गुरु की कृपा के बिना मानव अंतःकरण की शुद्धि भी संभव नहीं
मन के अंधकार को दूर कर अध्यात्म के द्वार तक पहुंचाता गुरु
गुरु के प्रति समर्पण के बिना प्रभु की प्राप्ति संभव ही नहीं

फतह सिंह उजाला
पटौदी ।
 आश्रम हरी मंदिर संस्कृत महाविद्यालय पटौदी परिसर में ब्रहमलीन स्वामी कृष्ण देव महाराज का 95वां जयंती महोत्सव सादगी एवं गरीमापूर्ण तरीके से मनाया गया । इस आयोजन में आश्रम हरी मंदिर शिक्षण संस्थान के अधिष्ठाता और संचालक महामंडलेश्वर धर्म देव महाराज सहित अन्य श्रद्धालु शामिल रहे। इस मौके पर अपने गुरू ब्रहमलीन स्वामी कृष्ण देव महाराज की समृति में हवन-यज्ञ में आहुतियां अर्पित कर उनके समाज कल्याण के दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प किया गया।

इस मौके पर धर्म ग्रंथ, वेद पुराणों के मर्मज्ञ महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने कहा कि गुरु कोई शब्द नहीं है। वास्तव में गुरु भारतीय सनातन संस्कृति और संस्कार को एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक पहुंचाने वाला मार्गदर्शक ही होता है। मनुष्य को जीवन में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शक अथवा गुरु की आवश्यकता होती है । वास्तव में व्यक्ति के लिए प्रथम गुरु मां ही होती है । लेकिन जब व्यक्ति को अपने आप को पहचानने की जरूरत हो और किस प्रकार से तमाम प्रकार के भौतिक संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद मन की शांति प्राप्त की जाए ? इसका मार्गदर्शन केवल आध्यात्मिक गुरु के द्वारा ही संभव है। उन्होंने कहा मन के अंदर विभिन्न प्रकार के शक, शंका और अन्य प्रकार की जिज्ञासा सहित आज के भौतिक युग में विभिन्न जंजाल में उलझे व्यक्ति को मन की शांति प्राप्ति का मार्ग दर्शन केवल मात्र आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर गुरु के द्वारा ही संभव है ।

गुरु को अनादि काल से सर्वश्रेष्ठ और कल्याणकारी मानकर गुरु पूजन की परंपरा चली आ रही है। इंसान को अपने वर्तमान में किए गए कार्यों को लेकर कई बार पछतावा भी होता है । लेकिन जब गुरु की कृपा और आशीर्वाद सहित मार्गदर्शन उपलब्ध हो जाए तो किसी भी व्यक्ति का कल्याण होने के साथ ही उसका परलोक भी सुधर जाता है । उन्होंने कहा गुरु के प्रति निष्ठा और समर्पण होना बहुत जरूरी है, गुरु अपने शिष्यों की विभिन्न प्रकार से परीक्षाएं भी लेते हैं । परीक्षा का स्वरूप कुछ भी हो सकता है । गुरु वास्तव में अपने आप को परमपिता परमेश्वर की भक्ति मैं इतना अधिक समर्पित कर देते हैं कि जिस भी देवी देवता को साक्षात मान उनकी तपस्या की जाए तो निश्चित ही परमपिता परमेश्वर की असीम कृपा प्राप्त होती है। इसी कृपा और आशीर्वाद के माध्यम से गुरु समाज में आध्यात्मिक चेतना लाकर परमपिता परमेश्वर को प्राप्त करने के मार्गदर्शन भी प्रदान करते हैं । जब तप तपस्या अनुष्ठान चाहे गुरु करें या फिर गुरु के प्रति समर्पित शिष्य या फिर अनुयाई । इसका फल तब ही प्राप्त होना संभव है जब पूरी तरीके से समर्पित भाव से इस कार्य को किया जाए। इस मौके पर महामंडलेेश्वर धर्मदेव के शिष्य अभिषेक बंगा, संजीव कपिल, गोबिंद नारंग, तिलक राज,अशोक शाास्त्री, विजय शाास्त्री सहित अन्य श्रद्धालू भी मौैजूद रहे।

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