 वें दिन जारी

एमएलए जरावता द्वारा 15 नवंबर तक समाधान का दिया था आश्वासन

किसानों की एक ही मांग जमीन रिलीज या प्रति एकड़ 11 करोड मुआवजा

किसानों की मांग एमएलए जरावता पूरा करें अपना किया गया वायदा

16 नवंबर को बैठक में आगामी बड़े आंदोलन की बनाई जाएगी रणनीति

18 नवंबर को दिल्ली जयपुर नेशनल हाईवे जाम का विकल्प रखा खुला

फतह सिंह उजाला

मानेसर/पटौदी । दक्षिणी दिल्ली के साथ लगते और दिल्ली जयपुर नेशनल हाईवे के किनारे पर मौजूद मानेसर नगर निगम सहित मानेसर सब डिवीजन के तहत करीब आधा दर्जन गांवों की जमीनों के अधिग्रहण से मुक्त करने या बाजार भाव के मुताबिक मुआवजा भुगतान को लेकर प्रभावित किसानों का धरना प्रदर्शन 145वें दिन भी जारी रहा । इसी बीच अब यह मामला पटोदी के एमएलए और भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश सचिव एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावता की प्रतिष्ठा और सुबे की गठबंधन सरकार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनता चला आ रहा है । गौरतलब है कि गांव कासन, सेहरावन, कुकडोला, फाजिलवास, मोकलवास, पुखरपुर, खरखड़ी, बांस लाबी अन्य प्रभावित किसानों के द्वारा वर्ष 2011 में अधिग्रहण की गई जमीन का विरोध करते हुए बाजार भाव से मुआवजा भुगतान को लेकर विभिन्न स्तर पर आंदोलन का सिलसिला जारी है ।

अपनी मांगों के समर्थन में प्रभावित किसान और किसान परिवार के सदस्यों के द्वारा जारी की गई भूख हड़ताल को देखते हुए बीती 2 नवंबर को पटौदी के एमएलए एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावता स्वयं किसानों के बीच धरनास्थल पर पहुंचे और जूस पिलाकर भूख हड़ताल स्थगित करवाते हुए आश्वासन दिया कि आगामी 15 नवंबर तक 1810 एकड़ जमीन के मामले का सरकार के साथ बातचीत कर हर प्रकार से सेटलमेंट करवा दिया जाएगा । लेकिन 14 नवंबर तक किसी भी प्रकार का कोई भी रिस्पांस नहीं मिलता देख , सोमवार को एक बार फिर से मानेसर तहसील के सामने धरना स्थल पर प्रभावित गांवों के किसानों की एक सामूहिक बड़ी बैठक किसान बचाओ जमीन बचाओ संघर्ष समिति के तत्वाधान में संपन्न हुई । जिस प्रकार से एमएलए एडवोकेट सत्य प्रकाश जी रावता के द्वारा 15 नवंबर तक किसानों की मांग का समाधान करवाने का आश्वासन दिया गया, उसे देखते अब यह पूरा मामला गठबंधन सरकार के लिए कहीं ना कहीं जी का जंजाल भी बनता दिखाई दे रहा है।  सूत्रों के मुताबिक सरकार किसानों की मांग के मुताबिक प्रति एकड़ 11 करोड़ मुआवजा का भुगतान करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है । दूसरी और किसानों की एक ही मांग है या तो उनकी जमीनों को अधिग्रहण से मुक्त कर रिलीज किया जाए या फिर बाजार भाव से जमीन का मुआवजा का भुगतान किया जाए।  इस मुद्दे को लेकर जमीन बचाओ किसान बचाओ संघर्ष समिति के प्रतिनिधिमंडल और एचएसआईडीसी सहित सरकार के प्रतिनिधि मंडल के बीच आधा दर्जन से अधिक बैठक भी हो चुकी हैं। लेकिन इनका कोई भी नतीजा नहीं निकल सका।

सोमवार को धरने पर बैठे सत्यदेव सरपंच कासन, भूपेंद्र बंटी लंबरदार कासन राजू यादव कासन राजेंद्र शहरावण मुकेश जांगड़ा चंद्र होलदार मनतू पंडित इमरत पहलवान धर्मपाल प्रजापत सुरेंद्र शर्मा ओंकार बांस लांबी सुंदर चौहान अजीत पार्षद राजवीर मानेसर मोती ईश्वर पंडित संजय पंडित पन्नालाल अवीरेंद्र यादव महिपाल व अन्य  किसानों के तेवर कुछ अलग ही दिखाई दिए । किसानों ने साफ-साफ कहा कि बीते एक दशक से प्रभावित किसान अपनी जमीन बचाने के लिए शासन प्रशासन और सरकार की चौखट पर अपनी जूतियां घिसने के लिए मजबूर हो रहे हैं । इसी बीच राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू और पीएम मोदी के नाम भी किसानों के द्वारा ज्ञापन सौंपा जा चुका है । धरने पर बैठे किसानों के द्वारा साफ-साफ कहा गया जब 13 महीने किसान आंदोलन चल सकता है और मोदी सरकार को भी अपना फैसला बदलना पड़ गया ? इसी प्रकार से क्या पीएम मोदी और सीएम मनोहर लाल को मानेसर में लगभग एक 5 महीने से चल रहे किसानों के आंदोलन के बारे में कोई जानकारी नहीं ? किसान अब किसी भी कीमत पर अपनी जमीन सरकार को नहीं देने वाले हैं । सरकार को यदि जमीन इतनी ही प्यारी और जरूरी है तो इसके लिए बाजार भाव के मुताबिक प्रति एकड़ 11 करोेड़ मुआवजा से कम भुगतान किसानों को स्वीकार भी नहीं है ।

धरने पर बैठे किसानों ने कहा दक्षिणी हरियाणा का किसान इतना अधिक कमजोर भी नहीं है,  जितना कि सरकार के द्वारा मान लिया गया है । इस दक्षिणी हरियाणा अहिरवार का किसान बहुत दरिया दिल किसान है । भाजपा के वायदों पर भरोसा करते हुए हरियाणा और केंद्र में दो बार सरकार बनाने में अहीरवाल क्षेत्र के किसानों ने सबसे महत्वपूर्ण अपना योगदान भी दिया । सरकार को और सत्तापक्ष को यह बात भी याद रखनी ही होगी।  किसानों ने साफ-साफ कहा कि 15 नवंबर तक पटौदी के एमएलए एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावता अपने वायदे के मुताबिक जमीन के मुद्दे का समाधान नहीं करवा सके, तो फिर 16 नवंबर को एक बार फिर से बड़ी पंचायत आयोजित की जाएगी । इसके बाद 18 नवंबर को दिल्ली जयपुर नेशनल हाईवे को पूरी तरह से जाम करने का विकल्प भी खुला रखा गया है । लेकिन इतना अवश्य है कि अब सरकार से जो भी बातचीत होगी , वह आश्वासन सरकार द्वारा किसानों को लिखित में ही देना होगा ।  किसानों ने सवाल किया क्या इस देश के किसानों को अपने ही देश के पीएम के समक्ष अपनी बात कहने और बताने का भी अधिकार नहीं रह गया है ? ऐसा क्या कारण और मजबूरी रही किसानों को बीते दिनों पीएम आवास तक जाने से भी रोक दिया गया था। किसानों में जिस प्रकार का सोमवार को गुस्सा दिखाई दिया वह उनके इस कथन में भी साफ महसूस किया जा सकता है, कि जो सरकार किसानों की नहीं हो सकती वह किसी और की भी नहीं हो सकती है । राजा का दायित्व प्रजा की समस्या को सुनना और उनकी समस्याओं का समाधान करना ही होता है। लेकिन लगता है सरकार 1810 एकड़ जमीन के मामले को लेकर कथित रूप से प्रॉपर्टी डीलिंग का ही काम कर रही है ।

8347 किसानों को देना है मुआवजा
सोमवार को धरने पर बैठे जमीन बचाओ किसान बचाओ संघर्ष समिति के सदस्यों सहित अन्य किसानों के द्वारा बताया गया कि कुल 1810 एकड़ जमीन में किसानों के पास 2-4-6’8 मरला जैसे छोटे छोटे जमीन के ही टुकड़े बचे हुए हैं । इन छोटे-छोटे जमीन के टुकड़ों पर किसानों के द्वारा अपने मवेशी इत्यादि पालकर या रहते हुए जीवन यापन किया जा रहा है । 1810 एकड़ जमीन में से सरकार के द्वारा 8347 किसानों को उनकी जमीन के रकबे के मुताबिक मुआवजे का भुगतान किया जाना है । इसमें से मुश्किल से 5 किसानों के द्वारा अपनी इन्हीं पारिवारिक मजबूरियों के कारण ही मुआवजा उठाया गया है । इसके अलावा किसी अन्य किसान के द्वारा जमीन का मुआवजा 1 रूपया भी सरकार से स्वीकार नहीं किया गया । सरकार आज के समय जो भी बाजार भाव है , जमीनों का उसी अनुपात के मुताबिक प्रभावित किसानों को मुआवजे का भुगतान करें । यदि सरकार ऐसा करने में इच्छुक नहीं है, तो फिर जमा जमीन को रिलीज कर देना चाहिए ।

सरकार की नीति प्रॉपर्टी डीलिंग वाली
जमीन बचाओ किसान बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले धरना स्थल पर बैठे किसानों के द्वारा साफ-साफ कहा गया कि मौजूदा गठबंधन सरकार की नीति और नियत पूरी तरह से प्रॉपर्टी डीलिंग वाली ही दिखाई दे रही है । हमारी ही जमीन को कि सरकार अधिग्रहण कर रही है , इसमें भी 55 लाख रुपए प्रति एकड़ मुआवजा का भुगतान का प्रस्ताव रखा गया है । मजे की बात यह है कि हमारी ही जमीन को सरकार 30 हजार रूपए गज के हिसाब से बेचने के लिए कह रही है । सवाल यह है कि आज के समय में मानेसर जैसे औद्योगिक क्षेत्र में 55 लाख  में 300 या 400 गज का एक जमीन का टुकड़ा भी मिलना संभव ही नहीं है । सरकारी तो आती और जाती ही रहेंगी , लेकिन किसान हमेशा से था है और हमेशा ही रहेगा । लेकिन किसान मुफ्त के भाव किसी भी प्रकार से जान से भी कीमती अपनी जमीन को सरकार को सरकार की मनमर्जी के मुताबिक देने वाला नहीं है । यह बात भी सरकार को भलीभांति जान लेनी चाहिए। मानेसर क्षेत्र के किसान अब किसी भी प्रकार से गठबंधन सरकार की जुमलेबाजी में आने वाले नहीं है । किसानों ने मन बना लिया है अब जो भी कुछ आगे आंदोलन होगा, वह आर पार का और निर्णायक ही आंदोलन किया जाएगा । यदि किसी भी प्रकार से हालात बिगड़ते हैं तो उसके लिए पूरी तरह से सरकार की जिम्मेदारी सहित जवाबदेही भी होगी।

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