लगातार दूसरे दलों से आए नेताओं को ऑब्लाइज करने में व्यस्त भाजपा आलाकमान
कांग्रेस ने अपने राज सभा के 10 उम्मीदवारों को घोषित किया
हरियाणा से अजय माकन तथा राजस्थान से शमशेर सिंह सुरजेवाला को उतारा मैदान में
भारत सारथी
भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में राज्यसभा का उम्मीदवार सबसे पहले घोषित कर सभी को चौंका दिया है। लेकिन, जिस कृष्ण लाल पंवार के नाम का ऐलान किया गया है, वह न तो कट्टर भाजपाई हैं, और न ही आरएसएस से उनका किसी तरह का कोई नाता है। भाजपा इन दिनों हरियाणा में पुराने छोड़, नए जोड़ की नीति पर कार्य कर रही है। कम से कम पिछले कुछ समय से राज्यसभा भेजे गए नेताओं के नामों को देखकर तो यही लगता है।
हरियाणा में भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने वाले नेताओं के तौर पर कई नाम अक्सर लिए जाते हैं। ये वह नेता हैं, जो जन्मजात भाजपाई हैं। यूूं कहें कि इन्होंने जब पार्टी एकदम जीरो थी तो तभी से प्रदेश में कार्य किया है। यह भी कह सकते हैं कि इनमें से कई की तो आरएसएस में भी पूरी हाजिरी और पहुंच है, लेकिन राज्यसभा का दरवाजा पार्टी ने इनके लिए नहीं खोला। इन नेताओं के नाम के तौर पर फिलहाल रामबिलास शर्मा, सुभाष बराला, जगदीश चोपड़ा, सुधा यादव, कर्ण देव कंबोज, कैप्टन अभिमन्यु, ओमप्रकाश धनखड़, विपुल गोयल के नाम लिए जा सकते हैं। खबरों के मुताबिक इन सभी को राज्यसभा में एंट्री का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। लेकिन, इनमें से किसी का भी नाम घोषित न होना भाजपा की बदली सी रणनीति को दर्शाता है।
भाजपा ने कृष्ण लाल पंवार को राज्यसभा की टिकट देकर अनुसूचित जाति के मतदाताओं को साधने की कोशिश की है। लेकिन, यह भी स्पष्ट है कि अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाली चमार व धानक बिरादरी (मेरा मतलब किसी भी बिरादरी को टारगेट करना या उस पर टिप्पणी करना नहीं है, सिर्फ विश्लेषण के लिए ये शब्द प्रयोग किए गए हैं) से पहले से ही प्रदेश में भाजपा के पास सांसद मौजूद हैं। ऐसे में अगर भाजपा को वाल्मीकि समाज से ही किसी नेता को भेजना था तो फिर रामौतार वाल्मीकि, अमरनाथ सौदा, कृष्ण बेदी कहीं न कहीं कृष्ण लाल पंवार से अच्छे नाम हो सकते थे। कम से कम ये तो वह नेता हैं, जो पुराने भाजपाई हैं। पंवार तो उन नेताओं में शामिल माने जाते हैं, जो 2014 के चुनाव से पहले भाजपा में आए, विधायक चुने गए और फिर मंत्री बन गए। पंवार भाजपा में 2019 का विधानसभा चुनाव बुरी तरह हार चुके हैं।
यहां बात सिर्फ पंवार की नहीं हो रही, इससे पहले भी भाजपा ऐसे लोगों को राज्यसभा भेज चुकी है, जो दूसरी पार्टियों से नए-नवेले के तौर पर भाजपा में आए थे। इनमें रामचंद्र जांगड़ा, डीपी वत्स, चौधरी बीरेंद्र सिंह के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं। ऐसे में सवाल यही उठता है कि भाजपा ने अपने मूल नेताओं को छोड़कर दूसरी जगहों से आए लोगों को तवज्जो देनी शुरू कर दी है। कहीं न कहीं यह न सिर्फ भाजपा के मूल नेताओं के लिए दुखदायी साबित हो रहा है, बल्कि पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं का मोरल डाउन करने में भी बड़ी भूमिका निभा सकता है।
इधर कांग्रेस ने अपने राज सभा के 10 उम्मीदवारों को घोषित किया है इसमें हरियाणा से अजय माकन को, छत्तीसगढ़ से राजीव शुक्ला व रणजीत रंजन, कर्नाटक से जयराम रमेश, मध्यप्रदेश से विवेक तंखा, महाराष्ट्र से इमरान प्रतापगढ़ी, राजस्थान से शमशेर सिंह सुरजेवाला, मुकुल वासनिक व प्रमोद तिवारी तथा तमिलनाडु से पी चिदंबरम को प्रत्याशी घोषित किया है।