पशु अस्पतालों में वीएलडीए और अटेंडेंट करते काम, अधिकारी भजते राम……

पशुपालन एवं डेयरिंग विभाग में पशु अस्पतालों में पशुओं के उपचार संबंधित सेवाएं विभाग में कार्यरत वीएलडीए कर्मचारियों एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों द्वारा ही की जाती हैं। विभाग के अन्य अधिकारियों द्वारा फिल्ड या पशु अस्पतालों में कोई काम नहीं किया जाता। केवल सौ में से पांच प्रतिशत अधिकारी ही फिल्ड या पशु अस्पतालों में काम करते हैं। बाकि सब फरलो पर रहते हैं और पूरा वेतन लेकर सरकार के ख़ज़ाने को चपत लगा रहे हैं। लेकिन विडंबना ये है कि इनके ऊपर कार्रवाई करे तो करे कौन? देखते हैं कब तक काम करने वालों का शोषण किया जाएगा और कामचोरों को ईनाम दिया जाएगा।

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

पशुपालन एवं डेयरिंग विभाग में वर्तमान में फैली लम्पी स्किन बीमारी को लेकर किए जा रहे टीकाकरण की बात हो या मुंह खुर एवं गलघोंटू या अन्य प्रकार के टीकाकरण अभियान की बात हो, घर- घर जाकर टीकाकरण का पूरा काम और पशु अस्पतालों में पशुओं के उपचार संबंधित सेवाएं विभाग में कार्यरत वीएलडीए कर्मचारियों एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों द्वारा ही की जाती हैं। विभाग के अन्य अधिकारियों द्वारा फिल्ड या पशु अस्पतालों में कोई काम नहीं किया जाता। केवल सौ में से पांच प्रतिशत अधिकारी ही फिल्ड या पशु अस्पतालों में काम करते हैं। बाकि सब फरलो पर रहते हैं और पूरा वेतन लेकर सरकार के ख़ज़ाने को चपत लगा रहे हैं। लेकिन विडंबना ये है कि इनके ऊपर कार्रवाई करे तो करे कौन?

क्योंकि विभाग में नीचे से ऊपर बैठे महानिदेशक तक सभी अधिकारी एक ही श्रेणी के हैं और सभी एक ही वर्ग की एसोसिएशन से संबंधित हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि घर की बही और काका लिखनिया!!

लेकिन विभाग के हर काम में ये अधिकारी जोर- शोर से प्रचारित करते हैं कि ये दिन रात पशुधन की सेवा में लगे हुए हैं। जबकि धरातल की तस्वीर कुछ अलग है। इसलिए बाकी वर्ग बार -बार मांग कर रहे हैं कि पशुपालन विभाग के महानिदेशक पद पर आईएएस अधिकारी को नियुक्त किया जाए ताकि कामचोर लोगों पर कार्रवाई करते हुए पशुपालकों को पारदर्शी तरीके से सेवाएं दी जा सकें और फरलो मारने वाले अधिकारियों से काम लिया जा सके। क्योंकि वेतन काम करने का मिलता है न कि झूठ बोल कर आंखों में धूल झोंकने का??

हम पूरी जिम्मेदारी के साथ ये बात कह रहे हैं और सरकार से ये भी मांग करते हैं कि विभाग से बाहर के अधिकारियों द्वारा विशेष अभियान चलाकर और गांव-गांव जाकर इसकी पुष्टि की जाए कि काम कौन करता है और झूठी वाहवाही कौन बटोरता है? ये अधिकारी न तो काम करते हैं और घर बैठकर मुफ्त में वेतन लेते हैं और Non Practice Allowance (NPA) की करोड़ों रुपए की राशि अलग से। लेकिन, सरकार सोई हुई है और मंत्री – संत्री सब दरबारी और चापलूस लोगों पर कार्रवाई नहीं करते क्योंकि ये सब मिलकर एक नेक्सस का ही हिस्सा हैं। देखते हैं कब तक काम करने वालों का शोषण किया जाएगा और कामचोरों को ईनाम दिया जाएगा।

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