सत्यवान ‘सौरभ’……….रिसर्च स्कॉलर, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट, जीवन में छोटी चीजों का आनंद लें क्योंकि एक दिन आप पीछे मुड़कर देखेंगे और महसूस करेंगे कि वे बड़ी चीजें थीं। छोटी चीजें जरूरी हैं क्योंकि वे हमारे जीवन के विशाल बहुमत को शामिल करती हैं। महत्वपूर्ण घटनाएं छिटपुट रूप से घटित होती हैं। छोटे-छोटे पल-पल होते रहते हैं। जब आप छोटी-छोटी चीजों की उपेक्षा करते हैं, तो आप अपने जीवन का काफी आनंद लेने से चूक जाते हैं। बचपन मे कहानी सुनी थी -एक मुर्गी रोज एक सोने का अन्डा देती थी पर उसके मालिक ने बडी खुशी के लिऐ उस मुर्गी को मारकर सब अन्डे साथ मे निकालने की सोची; न अन्डा मिला न मुर्गी बची तो तात्पर्य ये है की एक बडी खुशी से जीवन मे छोटी-छोटी खुशियां ज्यादा मायने रखती है। छोटी-छोटी बातों की सराहना किए बिना केवल बड़ी चीजों के बारे में सोचना हानिकारक भी हो सकता है। भव्य उपलब्धियों से जुड़ा एक बाहरी और आंतरिक दबाव है, और बहुत अधिक दबाव में रहने से आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। चिंता की भावना, नींद की कठिनाइयों, एक समझौता प्रतिरक्षा प्रणाली, और अस्पष्ट दर्द और दर्द अत्यधिक तनावग्रस्त होने के असामान्य लक्षण नहीं हैं। हमारे पास पहले से मौजूद साधारण चीजों का आनंद लेने के बजाय हमेशा अधिक चाहना एक बहुत ही असंतोषजनक जीवन की ओर ले जा सकता है। जबकि लक्ष्य और सपने निश्चित रूप से फायदेमंद होते हैं, अधिक पाने की अतृप्त इच्छा आपको असंतुष्ट और आक्रोशित महसूस करा सकती है। निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास आपको वर्तमान क्षण में आनंद और कृतज्ञता से दूर कर देता है। इस प्रकार की मानसिकता आपके पास जो है उससे ध्यान हटा देती है और इसे कमी के विचारों पर लगा देती है। हालांकि, एक आभारी हृदय आपको अभी हो रही छोटी-छोटी चीजों की सराहना करने में अच्छाई देखने की अनुमति देता है। छोटी-छोटी चीजों की सराहना करने की क्षमता आपके जीवन को बड़े पैमाने पर उन्नत कर सकती है। छोटी-छोटी बातों का जश्न मनाने और परिप्रेक्ष्य में थोड़े बदलाव के साथ हर दिन आभारी होने का कारण है। जिस तरह हर दिन की अपनी खुशियाँ होती हैं, उसी तरह हर दिन का भी अपना संघर्ष होता है। जब हमारे जीवन में छोटी-छोटी चीजों के लिए कृतज्ञता की कमी होती है, तो ये संघर्ष हमें और अधिक प्रभावित कर सकते हैं। एक सकारात्मक और आभारी मानसिकता, हालांकि, जब हम दैनिक निराशाओं का सामना करते हैं, तो हमारे लचीलेपन का निर्माण करेंगे। ऐसा महसूस न करें कि आप ब्रह्मांड में हैं और पहले से ही। उसका हिस्सा महसूस करो। अहंकार हमें सकारात्मक से अलग महसूस कराता है क्योंकि यह हमें विश्वास दिलाता है कि हम दूसरों की तुलना में अधिक हैं। अपनी पहचान की सराहना करें आप एक विशाल स्पेक्ट्रम के भीतर एक अद्वितीय कोड हैं, हालांकि कुछ विपरीत कहते हैं। अपने विचारों को हमेशा सकारात्मक होने की ओर केंद्रित करें और खुद को धोखा न दें। शुरू से ही वे बेहद साधारण सिफारिशों की तरह आवाज करते हैं, लेकिन वास्तव में कई लोगों को समझने और आंतरिक रूप से कठिन लगता है। हमें याद रखना चाहिए कि हम वही हैं जो हम करते हैं, और यह कि कोई भी बदलाव आसान नहीं है। अक्सर लोग कहते हैं- अरे खुश रहो यार । खुश रहने में कुछ पैसा नहीं लगता । क्या ये पूरी तरह सच है ? ज़रा पूछिये उस धनाढ्य व्यक्ति से, जिसके पास दुनिया की तमाम एशो-आराम दे सकने वाली वस्तुयें मयस्सर हैं मगर रुहानी खुशी, वास्तविक आनंद..क्या वह दौलत से खरीद सकता है ? नहीं न ? आनंद का अनुभव करने के लिये हमें वास्तव में बाहर नहीं खोजना चाहिये । खुशी हमारे भीतर ही है । आंतरिक ठहराव, संतुष्टि, सुकून और प्राणी मात्र के प्रति सद्भाव/दया/स्नेह तथा परिस्थितियों का सामना करने की अपनी क्षमता का निरंतर बोध ही आपको वास्तविक खुशी प्रदान कर सकता है। एक बार आप भीतर से संवेदंशील एवं सक्षम हो गये तो फिर क्या है !अपने चारों ओर नज़रें घुमा के तो देखिये- -ज़िंदगी खुशियों से भरपूर दिखाई देगी— भँवरे का गुंजन, पक्षियों का कलरव, बच्चों की किलकारी, उनके दमकते हुए चेहरे, बारिश की टिप-टिप धवनि, उसके पश्चात धरती से उठती सौंधी-सौंधी खुशबू, हवा का आभास….और न जाने क्या क्या.. ये सब आपको आह्लादित कर देंगे । उमर ख्य्याम के प्रसिद्ध शब्दों में: “इस लम्हे में खुश रहिये । ये लम्हा ही ज़िंदगी है !” तो भई, अपन तो कोशिश करते हैं कि खुद भी खुश रहा जाये और दूसरों को भी रखा जाये । हाँ, एक बात का ज़रूर ख्याल रखें-कभी भी दूसरों के “खर्चे” पर खुश रहने या होने का प्रयास न करें । अर्थात, अपने से कमज़ोर को बुली करके, दूसरों की नाकामयाबी य परेशानी का लुत्फ उठाके, दूसरों से मेहनत करवा के (मसलन-मैं जब भी धर्मिक स्थलों पर मोटे-मोटे और सक्षम व्यक्तियों-खास तौर पर नौजवान पुरुषों-को मज़दूरों द्वारा उठायी डोलियों पर या सींकिया खच्चरों पर सवारी करते देखता हूं तो अच्छा नहीं लगता। या सडकों पर थ्रिल के नाम पर खतरनाक ड्राईविंग करना कुछ इस प्रकार के सुख हैं जो मेरी नज़र में दूसरों के “खर्चे” पर लिये जाते हैं । हम तो इन छोटी-छोटी खुशियों को पा के ही जन्नत का मज़ा लूटते हैं क्योंकि प्रसिद्ध लेखिका मार्था ट्रोली कर्टिन ने कहा था: ”जिस वक्त को बर्बाद करने में मज़ा आये, वह बर्बाद वक्त नहीं है।“ Post navigation स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता का अभाव झेलती मीडिया लघु कथा ……… अरे ,,,,ऐसा ?