त्योहार व ग्रंथ का महत्व तभी है जब हम उसकी शिक्षाओं को अपने जीवन में ढालें

दिनोद धाम जयवीर फौगाट,

23 अक्टूबर, दीपावली का त्योहार हिंदुस्तान का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है। यह त्यौहार असत्य पर सत्य की विजय के साथ-साथ खुशहाली उन्नति और समृद्धि का भी प्रतीक है। दिवाली एक नहीं कई संदेश देती है। मर्यादा, सत्य, आदर्श का संदेश देने के साथ ये हमें इस बात का भी संदेश देती है कि कर्म की मार से अवतारी पुरुष भी नहीं बच पाए।

हुजूर कंवर साहेब जी महाराज ने फरमाया कि दीपावली का त्यौहार दसरथ पुत्र श्री रामचंद्र के 14 वर्ष पश्चात अयोध्या लौटने पर जनमानस द्वारा दर्शाई गई खुशी को भी स्मरण कराता है। उन्होंने कहा कि रामायण का ज्ञान यथार्थ ज्ञान है। उसे पांचवा वेद कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि यह सत्य, आदर्श, नियम, मर्यादा और संस्कार धारण कर जीवन जीने का सलीका सुझाती है। रामायण रावण के माध्यम से हमें यह भी चेताती है कि यदि आप अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हो या अपने ज्ञान का अहंकार करते हो तो भी आपका विनाश अवश्यंभावी है। हालांकि रावण ने तप-जप के बल पर सब देवताओं पर विजय प्राप्त कर ली थी लेकिन फिर भी उनका सही उपयोग न करने के लिए उसे कितनी बड़ी सजा मिली।

हुजूर ने कहा कि किसी भी त्योहार या ग्रंथ का तभी महत्व है जब हम उसकी शिक्षाओं को अपने जीवन में ढालें। रामायण हमें कर्तव्यों का निर्वहन का संदेश देती है। भाई का भाई के प्रति, पुत्र का पिता के प्रति, पति पत्नी का एक दूसरे के प्रति, मित्र का मित्र के प्रति क्या कर्तव्य होने चाहिए इसकी असल शिक्षा रामायण से मिलती है। हुजूर ने फरमाया कि श्रीराम केवल पुत्र पति या भाई नहीं थे वे तो जनमानस के रोम रोम में बसने वाली अनुभूति थे। यही कारण था कि उनकी अनुपस्थिति में अयोध्या में 14 वर्ष तक ना कोई खुशी मनाई गई ना कोई त्यौहार बना। जब वे माता सीता के संग वापस लौटे तब लोगों ने घी के दिए जलाए, पूरी अयोध्या को सजाया गया मिठाइयां बांटी, पुराना बैर विरोध भुला कर लोग एक दूसरे के गले मिले। तभी से ये दिवाली का त्योहार मनाया जाता है।

गुरु जी ने उपस्थित साध संगत को दीपावली के साथ साथ गोवर्धन पूजा और भैया दूज की शुभकामनाएं देते हुए फरमाया की हिंदुस्तान में हर त्योहार का अपना महत्व है। अपने कर्म और धर्म पर अडिग रह कर आप ऐसे कार्य करो जिसमें आपका भी कल्याण हो और औरों का भी भला हो। अगर आप भलाई करते हो तो आपका सदैव भला ही होगा। बाहर के दिए जलाने के साथ साथ अपने अंतर में भी दीप जलाओ जिससे आपका जगत भी सुधरे और अगत भी।

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