-कमलेश भारतीय अपने ऑफिस के सामने एक छोले भटूरे की रेहड़ी पर जब एक महिला को देखा तो थोड़ा चौंकना स्वाभाविक था । आज से पहले तो कोई पुरूष ही इसे चला रहा था । फिर यह बदलाव कैसे ? पूछा-आप क्यों ?-वे नहीं रहे । चला चलाया काम ही चलाने सड़क पर आ गयी । बच्चे और पेट की खातिर ।-ओह । मुंह से निकला ।फिर मैं अपने ऑफिस जाता और उसे रेहड़ी पर पेट और बच्चों के लिए संघर्ष करते देखता । कभी कभार मैं भी उसके बनाये छोले भटूरों का स्वाद चखता ।एक दिन दो दिन और कुछ दिन देखा वह महिला नदारद रही । आखिर मैंने उसकी जगह काम कर रहे आदमी से पूछा -वो जो रेहड़ी लगातीं थीं , वो कहां गयीं ?-छोड़ गयीं ।-क्यों ? क्या हुआ?-यह तो आप उन्हीं से पूछिए ।-नम्बर है ?-जी । यह लीजिए ।और मैंने नम्बर मिला दिया ।-आपने काम क्यों छोड़ दिया?-बाबू जी । औरत तो जीना चाहती है लेकिन अकेली औरत को जीने तो नहीं देते ।-क्या मतलब?-वो सामने ज्वेलर्स शाॅप वाला एक दिन मुझे बुरी तरह बोला कि मैं सड़क किनारे इस तरह शोहदों को बुलाती हूं । सुना नहीं गया । बस । काम छोड़ दिया । घर बैठ गयी और बच्चों के साथ खूब रोयी ।-अरे ,,,,,रे ,,,कुछ तो किया होता विरोध ,, Post navigation किसकी जीत , किसकी हार ,,,? शहरी स्थानीय निकाय मंत्री डॉ कमल गुप्ता ने शहर में विभिन्न विकास परियोजनाओं का लोकार्पण किया