कांग्रेस से लड़ना आसान था. राहुल-कांग्रेस से जीतना मुश्किल. रासायनिक बदलाव का पहला चरण कल पूरा हुआ महंगाई और बेरोजगारी से लोग, पीड़ित हैं, मूर्खतापूर्ण ढंग से लगाई जाने वाली जीएसटी से, व्यापार बुरी तरह प्रभावित है कांग्रेस के इन एलीट नेताओं के चेहरों पर पहली बार बीजेपी-संघ से लड़ने की इच्छा नज़र आ रही। काले कपड़ों को भगवा पार्टी ने रामभक्ति से जोड़ दिया मोदी की फोटो, काले कपड़ो में फरवरी 2019 की है, जब वे प्रयाग कुंभ में स्नान कर रहे है क्या इस स्नान को, कुंभ का विरोध कहा जा सकता है ? अशोक कुमार कौशिक राम मंदिर का पहला शिलान्यास, नवंबर, 9, 1989, को, जिसकी तिथि, शुक्लपक्ष की एकादशी थी को, एक दलित युवक, कामेश्वर के हाथों से, एक ईट रख कर, कांग्रेस पार्टी के कार्यकाल मे हुआ था, तब प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। उस समय, उस अवसर पर, अशोक सिंघल, महंत नृत्य गोपाल दास, विनय कटियार, डॉ वेदांती, विजया राजे सिंधिया, मुख्तार अब्बास नकवी आदि थे। राम मंदिर का दूसरा शिलान्यास, जब अदालत द्वारा इस विवाद का समाधान कर दिया गया तब, 5 अगस्त को किया गया, जिसमे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तथा अन्य महानुभाव उपस्थित थे। उसी के बाद मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुयी, जो अब भी जारी है। राम मंदिर का शिलान्यास, एक शास्त्रीय कर्मकांड है, जिसका मुहूर्त सनातन शास्त्रीय पद्धति से निकाला जाता है जो विक्रम संवत की तिथियों के आधार पर तय किया जाता है। अगस्त 5, 2020 को पंचांग के अनुसार, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की द्वितीया थी। हिन्दू पंचांग के अनुसार आज वह तिथि नहीँ है, जिस तिथि को, अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास हुआ था। आज तिथि है, श्रावण मास के शुक्लपक्ष की अष्ठमी तिथि। अंग्रेजी तारीख, 5 अगस्त। राम मंदिर के शिलान्यास की तिथि, भाद्रपद के कृष्णपक्ष की द्वितीया ही, शास्त्र सम्मत मानी जायेगी, न कि, 5 अगस्त। यह अलग बात है अंग्रेजी कैलेंडर ही प्रचलन में है न कि, पंचांग की तिथियां। 5 अगस्त के महत्व का बीजेपी इसलिए उल्लेख करती है क्योंकि, इसी तिथि को, उसने अनुच्छेद 370 को संशोधित और नागरिकता संशोधन कानून पारित करने के फैसले किये थे। राम मंदिर का शिलान्यास भी 5 अगस्त को ही, इसीलिए उन्होंने तय किया था। जिसके मुहूर्त को लेकर धर्माचार्यों में भी आपस में मतभेद था। यहीं यह भी उल्लेखनीय है कि, अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन कानून, राजनीतिक फैसले थे जबकि राम मंदिर का शिलान्यास, धार्मिक कर्मकांड। राजनीतिक फैसलों और राजकीय कागज़ों में ईस्वी सन और शक संवत, जो भारत का राष्ट्रीय संवत है, का उल्लेख होता है, जबकि, धार्मिक, कार्यक्रमो, अनुष्ठान, मुहूर्त आदि में विक्रम संवत का। अब यदि बीजेपी और अमित शाह जी, राम मंदिर शिलान्यास को भी राजनीतिक कार्य मान रहे हैं तो भी, इसका मुहूर्त ईस्वी सन से नहीं तय होगा, क्योंकि ईस्वी सन से कोई धार्मिक और शास्त्रीय प्रयोजन नहीं किया जाता है। धर्म और राजनीति के घालमेल से जब सत्ता निर्देशित होने लग जाय, तब धर्म तो विवादित होता ही है, राज्य भी अपने उद्देश्य, लोककल्याण से विमुख होने लगता है। 5 अगस्त को, काले कपड़े में हुए प्रदर्शन पर, बीजेपी का तंज हास्यास्पद और धर्मशास्त्र के प्रति उनकी अज्ञानता का द्योतक है। महंगाई और बेरोजगारी से लोग, पीड़ित हैं, मूर्खतापूर्ण ढंग से लगाई जाने वाली जीएसटी से, व्यापार बुरी तरह प्रभावित है, और जब उस पर विपक्ष, सवाल उठाता हुआ सड़कों पर उतरता है तो, कपड़ों से पहचानने का हुनर रखने वाले लोग, उन मुद्दों के समाधान के बजाय, अनावश्यक बहानेबाज़ी करने लगते हैं। कांग्रेस से लड़ना आसान था. राहुल-कांग्रेस से जीतना मुश्किल. रासायनिक बदलाव का पहला चरण कल पूरा हुआ।महंगाई के खिलाफ़ कांग्रेस का प्रदर्शन देखने लायक था। सत्ता तंत्र कुछ भी प्रचार करे, दलाल टीवी मीडिया कुछ भी कहानी गढ़े लेकिन जिन्होंने आज का प्रदर्शन देखा है उन्होंने महसूस किया है कि कांग्रेस के अंदर कुछ रासायनिक बदलाव हो चुका है। कांग्रेस के अंदर गैर-कांग्रेसी, कमजोर, लालची और संघी मानसिकता के जो लोग थे वो पहले ही भाग चुके हैं। जो बचे थे उनकी समस्या यह थी कि उनका एलीटिज्म नहीं जा रहा था। वो पिछले आठ सालों से सत्ता से बाहर हैं लेकिन उनकी मानसिकता वही राजे-रजवाड़ों वाली थी। पूरा तो नहीं लेकिन ये सब अब लाइन पर आ चुके हैं। कांग्रेस के इन एलीट नेताओं के चेहरों पर पहली बार बीजेपी-संघ से लड़ने की इच्छा नज़र आ रही। प्रियंका गांधी सड़क पर बैठ गईं। उन्हें घसीट कर गाड़ी के अंदर फेंका गया। वो पहले भी लड़ती भिड़ती रही हैं। कांग्रेस के अंदर चल रहे रासायनिक बदलाव की सबसे दिलचस्प तस्वीरें थीं पूर्व वित्तमंत्री चिदंबरम से लेकर एलीट थरूर तक सबको काला कपड़ा पहने, पानी में भीगते हुए दिल्ली पुलिस से लड़ते भिड़ते देखना। संगठन सचिव के सी वेनुगोपाल को पुलिस ने घसीटकर गाड़ी में डाला। अधीर रंजन चौधरी को सड़क पर पटकी खानी पड़ी. दीपेंदर हुड्डा के कपड़े फट गए। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर दिग्विजय सिंह तक सब पिछले कम से कम एक महीने से दौड़ लगा रहे। अब इनके पास भागने का भी विकल्प नहीं। या तो लड़ो या तो भागो, यही है राहुल गांधी की कांग्रेस। बीजेपी कितनी नर्वस है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि काले कपड़ों को भगवा पार्टी ने रामभक्ति से जोड़ दिया। न तो फकीरचंद के पास न ही उनकी सेना के पास, न ही ट्रोल आर्मी के पास इस बात का कोई जवाब है कि महंगाई आसमान क्यूं छू रही है। पूरा टीवी मीडिया और बीजेपी के नेता, राहुल-कांग्रेस के इस बदले तेवर से आतंकित हैं। अगर यह तेवर और यह जिजीविषा बरकरार रही तो 2024 में चमत्कार हो सकता है। राहुल ने कहा है कि वो करना हो करो. मैं डरता नहीं। आज भी कहा कि जेल भेजना हो भेज दो, कोई फर्क नहीं पड़ता। राहुल जेल जाने के लिए तैयार है। मोदी सरकार चाहे तो अपनी ताकत का परीक्षण कर सकती है। इसीलिए कह रहा हूं कि कांग्रेस से लड़ना आसान था। राहुल-कांग्रेस से जीतना मुश्किल होगा मोदी के लिए। मोदी की यह फोटो, काले कपड़ो में फरवरी 2019 की है, जब वे प्रयाग कुंभ में स्नान कर रहे है। काले कपड़े पहन कर महंगाई आदि जनहित के मुद्दो पर किए गए प्रदर्शन के बारे में यह कहा जा रहा है कि, काले कपड़े, राममंदिर के विरोध में थे तो क्या इस स्नान को, कुंभ का विरोध कहा जा सकता है ? मेरा उत्तर होगा, बिलकुल नहीं। किन कपड़ो मे कौन स्नान करता है यह उसकी मर्जी है। इसी प्रकार, आंदोलन कैसे हो, यह उसकी रणनीति बनाने वाले जानें। कपड़ों से पहचानना छोड़िए सरकार, रोटी कपड़ा और मकान पर बात कीजिए। कांग्रेस से लड़ना आसान था. राहुल-कांग्रेस से जीतना मुश्किल. रासायनिक बदलाव का पहला चरण आज पूरा हुआ. 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