विजयदशमी बुरे कर्मो पर विजय पाने का संदेश देता है : हजूर कंवर साहेब जी महाराज 

चरखी दादरी/नजफगढ़ जयवीर फौगाट

02 अक्टूबर, विजयदशमी बुरे कर्मो पर विजय पाने का संदेश देता है। अपने मन वचन और कर्म को पवित्र रखो। गुरु की रजा में रहना सीखो तभी विजयदशमी का त्योहार सार्थक होगा। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने दिल्ली के घेवरा मोड़, निलवाल रोड पर स्थित राधास्वामी आश्रम में प्रकट किए। हुजूर ने कहा कि दो दिन बाद विजयदशमी है और आज हिंदुस्तान के दो महान सपूतों का जन्मदिवस है ये तीन के संगम से आज का दिन बहुत महान है और ऐसे महान दिन सत्संग होना इस दिन को पवित्र भी बना देता है।

उन्होंने फरमाया कि जहां विजय दशमी का त्योहार हमें इस जीवन को सत्य, निष्ठा, धर्म, भक्ति और सामाजिकता से जीने की प्रेरणा देता है वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री का जीवन हमें अहिंसा, दया, प्रेम और ईमानदारी से कर्तव्य निर्वहन का संदेश भी देता है। उन्होंने कहा कि वक्त बड़ा बलवान होता है। विजयदशमी श्री रामचंद्र से जुड़ा त्योहार है और वक्त की सही कद्र श्री रामचंद्र जी की रचना से पता चलता है की कहां तो श्री रामचंद्र जी का राज तिलक होना था और कहां उनको बनवास मिला लेकिन फिर भी श्री रामचंद्र जी ने मर्यादित व्यवहार और संयम से अपना ये बुरा वक्त बिताया।

रावण के ऊपर श्री रामचंद्र जी की विजय हमें यह संदेश देती है कि बुराई हमेशा हारती है और सत्य हमेशा जीतता है। महाराज जी ने कहा कि बेशक रावण को आज भी हम उसके बुरे आचरण और व्यवहार के कारण जलाते हों लेकिन ये भी सत्य है की रावण प्रकांड पंडित और ज्ञानी था वो विवेकी भी था ऐसे में उसने सीता माता का हरण अपने किसी स्वार्थ के लिए नहीं किया था बल्कि उसने तो अपने कुल के परमात्मा द्वारा मोक्ष और मुक्ति के लिए ये रचना रची थी। गुरु जी ने फरमाया कि विजयदशमी का त्योहार हमें अहंकार का त्याग करना भी सिखाता है। उन्होंने कहा कि जब रावण मरणासन्न था तो श्री राम ने लक्ष्मण को उनसे शिक्षा लेने भेजा। लक्ष्मण रावण के सिरहाने खड़ा होकर ज्ञान के दान की विनती करने लगा तो रावण ने उसे बिना ज्ञान दिए वापस भेज दिया। लक्ष्मण ने श्री राम से कहा कि रावण तो बड़ा अभिमानी है और आप मुझे उससे ज्ञान लेने के लिए भेज रहे हो। श्री राम ने कहा कि लक्ष्मण आपने अवश्य कोई भूल की होगी, क्या आपने उनके पैरो की तरफ खड़े होकर ज्ञान दान की प्राथना की थी। लक्ष्मण ने कहा कि नहीं सिरहाने। श्री राम ने कहा कि अभिमान रावण ने नहीं आपने किया है। ज्ञान लेना हो तो ज्ञानी के पैरो में बैठना सीखो। तब रावण ने ज्ञान दिया था कि कभी अहंकार मत करना, दुश्मन को कमजोर मत समझो और आज का काम कल पर मत छोड़ो।

हुजूर ने कहा कि रामायण हमें नाम की महिमा भी बताती है। जब हनुमान जी सीता की खोज में निकले तो श्री राम ने उन्हें अपनी अंगूठी दे दी जिस पर उनका नाम लिखा था। हनुमान जी ने विशाल समुद्र पार कर दिया। सीता माता ने पूछा कि इतने बड़े समुद्र को आपने कैसे पार किया हनुमान। हनुमान जी ने कहा कि माता मैंने अपने मुंह में राम नाम की मुद्रिका रख ली और राम के नाम ने मुझे ये समुद्र पार करवा दिया। गुरु जी ने कहा कि मनुष्य अपना परिचय खुद देता है। आपके मन की बात आपके चेहरे पर आ जाती है। मन में प्यार, प्रेम और करुणा होगी तो चेहरा यही बताएगा।उन्होंने कहा कि आपके मन में यदि करूणा दया प्रेम है तो ही आप भक्ति कर सकते हैं और परमात्मा से मिलाप कर सकते हैं। भीलनी का जीवन इस बात को चरितार्थ करता है। भीलनी कुरूप थी, गुणहीन थी लेकिन उसके मन में श्री राम के प्रति अटूट प्रेम, विश्वास, आस्था थी। यही कारण है की श्री राम चंद्र जी बड़े बड़े ऋषि मुनियों, साधुओं की कुटिया छोड़ कर भीलनी के छप्पर में जाना पसंद किया और उसी के झूठे बेर खाए।

हुजूर कंवर साहेब जी महाराज ने कहा कि परमात्मा अपने भक्तो के हाजिर नाजिर रहते हैं। दिखावे की भक्ति कभी परमात्मा को नहीं रिझा सकती। परमात्मा आपके चढ़ावे का भूखा नहीं है वो तो आपके प्रेम का भूखा है। गुरु जी ने कहा कि आज कितने युगों और सदियों से रावण को जलाया जाता है लेकिन क्या हमारे मन से रावण मरा कभी। रावण हमारे मनो में आज भी बुराई के रूप में जिंदा है। गुरु महाराज जी ने कहा कि हम जब तक अपने गुरु को अपने मन में नहीं बिठाएंगे तब तक हमारे मन से चोरी, जारी, छल कपट नहीं हटेंगी। मन को पवित्र करो, जुबान को मीठा करो, छोटा बन कर रहो और पर उपकार करना सीखो यही मूलमंत्र है। इस मूलमंत्र को केवल गुरुमुख ही धारण कर सकता है। उन्होंने कहा कि कल्याण चाहते हो तो गुरु के सम्मुख रहो गुरु की रहनी में रहो और अपनी आंखो, कानो और हृदय को खुला रखो। उन्होंने कहा कि किस बात का संचय। कौन रहा है यहां। राम और कृष्ण जैसे अवतार भी सदा नहीं रहे तो हमारी क्या बिसात। संचय करो तो सद विचारो का करो, सत्संग वचनों का करो। जो आपको बुरे रास्ते पर लेकर जाता है वो मित्र नहीं आपका सबसे बड़ा दुश्मन है। गुरु जी ने साध संगत को फरमाया कि जो आपकी भक्ति के रास्ते में बाधा डालता है उसे त्यागने में कोई बुराई नहीं है।

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