भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। वर्तमान में हरियाणा की राजनीति पता नहीं किस चौराहे पर खड़ी है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के ही नेता अपनी-अपनी पार्टियों में अपना वर्चस्व बनाने की होड़ में लगे हैं। जनता की किसी को कोई चिंता नजर आती नहीं। 

प्रजातंत्र का आदर्श रूप तो यह है कि जनता के प्रतिनिधि जनता के हित की बात सोचें और उनके हितार्थ कार्य करें। परंतु वर्तमान में हो इसके उलट रहा है। सभी राजनैतिक दलों में स्थिति यह है कि कार्यकर्ता अपने बड़े नेता को प्रसन्न करने में व्यस्त हैं। उनके लिए जनता से अधिक अपने नेताओं की प्रसन्नता अर्थ रखती है।  संक्षेप में वर्णित करने के लिए हरियाणा की प्रचलित कहावत— जहां देखी तवा-परात, वहीं गुजारी सारी रात पर्याप्त है।

भाजपा की बात करें तो यहां शीर्ष नेता माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल, गृहमंत्री अनिल विज, प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़, दक्षिणी हरियाणा के राजा राव इंद्रजीत प्रयत्नशील रहते हैं। यह दूसरी बात है कि आपस में इनका तालमेल दिखाई नहीं देता। अपना-अपना वर्चस्व सिद्ध करने में लगे नजर आते हैं।

वर्तमान में भाजपा सरकार की विज्ञप्तियों पर ध्यान दें तो ऐसा प्रतीत होगा कि हरियाणा बहुत खुशहाल स्थिति में है और सरकार जनता के हितार्थ बड़े-बड़े कार्य कर रही है। परंतु यथार्थ में जनता का हर वर्ग परेशान नजर आता है। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई, अपराध ये मुद्दे छाये रहते हैं और जनता को मुख्यमंत्री की कही हुई घोषणाओं पर विश्वास होता नहीं दिखाई देता लेकिन सत्ता पक्ष जनता की इन भावनाओं को पढऩे की बजाय शायद 2024 लोकसभा की तैयारी में व्यस्त है, जिसका अनुमान इस बात से लगता है कि अभी 24 तारीख को फरीदाबाद में अस्पताल का उद्घाटन प्रधानमंत्री द्वारा किया गया, जिसमें मुख्यमंत्री सहित स्थानीय बड़े नेता सम्मिलित हुए। प्रश्न उठ रहा है कि उसमें सरकार का क्या लगा? और इसी प्रकार का कल खरखोंदा में कार्यक्रम होने जा रहा है मारूति प्लांट के उद्घाटन का। प्रश्न अब भी वही है कि सरकार का उसमें क्या?

अब कांग्रेस की बात लें। उसकी स्थिति तो इनसे भी बदतर है। कांग्रेस पार्टी अपने अंर्तद्वंद्व से बुरी तरह जूझ रही है और जिसे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व सोनिया और राहुल मान रहे हैं। हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कमान सौंपी यह सोच कि वह कांग्रेस को एक कर पाएंगे लेकिन हो रहा है उलट। कांग्रेस और अधिक बिखर रही है। प्रदेश प्रभारी विवेक बंसल परिदृश्य से बाहर हो गए हैं। रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी का मेल नजर आता नहीं। कुलदीप बिश्नोई भाजपा में शामिल हो गए। मजेदारी देखिए, कुछ दिन पहले कांग्रेस में भाजपा के कुछ नेता पूर्व विधायक शामिल हुए। वहां प्रदेश अध्यक्ष एवं प्रदेश प्रभारी की उपस्थिति नहीं थी। केवल दीपेंद्र हुड्डा और कार्यकारी अध्यक्ष जितेंद्र भारद्वाज ही नजर आ रहे थे। संगठन उनका अब तक बना नहीं, जो भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थक थे, वह अपना जनाधार खो चुके है। यह स्पष्ट नजर आता है कांग्रेस के राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भी जनता की स्थिति नजर नहीं आती। चंद चुनिंदा भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थक ही नजर आते हैं। अब महंगाई के राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम में स्थिति सामने आ जाएगी और यहां भी लड़ाई केवल एक ही है कि इस-इस नेता को खुश कर संगठन में पद पाओ।

आप पार्टी की स्थिति भी इनसे कुछ भिन्न नहीं है। हरियाणा में आप को मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनकी टीम ही चलाती नजर आ रही है, जो लोग उसमें शामिल हुए थे, उनमें भी आपस में प्रतिस्पर्धाएं दिखाई दे रही हैं। और मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि आरंभ में बड़े-बड़े कार्यक्रम कर आप में शामिल हुए लोग अब स्थितियों को भांप शांत होकर घर बैठक गए हैं।

इनेलो और जजपा की बात करें तो एक में से निकली ये दोनों पार्टियां सदा ही एक आदमी के ऊपर ही चलती रही हैं परंतु वर्तमान में ये आपस में लडक़र अपना ही वजन कम कर रहे हैं। जनता से इनको भी कोई सरोकार दिखाई देता नहीं। 

इस समय राजनीतिक पार्टी अपनी राजनीति जिंदा रखने के लिए जनता के मुद्दों का नाम तो लेती है लेकिन वास्तव में लगता नहीं कि उन्हें मुद्दों से कोई सराकार है। सब अपनी-अपनी रोटियां सेंकने में लगे हैं। 

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