खादी और खाकी की मेहरबानी से पनपे खनन माफिया अलवर जिले में अब तक 31 पहाड़ियां गायब नांगल चौधरी में महीन कणों से पैदा होने वाली सिलिकोसिस नामक बीमारी अशोक कुमार कौशिक दिल्ली से महेन्द्रगढ़, भिवानी व अलवर के लिए जीवनदायिनी अरावली की पहाड़ियों में पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद माफिया खनन कर लगातार अरावली को छलनी कर रहे हैं। इसी तरह खनन जारी रहा तो आने वाले कुछ सालों में दिल्ली- दिल्ली से महेन्द्रगढ़, भिवानी व अलवर के करोड़ों लोगों की समस्या बढ़ जाएगी। हरियाणा में अवैध खनन के लिए काफी हद तक सरकारी सिस्टम ही जिम्मेदार है। भिवानी के डाडम की पहाड़ियों में अवैध खनन के बाद भी सरकारी सिस्टम ने हादसे से सबक नहीं लिया। अगर रेत, बजरी, मौरंग, बदरपुर, गिट्टी या बोल्डर की राज्य में आवश्यकता के अनुसार खत्म हो और उसी के परिमाण में खनन के पट्टे जारी किए जाएं तो अवैध खनन की नौबत ही नहीं आएगी। अवैध खनन रोकने को 20 हजार से अधिक केस हुए दर्ज, लेकिन चलता रहा गोरखधंधा दिल्ली के नजदीक गुरुग्राम, फरीदाबाद और नूंह जिला क्षेत्र की अरावली पर्वतमाला में 2009 से खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध है। फरीदाबाद में सबसे पहले छह मई 2002 को प्रतिबंध लगा था। इसके बाद गुरुग्राम में दिसंबर 2002 को और नूंह जिले में 2009 में पूरी तरह खनन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। प्रतिबंध के बावजूद अवैध खनन किसी न किसी रूप में होता रहा। अवैध खनन रोकने के लिए 20 हजार से अधिक मामले प्रदेश भर में दर्ज हैं, मगर इससे भी अधिक जगह अवैध खनन होता रहा है। दरअसल वैध खनन पर राेक के बाद अवैध खनन के दरवाजे खुले। फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया के सेटेलाइट सर्वे में अवैध खनन की हुई पुष्टि फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया के सेटेलाइट सर्वे में इन अवैध खनन की पुष्टि होती रही है। फरीदाबाद, नूंह, गुरुग्राम, महेंद्रगढ़ से भिवानी में अवैध खनन रोकने के लिए हरियाणा सरकार ने छह मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर तीनों जिलों के 2100 हेक्टेयर क्षेत्र में खनन की अनुमति मांगी थी, मगर अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है। फरीदाबाद के 600 और गुरुग्राम के अरावली के 1500 हेक्टेयर क्षेत्र में पत्थर व खनिज खनन संभव हरियाणा खनन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में खनन की अनुमति मांगते समय जो तर्क दिए थे, उनमें सबसे बड़ा तर्क यह था कि फरीदाबाद में 600 और नूंह व गुरुग्राम में अरावली का 1500 हेक्टेयर ऐसा क्षेत्र है, जो गैर वानिकी कार्य के लिए चिन्हित है। इस क्षेत्र के पत्थर व खनिज का खदान किया जा सकता है। इसके लिए हरियाणा सरकार ने यह भी तर्क दिया कि नूंह जिले से लगते राजस्थान के अलवर व भरतपुर जिले के अरावली के गैर वानिकी क्षेत्र में खनन कार्य खुला है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई निर्णय नहीं दिया है। अवैध खनन रोकने के प्रति सरकार ने कभी नहीं दिखाई गंभीरता अरावली क्षेत्र में अवैध खनन रोकने के लिए सरकार ने कभी भी गंभीरता नहीं दिखाई। सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी ने लगातार इस बाबत सरकारों को निर्देश दिए। 2002 में लगे प्रतिबंध के बावजूद फरीदाबाद और गुरुग्राम में अरावली क्षेत्र में अनेक अवैध फार्म हाऊस बन गए। नूंह में 2009 के बाद भी लगातार हो रहा है खनन नूंह में 2009 के बाद भी खनन लगातार हो रहा है। इसके अनेक तथ्य फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया के सेटेलाइट सर्वे में कई बार मिले हैं। इसके अलावा जो एफआइआर हुई हैं, उनको देखकर यह कहा जा सकता है कि कभी कभार कोई सुरेंद्र सिंह बिश्नोई डीएसपी जैसा ईमानदार अधिकारी ही इन अवैध खनन करने वालों के रास्ते में आ खड़ा होता है। बाकी तो सब मिलीभगत से चल रहा है। वन अधिकारी कहते हैं कि जब प्रतिबंध है तो इसे खोलने की मांग सुप्रीम कोर्ट में रखकर सरकार यहां के ग्रामीणों में आस क्यों जगाती है। कुछ राजनेताओं की शह से भी पनप रहे खनन माफिया अरावली में खनन के अवैध व्यवसाय से जुड़े लोग वैसे तो अरावली की तलहटी में बसे गांवों के ही रहने वाले हैं। लेकिन सत्ता बदलने के साथ ही काम करने वाले चेहरे भी बदल जाते हैं। मतलब साफ है कि कुछ सत्ताधारी नेताओं का खनन माफिया पर हाथ होता है। खनन माफिया के सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं से भी तार जुड़े होते हैं। खादी और खाकी की मेहरबानी से पनपे खनन माफिया के लिए हरियाणा व राजस्थान की अरावली बेल्ट सोना उगल रही है। कभी-कभी कोई नायक इस नापाक गठजोड़ को तोड़ने की कोशिश करता दिखता है, मगर हमेशा ऐसा नहीं है। पैसों के बोझ से खनन माफिया के दिल और धूलकणों के कारण श्रमिकों के फेफड़े पत्थर हो रहे हैं। माफियाओं में धन के आगे मानवीय संवेदनाएं मर रही है। नियमों को ताख पर रखकर हो रहे अवैध खनन व अवैध क्रशरों के संचालन ने इनसे जुड़े मजबूर मजदूरों की जिदगी को सच में पत्थर बना दिया है। महीन कणों से पैदा होने वाली सिलिकोसिस नामक बीमारी श्रमिकों के फेफड़ों का लचीलापन खत्म करके उन्हें पत्थर बना रही है। महेंद्रगढ़ जिले का नांगल चौधरी क्षेत्र हो या भिवानी की अरावली बेल्ट, अलवर जिले की हरियाणा से सटी सीमाएं, झुंझुनू व सीकर जिले की पूर्वी सीमा हो या नूंह व गुरुग्राम की अरावली श्रंखला, हर जगह तेजी से माफिया पनप रहा है। किसी का काम खनन के एक पट्टे की आड़ में अवैध खनन का है तो किसी का राजस्थान से पत्थर लाकर हरियाणा में क्रश करने का, कोई अवैध तरीके से क्रंक्रीट बना रहा है तो कोई पूरे पहाड़ को ही बेचने में लगा हुआ है। राजस्थान के अलवर जिले में अवैध खनन को लेकर पिछले दिनों की गई सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी आंखें खोलने वाली है। जब सर्वोच्च अदालत को अधिकारियों ने यह बताया कि अलवर जिले में अब तक 31 पहाड़ियां गायब हो गई है तो न्यायालय को कहना पड़ा कि क्या इतने पहाड़ हनुमान जी उठा ले गए! परंतु इतनी तल्ख टिप्पणी के बाद भी न सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का असर दिख रहा है न एनजीटी के आदेशों का। कभी-कभी दिखावे की कार्रवाई अवश्य होती है, मगर यह दोस्ताना मैच फिक्स होता है। यह बता दें कि लगभग पांच वर्ष पूर्व रेवाड़ी की सीमा के निकट अलवर के चौपानकी थाना क्षेत्र में भी एक सिपाही के ऊपर डंपर चढ़ा दिया गया था, जिससे जवान की मौत हो गई थी। विधानसभा में उठ चुका है सिलिकोसिस का मामला नांगल चौधरी के धोलेडा में सिलिकोसिस बीमारी का मामला सिलिकोसिस बीमारी का मामला हरियाणा विधानसभा में भी उठ चुका है। इसी वर्ष नांगल चौधरी के विधायक डा. अभय सिंह यादव ने प्रश्नकाल के दौरान मामला उठाते हुए नांगल चौधरी क्षेत्र में स्टोन क्रशर की धूल के कारण मेघोत बिजा गांव में मिले सिलिकोसिस के एक मरीज का उल्लेख किया था। विधायक ने तब सदन में कहा था कि जो अधिकारी समस्या से इंकार करते हैं, उन्हें एक दिन क्रशर जोन में रुकने के लिए कहा जाना चाहिए। विधानसभा में बेशक यह एक मरीज का मामला उठा है, मगर देश में खनन क्षेत्र के हजारों मजदूरों के फेफड़े जवाब दे रहे हैं। लीज क्षेत्र छोटा, खनन बड़ा खनन माफिया खुद को कानून के दायरे में दिखाने के लिए छोटी लीज पट्टे पर भी ले लेते हैं, मगर वह अधिकृत की बजाय साथ सटे अनधिकृत क्षेत्र से खनन करते हैं और इस हिस्से में कइयों की बंदरबांट होती है। खनन से जुड़े लोग संबंधित क्षेत्र के कुछ प्रभावशाली नेताओं को साधकर रखते हैं। इसी कारण ओवरलोड डंपर, अवैध खनन व अवैध क्रशरों की चेन मजबूत होती जा रही है। अकेले एनसीआर के हरियाणा व राजस्थान के अरावली क्षेत्र में अवैध डंपरों की संख्या दस हजार से अधिक बताई जा रही है। कागजी खानापूर्ति या संकट के समय खाल बचाने के लिए इनमें से कुछ का नियमित चालान व जुर्माना फिक्स है। यह नूरा कुश्ती है, जिसमें जीत माफिया की होती है। सीमा विवाद के चलते भी नहीं थम रहा अवैध खनन राजस्थान सीमा से सटे हरियाणा के अरावली क्षेत्र में अवैध खनन लगातार हो रहा है। अवैध खनन होने के पीछे सीमा विवाद भी मुख्य वजह है। इसे रोकने के लिए प्रशासन व पुलिस की टीमें समय-समय पर अभियान चलाती हैं, लेकिन हरियाणा सीमा में इस कार्य को अंजाम देने वाले माफिया की राजनीतिक तथा प्रशासनिक अधिकारियों में अच्छी पकड़ होने के चलते इनके हौंसले बुलंद हैं। राजस्थान सरकार ने अपने सीमांत क्षेत्र यानी नांगल, धोलेट, छपरा और गंगोरा आदि गांवों में खनन कार्यों की अनुमति प्रदान की हुई है जबकि हरियाणा के क्षेत्र में खनन कार्यो की अनुमति नहीं है। यहां के अधिकांश लीज होल्डर हरियाणा वन क्षेत्र में अवैध खनन करते हैं। सरकार ने खनन के लिए सुप्रीम कोर्ट से मांगी अनुमति: मूलचंद शर्मा ” सरकार ने नूंह, गुरुग्राम और फरीदाबाद से लगते अरावली के 2100 हेक्टेयर क्षेत्र में गत वर्ष ही खनन की अनुमति सुप्रीम कोर्ट से मांगी थी। अभी तक यह अनुमति नहीं मिली है। 2009 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सरकार ने खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया हुआ है। नूंह जिला में पिछले दो वर्षों में अवैध खनन करने वालों पर सरकार ने हर तरह से सख्ती की है। नूंह में डीएसपी की मौत की घटना बहुत दुखद है। सरकार दोषियों को सख्त सजा दिलवाएगी। – मूलचंद शर्मा, खनन एवं परिवहन मंत्री, हरियाणा। Post navigation सुरेन्द्र सिंह बिश्नोई हत्या : सत्ता के उच्च सरंक्षण के बिना खनन माफिया इतने बेखौफ हो सकते है? विद्रोही आम जनता को एक छत के नीचे मिले पानी और फूड टेस्टिंग की सुविधा – मुख्यमंत्री