शुरू हुआ एक दूसरे को जयचंद बताने का दौर —
 जयचंद एक-दो नहीं, हर पत्थर के नीचे था जयचंद—
नांगल चौधरी से लेकर गुरुग्राम तक विधानसभा तथा निकाय चुनावों में जयचंद एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों थे तो अब किस किस पर कार्रवाई करें।
 लड़ाई भाजपा बनाम विपक्ष में नहीं बल्कि इंसाफ मंच बनाम भाजपा में थी— 
भूपेंद्र यादव, अरविंद यादव, अभय सिंह,रणधीर कापड़ीवास, संतोष यादव तथा कप्तान अजय सिंह यादव है राव की पीड़ा
क्या राव राजा भाजपा में अभिमन्यु बने जिन्हें चारों ओर से कौरवों (जयचंदो) ने घेर लिया?   

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में अहीरवाल की सियासत को कभी अपने हिसाब से हांकने वाले राव इंद्रजीत सिंह की अब भाजपा में मुश्किलें बढ़ती जा रही है। हरियाणा बीजेपी के नेताओं को राव इंद्रजीत पहले दिन से फूटी आंख नहीं सुहाते और अब पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी उन्हें सबक सिखाने के मूड में दिख रहा है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अपने 11 मेंबरी संसदीय बोर्ड में हरियाणा से ताल्लुक रखने वाली सुधा यादव को शामिल कर, हरको बैंक के चेयरमैन अरविंद यादव को पंचायती चुनाव महेंद्रगढ़ जिले का प्रभारी बना कर तथा नांगल चौधरी के विधायक डॉ अभय सिंह यादव को स्वतंत्रता दिवस पर रेवाड़ी का ध्वजारोहण कार्यक्रम ने राव इंद्रजीत को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि उनके आगे अब और नहीं झुका जाएगा। इसके साथ केंद्रीय चुनाव समिति में भूपेंद्र यादव को शामिल करके भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने राव इंद्रजीत सिंह को सबसे तगड़ा झटका दिया है। उपरोक्त नियुक्तियों के बाद रामपुरा हाउस के राव राजा ने खुलकर अपने मन की पीड़ा का इजहार कर दिया ।

महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र की पूर्व सांसद डा. सुधा यादव को एक साथ दोहरा इनाम दिया है। पार्टी ने उन्हें चुनाव से जुड़े अति महत्वपूर्ण ग्यारह सदस्यीय संसदीय बोर्ड व पंद्रह सदस्यीय केंद्रीय चुनाव समिति का सदस्य बनाया है। पहले से ही ताकतवर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को भी केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल किया गया है। भूपेंद्र यादव का कद बेशक पद से बड़ा माना जाता है, मगर सुधा को मिली दोहरी जिम्मेदारी से निश्चित रूप से हरियाणा भाजपा के नेताओं को दिल्ली दरबार में एक और बड़ा पैरोकार मिल गया है। गुरुग्राम के गांव जमालपुर के लाल भूपेंद्र यादव के अलावा रामपुरा के राव इंद्रजीत सिंह भी बतौर राज्यमंत्री मोदी सरकार में शामिल हैं। हालांकि राव इंद्रजीत समर्थक राज्यमंत्री के पद को अपने नेता के कद के अनुरूप नहीं मानते, मगर डा. सुधा का उदाहरण नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक सभी को धैर्य के साथ काम करने का संदेश दे रहा है। 

राव इंद्रजीत इस समय हरियाणा के गुरुग्राम से बीजेपी सांसद और मोदी सरकार में सांख्यिकी मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री हैं। राव इंद्रजीत दक्षिणी हरियाणा की अहीरवाल बेल्ट में मजबूत पकड़ रखते हैं और इस बेल्ट में आज तक उनके कद का कोई दूसरा नेता नहीं उभर पाया। यही वजह है कि वह अहीरवाल की राजनीति को अपने हिसाब से चलाते रहे हैं मगर अब भाजपा के अंदर उन्हें यहां से चुनौती मिलती दिख रही है।

बीजेपी के केंद्रीय संसदीय बोर्ड में इकलौती महिला के तौर पर जगह पाने वाली सुधा यादव अहीरवाल बेल्ट में पड़ते रेवाड़ी जिले की रहने वाली हैं। सुधा यादव कारगिल में शहीद हुए बीएसएफ के डिप्टी कमांडेंट सुखबीर यादव की पत्नी हैं और अहीरवाल में राव इंद्रजीत के विरोधी गुट से ताल्लुक रखती हैं। 1999 के लोकसभा चुनाव में सुधा यादव गुरुग्राम सीट से राव इंद्रजीत को हरा भी चुकी हैं। तब राव इंद्रजीत कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से एक थे जबकि सुधा यादव का वह पहला लोकसभा चुनाव था। ज्ञात रहे उस समय कारगिल का मुद्दा चरम सीमा पर था।

सुधा यादव का भाजपा के संसदीय बोर्ड में शामिल होना राव इन्द्रजीत के लिए दूसरा तगड़ा झटका है।

1999 में राव को हरा चुकी सुधा यादव

सुधा यादव मूलरूप से रेवाड़ी जिले के धामलावास गांव की रहने वाली हैं। उनके पति सुखबीर यादव बीएसएफ में डिप्टी कमांडेंट थे और कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे। कारगिल के बाद 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने महेन्द्रगढ़ लोकसभा सीट से सुधा यादव को टिकट दिया। राव इंद्रजीत तब महेंद्रगढ़ सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी थे और वह सुधा यादव से चुनाव हार गए। भाजपा ने अगली बार भी सुधा यादव को राव के खिलाफ मैदान में उतारा मगर वह जीत नहीं पाईं। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले राव इन्द्रजीत भाजपा में शामिल हो गए और तब से वह गुरुग्राम से भाजपा के सांसद हैं।

यादवों सहित पिछड़ा वर्ग को दिया संदेश

भाजपा ने संसदीय बोर्ड व चुनाव समिति में पिछड़ा वर्ग विशेषकर अहीरवाल को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देकर यह संदेश देने का भी प्रयास किया है कि ओबीसी पार्टी की प्राथमिकता में है। भूपेंद्र यादव ने कैबिनेट मंत्री बनने के तुरंत बाद जहां हरियाणा व राजस्थान में घूमकर यह बताने का प्रयास किया था कि मोदी मंत्रिमंडल में पिछड़ों को सबसे अधिक भागीदारी दी गई है, वहीं पार्टी की चुनाव से जुड़ी दो सर्वोच्च इकाइयों में भी ओबीसी को प्रतिनिधित्व देकर यादवों सहित पिछड़ा वर्ग के सभी समुदायों को संदेश दिया गया है। इससे पहले और प्रदेश नेतृत्व में मुख्यमंत्री के करीब अरविंद यादव और डॉक्टर अभय सिंह यादव को आगे बढ़ाया गया। प्रदेश के महिला मोर्चा में उनके प्रतिद्वंदी संतोष यादव को एवं पद दिया गया। दक्षिणी हरियाणा में भाजपा नेताओं की पोजीशन तय की जाए तो अरविंद यादव टॉप 5 की सूची में आ चुके है। नांगल चौधरी से लेकर गुरुग्राम तक होने वाली राजनीतिक गतिविधियों में आलाकमान उनके दिमाग का पूरा इस्तेमाल कर रहा है। विधानसभा चुनाव में राव से सीधे टकराव के बाद अरविंद यादव की गिनती भी अब विरोधी के तौर पर बन चुकी है। इसके साथ स्वतंत्रता दिवस पर रेवाड़ी में डॉक्टर अभय सिंह यादव से ध्वजारोहण करवा कर राव इंद्रजीत सिंह को एक और झटका दिया है।

लगातार भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व द्वारा राव राजा की उपेक्षा और नई नियुक्ति में उनके प्रतिद्वंद्वियों को बढ़ावा देना रामपुरा हाउस को अखर गया और उसे उन्होंने अपनी मन की पीड़ा का खुलकर इजहार कर दिया। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह द्वारा 16 अगस्त को अपने एक कार्यकर्ता के निवास पर कार्यकर्ता को संबोधित करते हुए कहा कि गत विधानसभा चुनाव में रेवाड़ी विधानसभा क्षेत्र से उनकी पुत्री आरती राव को जब टिकट नहीं मिला तो पार्टी ने टिकट सुनील मूसेपुर को दिया। चुनाव में  इंसाफ मंच के कार्यकर्ताओं ने जी जान से चुनाव लड़ा लेकिन पार्टी के जयचंदो के कारण सुनील मूसेपुर की हार हुई। पार्टी ने ऐसे जयचंदो पर कार्रवाई करने की बजाय उन्हें इनाम दिया । 

राव के इस बयान के बाद दक्षिणी हरियाणा की राजनीति में एक तरह से उबाल आ गया । राव का विरोधी गुट एकाएक सक्रिय हो गया और प्रेस कॉन्फ्रेंस या फिर बयान जारी कर यह बताने में लग गये कि चुनाव  में जयचंद वह नहीं था। बल्कि एक दूसरे को जयचंद बताने का दौर शुरू हो गया। मजेदार बात तो यह है कि केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने भी जयचदो का नाम उजागर नहीं किया और ना ही राव के बयान के बाद पलटवार करते हुए प्रेस नोट जारी करने वाले हरको बैंक के चेयरमैन अरविंद यादव ने भी बिना नाम लिए जयचंद किसी और को बताया। वही पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास ने भी अपनी भड़ास निकालते हुए नाम नहीं लिया लेकिन राव इंदरजीत सिंह पर तीखे वार खूब किए। 

आखिर गत विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को हराने वाले जयचंद कौन थे। गत विधानसभा चुनाव में  जैसे ही पार्टी ने रेवाड़ी विधानसभा क्षेत्र से सुनील मूसेपुर के नाम की घोषणा की तभी से पार्टी दो भागों में बट गई। यही स्थिति स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर नारनौल में भी बनी, जब रामपुरा हाउस के उम्मीदवार के खिलाफ एक तरफ पार्टी के पुराने कार्यकर्ता थे तो दूसरी ओर इंसाफ मंच के कार्यकर्ता थे। या यूं कहे तो चुनाव भाजपा बनाम विपक्ष में नहीं बल्कि चुनाव भाजपा बनाम भाजपा में ही था तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अपने आपको असली भाजपा के कार्यकर्ता बताने वाले राव के निर्णय से पूरी तरह से खफा थे। रही बात अरविंद यादव की तो राव इंद्रजीत व अरविंद यादव के बीच मनमुटाव जरूर हुआ था लेकिन अरविंद यादव की राजनैतिक हैसियत ऐसी नहीं थी कि वह अकेले सुनील मूसेपुर को हरा सके। यह भी गौरतलब है कि अरविंद यादव रेवाड़ी विधानसभा चुनाव को छोड़कर मुख्यमंत्री के क्षेत्र करनाल में विधानसभा चुनाव देख रहे थे। 

पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापडीवास के बारे में बीते दिन ही सुनील मूसेपुर ने एक बयान जारी कर कहा था कि रणधीर सिंह कापड़ीवास एक जन आधार विहीन नेता है। 5 बार चुनाव लड़े मोदी की लहर के कारण एक चुनाव में जीत हासिल कर सके, तो क्या अब यह दो ही नेता थे जिसके कारण भाजपा प्रत्याशी सुनील मूसेपुर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बाद भी हार का मुंह देखना पड़ा। उपरोक्त चुनावों में जयचंद पार्टी के ही अनेक नेता व पार्टी पदाधिकारी थे जिनके मन में टीस भरी हुई थी कि आखिर सुनील मूसेपुर तथा बाबूलाल पटीकरा की पत्नी को टिकट कैसे मिल गया। कहा तो यह भी जाता है कि केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के कुछ खास सिपहसालार भी हराने की मुहिम में शामिल थे। यह हो सकता है कि सैकड़ों जयचंदो का नेतृत्व कोई एक-दो नेता कर रहे हो। कुल मिलाकर यह कहे कि हर पत्थर के नीचे जयचंद छुपा हुआ था तो गलत नहीं होगा। बड़ी बात तो यह है कि अनेक जयचंदो के होने के बावजूद हार का अंतर मामूली रहा। वही निकाय चुनाव में नारनौल नगर परिषद के उम्मीदवार बाबूलाल पटीकरा की पत्नी को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। 

अब पार्टी को भी पता है कि नांगल चौधरी से लेकर गुरुग्राम तक विधानसभा तथा निकाय चुनावों में जयचंद एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों थे तो अब किस किस पर कार्रवाई करें। लेकिन कुछ भी हो राव इंद्रजीत सिंह के बयान ने चुनावों के जयचंदो की याद जरूर दिला दी कि आखिर कैसे और दलों से अलग होने का दावा करने वाली भाजपा के अधिकांश नेताओं ने अपनी ही पार्टी के प्रत्याशी की पीठ में छुरा घोपा।

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