सब गोलमाल है

अपने यहां लगभग हर आदमी बेइमानी की तलाश में है और हर आदमी चिल्लाता भी है कि बड़ी बेईमानी है। फरीदाबाद नगर निगम का ही किस्सा लो। यहां लगभग हर किसी ने बहती गंगा मे हाथ धोए। जिन्होंने इस गंगा में डुबकी लगा कर माल बनाया-पुण्य कमाया, वो भी कह रहे हैं कि यहां घोटाला हुआ है। इस नगर निगम में बिना काम के भुगतान और काम की लागत कई गुना बढाने के घोटाले की हरियाणा विजिलैंस वाले मनमाफिक तरीके से जांच कर रहे हैं। ब्यूरो ने जिन दो आईएएस अफसरों से पूछताछ के लिए मुख्य सचिव से अनुमति मांगी है,वो फिलहाल मिल नहीं पाई है। इस घोटाले में कई आईएएस अफसर आरोपी हैं। मामले से जुड़े एक आईएएस अफसर के मुताबिक फरीदाबाद नगर निगम में दो तरह से घोटाले को अंजाम दिया गया। एक तो काम न होने के बावजूद पेमैंट का भुगतान ठेकेदार को कर दिया गया दूसरा ये हुआ कि विकास कामों की लागत में बिना किसी वैध कारण के कई सौ गुना तक बढौतरी कर दी गई। पीडब्लूडी कोड के मुताबिक इंजीनियरिंग विंग से जुड़े विकास कामों की लागत अनुमानों में महज दस फीसदी की बढौतरी हो सकती है और वो भी जब इसके लिए न्यायसंगत कारण उपलब्ध हों जैसे कि सीमेंट,सरिया,पत्थर,ईट रोड़ी के दामों में इजाफा हो जाए। मामले से जुड़े कुछ अफसरों को लगता है कि इस घोटाले में कुछ को जानबूझकर टारगेट किया जा रहा है, जबकि कुछ को क्लीन चिट देने की तैयारी की जा रही है। कुछ अफसरों का दिल जांच के नाम पर जो धक धक रहा है, उस पर कहा जा सकता है..

जिधर जाने से दिल कतरा रहा है
उसी जानिब को रस्ता जा रहा है

कई अफसर और नेताओं पर उठ रही उंगलियां
मौटे तौर पर इस घोटाले में कई आईएएस अफसरों और नेताओं शामिल होने के आरोप हैं। इनमें से ज्यादातर अफसर फरीदाबाद नगर निगम के आयुक्त्त पद पर रह चुके हैं। इनमें से एक आईएएस अफसर रिटायर हो चुके हैं,जबकि बाकि अभी गाजे बाजे के साथ जनसेवा के कार्यक्रम में तत्पर है।

रिकार्ड जलवा दिया गया-गायब कर दिया गया
मामले से जुड़े एक आईएएस अधिकारी के मुताबिक उनको जान बूझ कर प्रताड़ित किया जा रहा है, जबकि इस में सबसे ज्यादा खेल करने वाले आईएएस अफसर पर अभी तक हाथ नहीं डाला गया है। इस अधिकारी पर ये भी आरोप है कि इन्होंने अपने काले कारनामे सामने न आने देने की व्यूह रचना पहले से ही कर ली थी और अपनी संलिप्ता से जुड़े काफी रिकार्ड को खुर्दबुर्द कर दिया-करवा दिया। काफी रिकार्ड को गायब करवा दिया और अग्नि के समर्पित कर जलवा दिया। उपलब्ध रिकार्ड के मुताबिक फरीदाबाद में नगर निगम के आयुक्त रहे इन आईएएस अधिकारी ने खुल कर बैटिंग की। जैसे कि इंटरलाकिंग टाईल लगाने का बिल 55 लाख से बढा कर दस दिन भीतर 99 लाख कर दिया गया। दो दिन बाद इसे और ज्यादा बढा कर एक करोड़,97 लाख रूपए कर दिया गया था। नियमों के मुताबिक एक करोड़ से अधिक के काम स्वीकृत करने के लिए नगर निगम कमिशनर की पावर नहीं थी, ये और ये काम निगम की फाइनैंस कमेटी की अनुमति के मुताबिक नहीं हो सकता था। इसका कोई वाजिब कारण नहीं है कि बारह दिन के भीतर ही काम की लागत में चार गुना बढौतरी कैसे कर दी गई?

प्रदेश भर में हो रहा है खेल
नगर निकाय विभाग में एक समय बतौर नगर निगम कमिशनर और प्रशासकीय सचिव के तौर पर सेवाएं दे चुके एक सीनियर आईएएस अफसर ने कहा कि फरीदाबाद को तो बिना बात के ही बदनाम किया जा रहा है। बिना काम के भुगतान करने,कम लागत के काम को कई गुना का बढाने-बनाने और गैर जरूरी काम करने के स्कैंडल तो लगभग पूरे हरियाणा में ही चल रहे हैं। चलते रहे हैं। ये अकेले मौजूदा सरकार में ही नहीं,बल्कि ये काम पहले की सरकारों में भी धड़ल्ले से होते रहे हैं। अगर पिछले दो दशक में अकेले गुड़गाम नगर निगम में हुए कार्यो की ईमानदारी से जांच हो जाए तो बहुत बड़ा घोटाले सामने आ सकते हैं।

इस जांच की लपेट में स्थानीय अधिकारियों के अलावा विभागीय निदेशक,विभागीय प्रशासकीय सचिव और विभाग की कमान संभालते रहे मंत्री और अन्य प्रभावशाली लोग भी आ सकते हैं। विभाग में काम करने वाले ताकतवर ठेकेदार पूरा सिस्टम ही हाईजैक कर लेते हैं। अपने हिसाब से अफसरों-कर्मचारियों को लगवाते हैं और अपने हिसाब से कामों का इस्टीमेट बनवाते हैं। बढवाते हैं। अपनी मुराद पूरी होने में अड़चन बनने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों का तबादला करवाते हैं। ये रहस्य ना तो विभागीय निदेशक-प्रशासकीय सचिव या मंत्री से छिपा है और न ही अन्य सबंद्ध अधिकारियों से। सब कुछ खुल्म खुल्ला हो रहा है। दिन दिहाड़े सब डंके की चोट पर हो रहा है। अफसर तो खुद इन ठेकेदारों की फाइल क्लियर करवाने के लिए फाइल बगल में दबाए भागे भागे फिरते हैं क्योंकि इन ठेकेदार को पेमैंट जितनी जल्दी क्लियर होगी उतनी जल्दी ही इनको रिश्वत पहुंचेगी।

इस खेल में जितने अधिकारी शामिल हैं उतने ही पार्षद,विधायक और अन्य राजनेता शामिल रहते हैं। इन सबको उनका हिस्सा मिलता रहता है तो वो भी आंख मंूदें रहते हैं। इस खेल में शामिल रहते हैं। दिक्कत तभी आती है जब इनको मनमाना हिस्सा नहीं मिलता। जब इनको पूरी रिश्वत नहीं मिल पाती तो फिर ये रायता फैलाने में देर नहीं लगाते। शिकायतबाजी पर आ जाते हैं। लैटरबाजी और विजिलैंसबाजी पर उतर आते हैं। अब तो कुछ होशियार अफसरों ने ऐसे कामों के लिए विजिलैंस सैस लगाने का आइडिया भी पेश कर दिया है। इसका मकसद ये है कि विजिलैंस वालों को भी अपनी तरफ रखा जाए ताकि वो धड़ल्ले से इस तरह के घोटालों कोे अंजाम देते रहें। खैर हमारा तो यही कहना है कि सरकार को इन तमाम अफसरों के हौसलों को परवाज देनी चाहिए। इनको विजिलैंस जांच के नाम पर नहीं उलझाना चाहिए। अगर ऐसा होता रहा तो फिर बाकि जूनियर अफसरों के हौसलों पर आंच आती है। वो खुल कर खेलने से कतराते हैं। उनके अरमान टूट जाते हैं। जनसेवा के कार्यक्रम में खलल पड़ता है। वो अपनी प्रतिभा के साथ इंसाफ नहीं कर पाते हैं। जिसको जहां जैसा जो मौका मिल रहा है उसे वो कार्यक्रम जारी रखने की छूट दी जानी चाहिए। जो लोग इन अफसरों पर तोहमत लगाते रहते हैं, उनके लिए यही कहा जा सकता है..

पांव के लड़खड़ाने पर तो सबकी नजर है
सिर पर कितना बोझ है इनके कोई देखता ही नहीं

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