नागरिकों के सुरक्षित और समृद्धशाली जीवन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है; उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और समृद्धी का होना। इसलिए क्या आपको हर घर तिरंगा फहराने के साथ-साथ हर घर रोज़गार की आवश्यकता ज़्यादा नहीं लग रही है ? आज आज़ादी के 75 साल बाद भी देश के नौजवान बेरोजागरी के चलते आत्महत्या करने को मजबूर है। हम सभी देश वासी हर घर तिरंगा लहरायेंगे, लेकिन इस स्वतंत्रता दिवस पर हमें लाल किले से ये आवाज़ भी तो सुनाई दे कि देश के हर नागरिक को समान शिक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा, रोजगार गारंटी दी जाएगी। यही तो सच्चा राष्ट्रवाद है। -प्रियंका ‘सौरभ’…………. रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, हर घर तिरंगा आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत एक अभियान है। यह अभियान लोगों को भारत की आजादी के 75वें वर्ष में तिरंगा घर लाने और इसे फहराने के लिए प्रोत्साहित करता है। नागरिकों और तिरंगे के बीच संबंध हमेशा से ही बहुत प्रगाढ़ रहे हैं। यह अभियान स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष के अवसर पर राष्ट्रीय ध्वज को घर लाने की अनुमति देता है, जो अंततः तिरंगे के साथ एक व्यक्तिगत संबंध बनाएगा और राष्ट्र-निर्माण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का भी प्रतीक होगा। तिरंगा भारत के नागरिकों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। यह हमारे गौरव और सम्मान का राष्ट्रीय प्रतीक है। हर किसी के जीवन में इसकी एक अलग पहचान होती है। हर घर तिरंगा, बेशक सरकार के दूरदर्शी चिंतन और लक्ष्य का परिणाम है। राष्ट्र के हर एक नागरिक में राष्ट्रीयता का बोध हो, उसे अपने राष्ट्र से प्रेम हो, वह राष्ट्रीय सुरक्षा, गरिमा और भविष्य को, अपनी सुरक्षा, गरिमा और भविष्य के साथ जोड़कर बहुत गंभीरता से यह जाने और समझे कि उसके तथा उसकी संतानों के सुरक्षित और समृद्धशाली जीवन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है; उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और समृद्धी का होना। इसलिए क्या आपको हर घर तिरंगा फहराने के साथ-साथ हर घर रोज़गार की आवश्यकता ज़्यादा नहीं लग रही है ? आज आज़ादी के 75 साल के बाद भी देश के नौजवान बेरोजागरी के चलते आत्महत्या करने को मजबूर है। वर्तमान सरकार देशभक्ति की भावना जगाने के लिए ये हर घर तिरंगा आंदोलन चला रही है, ठीक है, अच्छी बात है, देशभक्ति ज़रूरी है, पर अब हमें अंग्रेजो से या मुग़लों से आज़ादी तो चाहिए नही तो हमें वही तिरंगा उठा कर आंदोलन करना है। अपितु हमें आगे बढ़ना है, अपने मौलिक अधिकारों के लिए, बेरोज़गारी के लिए, शिक्षा के लिए, सुरक्षा के लिए, स्वाथ्य सुविधा के लिए। आखिर कब तक देशभक्ति के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकी जाएंगी। आज देश के युवा उच्च शिक्षित होने के बावजूद बेरोजगार हैं, मंहगाई अपने चरम पर है, लोग एक- दूसरे के खून के प्यासे हैं, अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है, चीन अपने देश पर कब्ज़ा कर रहा है, नेपाल तक देश को आंख दिखा रहे हैं, और भी ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जिन पर पर्दा डालकर हम आगे नहीं बढ़ सकते। रोज-रोज नये टैक्स, नये फरमान, आम जनता की परेशानी से जुड़े मुद्दों पर कोई खास ध्यान नहीं, फरमान नहीं, क्या इस फरमान से देश भक्ति बढ़ जायेगी? आज सरकार को क्यों ऐसा महसूस होता है कि लोगों में देश भक्ति की कमी है, अगर ऐसा होता तो देश गुलाम हो सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इससे यही सिद्ध होता है कि देश के लोग सच्चे देश भक्त है। वैसे भी देश व ईश्वर की भक्ति सब गुप्त होती है, कैमरे के सामने प्रदर्शन नहीं किया जाता है। मगर देश कि समस्याएं आज सभी के सामने है इसलिए आम जनता की परेशानी को भी नजर अंदाज न किया जाये। देश भक्त पहले से ही राष्ट्रीय पर्व पर राष्ट्रीय झंडा लगाते रहे हैं। हाँ, अब नए कानून से चौबीस घंटे लगा सकते हैं। मगर हर घर तिरंगा आखिर किस नयी उपलब्धि पर इतराकर, हम तिरंगा लहरायें हमें ये भी तो सोचना होगा। अब सरकार द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को लेकर नियम कानून में भी परिवर्तन कर दिया गया है, स्वागत योग्य है। सरकार का हर घर तिरंगा अभियान हम मानते है, हर भारतवासी के लिए अनुकरणीय है, जो भविष्य में एक सशक्त, एकजुट और शक्तिशाली भारत के स्वर्णिम पथ का मार्ग प्रशस्त करेगा। हम मानते है कि सब कुछ सामान्य होते हुए भी वर्तमान और भविष्य की विधमान और संभावित बड़ी राष्ट्रीय समस्याओं का एक बड़ा कारण देशवासियों में राष्ट्रीय चेतना, राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रीय कर्तव्यपरायणता और राष्ट्रीय दायित्व बोध की कमी और अभाव है, जिस पर समय रहते सोचने और बहुत कुछ करने की जरूरत है। इसलिए हम सभी देश वासी हर घर तिरंगा लहरायेंगे, लेकिन इस स्वतंत्रता दिवस पर हमें लाल किले से ये आवाज़ भी तो सुनाई दे कि देश के हर नागरिक को समान शिक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा, रोजगार गारंटी दी जाएगी। यही तो सच्चा राष्ट्रवाद है। कानूनन एक नयी शुरुवात करते हुए भारत के ध्वज संहिता, 2022 को 30 दिसंबर 2021 को संशोधित किया गया। पॉलिएस्टर या मशीन से बने झंडे से बने राष्ट्रीय ध्वज को अनुमति दी गई है। अब, राष्ट्रीय ध्वज हाथ से काते और हाथ से बुने हुए या मशीन से बने कपास, पॉलिएस्टर, ऊन और रेशम खादी से बना होगा। एक सार्वजनिक या निजी संगठन या एक शैक्षणिक संस्थान का कोई सदस्य राष्ट्रीय ध्वज की गरिमा और सम्मान के अनुरूप सभी दिनों और अवसरों पर राष्ट्रीय ध्वज फहरा सकता है या प्रदर्शित कर सकता है। जहां झंडा खुले में प्रदर्शित होता है या जनता के घर पर प्रदर्शित किया जाता है, इसे दिन-रात लहराया जा सकता है। बहुत अच्छी बात है सभी को तिरंगे का चाव चढ़ेगा मगर क्या ये चाव भर ही देश की सब समस्याओं को अंत कर देगा? इस बात की कोई गारंटी है कि आज़ादी के अमृत महोत्सव के तीनों दिन कोई भी देशवासी भूखा नहीं सोयेगा, कोई बेरोजगार अपनी जान नहीं देगा, कोई व्यक्ति इलाज़ के अभाव में अस्पताल के दरवाजे पर दम नहीं तोड़ेगा; अगर ऐसा है तभी आज़ादी का अमृत है वरना जहर के घूँट तो मजबूरन पी ही रहें हैं। आज भी भारत के भविष्य को लेकर स्वामी विवेकानंद का गहन और सारगर्भित चिंतन तथा कथन बहुत महत्वपूर्ण है। इसी गंभीर चिंतन मंथन के बाद उन्होंने कहा था कि यदि भारत को सचमुच एक समर्थ, सशक्त, शक्तिशाली और महान राष्ट्र बनाना है तो हर भारतीय को कुछ दशकों तक सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रदेव की कर्म आराधना करनी होगी। गौरतलब है कि यह तब होगा, जब हम हर भारतीय के मन-मस्तिष्क में अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम, अपनापन, निष्ठा और दायित्व का भाव तथा कर्म विकसित कर पाएंगे और इसके लिए यह बेहद जरूरी है कि हम उसमें उसकी बाल्यावस्था से ही अपने राष्ट्रदेव के प्रति पूर्ण ज्ञान, सम्मान और निष्ठा का भाव तथा कर्म विकसित करें और उसको प्रदर्शन की बजाय कर्म में ढाल ले। इससे उनके भीतर कर्तव्यबोध जागृत होने के साथ कर्तव्यपरायण होने का भाव कर्म भी विकसित होगा। देश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति में सरकार ऐसा कर पाएगी या नहीं, यह तो उसके विवेक और क्षमता पर निर्भर है, आप घरों पर तिरंगा फहराने की बात करते हैं हम तो रोज़ अपने दिलों में तिरंगा फहराकर देश की खुशहाली की दुआ करते हैं। तिरंगे की गरिमा सिर्फ 15 अगस्त तक सीमित न रखे बल्कि लोगों को 16 अगस्त के लिए जागरूक करें कि तिरंगा सड़क पर न मिले। साथ ही इस देश के कर्णधारों को ये भो सोचना होगा जहां दस रुपए की रोटी के अभाव में लाखों लोगों की जान जा रही हो वो पच्चीस रूपये का तिरंगा कैसे खरीद पाएंगे? Post navigation डींगें हाकने में लगे हैं कृषि मंत्री जेपी दलाल : डॉ. गुप्ता संसद में मर्यादा और माफी……..भाषाई मर्यादा, चाहे वह प्रथम नागरिक के लिए हो या अंतिम व्यक्ति के लिए, बनी रहनी चाहिए