पटौदी अस्पताल का मुद्दा…..क्या स्वास्थ्य कर्मचारियों को विभाग के अधिकारियों पर नहीं भरोसा !

3 सितंबर के विवाद के बाद 5 को पहुंचे थे सीएमओ डॉ वीरेंद्र यादव

आखिर ऐसी क्या मजबूरी रही 10 दिन बाद पुलिस में दी गई शिकायत

वरिष्ठ अधिकारियों ने नहीं सुना या कर्मचारियों को भरोसा ही नहीं रहा

10 दिन बीत जाने के बाद पुलिस में शिकायत देना बना अबूझ पहेली

फतह सिंह उजाला

गुरुग्राम/पटौदी । सितंबर महीना आरंभ होते ही साइबर सिटी गुरुग्राम के पटौदी विधानसभा क्षेत्र में पटौदी मंडी नगर परिषद का पटोदी नागरिक अस्पताल यहां घटित मामलों को लेकर लगातार सुर्खियां बना हुआ है। जब मामला बेहद गर्म होकर तूल पकड़ गया और मीडिया में खूब सुर्खियां बना इन हालात में 5 सितंबर को सीएमओ डॉ वीरेंद्र यादव पटौदी नागरिक अस्पताल सरप्राइज विजिट के लिए पहुंचे थे। उस समय उनके द्वारा अस्पताल में जो भी जिम्मेदार चिकित्सा अधिकारी उपलब्ध थे, उनसे जानकारी लेकर कुछ बदलाव के लिए मौखिक दिशा निर्देश दिए गए। साथ ही उन्होंने कथित रूप से निवर्तमान एसएमओ डॉक्टर योगेंद्र सिंह के छुट्टी पर होने की बात कहते , डॉक्टर सरदार गुरिंदर को बतौर एसएमओ जिम्मेदारी संभालने की बात कही।

हैरानी इस बात को लेकर है कि 2 सितंबर को लगभग साडे 4 घंटे तक अस्पताल परिसर में पैरामेडिकल स्टाफ और आउटसोर्स कर्मचारियों के द्वारा पूरी तरह से कामकाज ठप रखा गया । इस मामले में सीएमओ डॉ वीरेंद्र यादव के द्वारा दो टूक शब्दों में कहा गया नो वर्क नो पेमेंट , काम नहीं-तो वेतन नहीं के सिद्धांत पर हड़ताली कर्मचारियों का वेतन कटेगा, यह बात बोली गई । इसके बाद 3 सितंबर को जो कुछ भी पटौदी नागरिक अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में घटना घटी वह वास्तव में बेहद चौंकाने वाली और उस समय ऑपरेशन थिएटर में काम करने वाले डॉक्टरों के लिए सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण हालात थे। क्योंकि ऑपरेशन थिएटर में सिजेरियन डिलीवरी के ऑपरेशन का कार्य चल रहा था। इसी बीच में हंगामा किया जाने के कारण इस बात से भी इनकार नहीं की प्रसूता और गर्भस्थ शिशु दोनों में से या दोनों को बचाना चिकित्सक का चिकित्सीय और माननीय दोनों ही धर्म भी बनते हैं। इस मामले की जांच कहां तक पहुंची और कहां तक नहीं पहुंची, यह भी फिलहाल रहस्य ही बना हुआ है ? कौन अधिकारी या किस स्तर पर इस पूरे मामले की जांच की जा रही है , इसका खुलासा स्वास्थ्य विभाग के द्वारा नहीं किया जा रहा। केवल मात्र हाई लेवल कमेटी के द्वारा जांच किया जाने की बात कही गई है ।

इसी बीच में एक और बेहद चौंकाने वाला घटनाक्रम जो सामने आया वह यह है कि घटना के लगभग 10 दिन के बाद पटौदी नागरिक अस्पताल के ही कुछ कर्मचारियों के द्वारा पुलिस में शिकायत दी गई है । इस शिकायत में क्या कुछ लिखा है और कर्मचारियों के द्वारा किस प्रकार के आरोप लगाकर शिकायत दी गई है , इस बात की पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी । लेकिन पुलिस में शिकायत दी जाने की पुष्टि अवश्य हो चुकी है । हैरानी इस बात को लेकर है कि यह जो शिकायत दी गई है कथित रूप से बीते 3 सितंबर के पटौदी नागरिक अस्पताल के सेकंड फ्लोर पर ऑपरेशन थिएटर प्रकरण को लेकर ही दी गई है । इस बात को लेकर भी हैरानी है कि ऐसी क्या मजबूरी रही और ऐसे क्या हालात बने या फिर किस अधिकारी के इशारे पर 10 दिन तक किसी प्रकार की शिकायत नहीं दिया जाने के बाद, अचानक 10 दिन के बाद पुलिस में मामला पहुंचाया गया ?

जानकारों का कहना है कि जब घटना और वारदात पटोदी नागरिक अस्पताल परिसर के सेकंड फ्लोर पर ऑपरेशन थिएटर प्रकरण को लेकर घटी । तो सबसे पहले अस्पताल प्रशासन या अस्पताल के जो भी उस समय जिम्मेदार चिकित्सा अधिकारी ड्यूटी पर थे , उनको ही लिखित में शिकायत दी जानी चाहिए थी या उनके संज्ञान में मामला लाया जाना आवश्यक था। यदि फिर भी उस समय ऑन ड्यूटी चिकित्सा अधिकारी के द्वारा अनदेखी की गई तो संबंधित स्वास्थ्य कर्मचारियों को अपने जिला के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी सीएमओ वीरेंद्र यादव को अपने साथ घटित मामले की शिकायत देते हुए जानकारी दी जानी चाहिए थी । आरंभिक स्तर पर कर्मचारियों के द्वारा ऑन ड्यूटी काम करते समय किसी भी विवाद को लेकर या लड़ाई झगड़े कहासुनी हाथापाई इत्यादि को लेकर घटना की जानकारी ऑन ड्यूटी अधिकारी या फिर अपने ही विभाग के जिला स्तर के वरिष्ठ अधिकारी तक पहुंचाया जाना कथित रूप से सेवा शर्तों का दायरे में माना जाता है । लेकिन लगता है कथित रूप से पटौदी नागरिक अस्पताल के कर्मचारियों को अपने ही होम स्टेशन पटौदी नागरिक अस्पताल के ऑन ड्यूटी चिकित्सा अधिकारी पर 13 सितंबर तक इसके साथ ही जिला के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी सीएमओ डॉ वीरेंद्र यादव पर भी शायद किसी प्रकार का भरोसा नहीं था, कि उनकी शिकायत की सुनवाई की जाएगी या फिर कोई एक्शन लेने के लिए वरिष्ठ अधिकारी पुलिस तक कथित पीड़ित कर्मचारियों की फरियाद को पहुंचाने का कार्य करेंगे।

इस पूरे घटनाक्रम को देखे तो चर्चा यहां तक गर्म है कि जिस प्रकार से 10 से 11 दिन का अंतर रखकर अचानक पटौदी नागरिक अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मचारियों के द्वारा पुलिस का दरवाजा खटखटाया गया है । कथित रूप से इसके पीछे भी इस बात से इंकार नहीं की किसी और का भी सहारा भी हो सकता है ? बहरहाल अब देखना यह है कि इस पूरे प्रकरण को लेकर जो मामला पुलिस प्रशासन तक पहुंच चुका है, उसमें पुलिस प्रशासन प्राप्त हुई शिकायत पर क्या कार्रवाई करता है या फिर स्वास्थ्य विभाग और स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में पुलिस तक पहुंची शिकायत को पुलिस प्रशासन के द्वारा लाया जाता है ।

3 सितंबर को मौके पर थी पुलिस
पटौदी नागरिक अस्पताल सेकंड फ्लोर ऑपरेशन थिएटर और उसके आसपास जो कुछ भी हंगामा काटा गया , उसकी सूचना पुलिस तक पहुंचने के बाद मामले की गंभीरता को देखते हुए पर्याप्त संख्या में पुलिस बल पहुंच चुका था। ऐसे में सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि जिन कर्मचारियों के द्वारा 10 दिन के बाद पुलिस में शिकायत दी गई ?  जब 3 सितंबर को पुलिस मौके पर मौजूद थी तो उसी समय पुलिस को ही अपनी लिखित में शिकायत देने में क्यों परहेज बरता गया ? शायद ही किसी स्वास्थ्य कर्मचारी के द्वारा उस समय मौके पर पहुंची पुलिस को अपने लिखित में बयान दर्ज करवा कर हस्ताक्षर भी किए गए हो ? यदि यह सब नहीं किया गया तो, यह भी अपने आप में एक रहस्य और अबूझ पहेली बन अब नया सवाल जवाब की तलाश में है।

बिना एसएमओ पटौदी अस्पताल
पटौदी नागरिक मैं कार्यरत रहे सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर योगेंद्र सिंह का तबादला तावडू में किया जाने के आदेश जारी हो चुके हैं। इसी प्रकार से पटोदी अस्पताल में ही बतौर एसएमओ अपनी सेवाएं दे चुकी डॉक्टर नीरू यादव के लिए एक बार फिर से पटौदी नागरिक अस्पताल के लिए एसएमओ के पद पर ट्रांसफर के आदेश हो चुके हैं । डॉक्टर नीरू यादव के लिए बीते 13 सितंबर को पटौदी नागरिक अस्पताल में एसएमओ के पद पर ट्रांसफर के लिए आदेश स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा किए जा चुके हैं । लेकिन जिस प्रकार के हालात बने हुए हैं, लगभग एक पखवाड़े बीत जाने के बाद भी पटोदी नागरिक अस्पताल में नियमित सीनियर मेडिकल ऑफिसर उपलब्ध नहीं है । ऐसे में जिस प्रकार की व्यवस्था पटोदी नागरिक अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं सहित प्रशासनिक कार्यों के लिए होनी चाहिए, उसका भी अभाव महसूस किया जा रहा है। 

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