यदि सरकार ने इस पर विशेष ध्यान देकर व विशेष बजट प्रावधान करके गिरते भू-जलस्तर को रोकने व ऊपर उठाने के गंभीर व सार्थक प्रयास नही किये तो आने वाले दस सालों में प्रदेश के सामने पीने के पानीे का ही गंभीर संकट खड़ा हो जायेगा।

17 मई 2022 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने हरियाणा औरे विशेषकर अहीरवाल में गिरते भू-जलस्तर पर गंभीर चिंता प्रकट करतेे हुए कहा कि यदि सरकार ने इस पर विशेष ध्यान देकर व विशेष बजट प्रावधान करके गिरते भू-जलस्तर को रोकने व ऊपर उठाने के गंभीर व सार्थक प्रयास नही किये तो आने वाले दस सालों में प्रदेश के सामने पीने के पानीे का ही गंभीर संकट खड़ा हो जायेगा। विद्रोही ने कहा कि जिस तरह दुनिया में बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियर पिंघल रहे है उससे 2030 के आसपास गर्मी का पारा 15 से 20 प्रतिशत बढ़ जायेगा। गर्मी पारा बढऩे का अर्थ होगा कि कम वर्षा और व वर्तमान भू-जलस्तर का गिरना। हरियाणा में कई क्षेत्र भू-जलस्तर गिरने से पानी की कमी से जूझ रहे है। इनमेें अहीरवाल का क्षेत्र सबसे आगे है और दूसरे नम्बर पर फतेहाबाद जिला है।

पूरे हरियाणा में जहां औसत भू-जलस्तर 21.36 मीटरे है, वही महेन्द्रगढ़ जिले में यह सबसे ज्यादा गिरकर 49.42 मीटर तक पहुंच चुका है जबकि रेवाडी जिले में यह 31.11 मीटर है व फतेहाबाद में 35.52 मीटर है। विद्रोही ने कहा कि प्रदेश में सबसे ज्यादा अधिक भू-जलस्तर महेन्द्रगढ़ जिले में है और इसमें भी नांगल चौधरी ब्लॉक में यह 1000 से 1400 फुट नीचे तक गिर चुका है। रेवाड़ी जिले के खोल ब्लॉक में भी भू-जलस्तर खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है। पूरे हरियाणा में पिछले दस सालों में भू-जलस्तर 4.33 मीटर नीचे तक गिरा है जो बहुत ज्यादा गिरावट है। प्रदेश में भू-जलस्तर सुधरने की बजाय लगातार गिरता जा रहा है। हरियाणा में नहरी पानी का समान बटवारा न होने व नहरी पानी की सही नीति न होने से एक क्षेत्र में सेमग्रस्त होकर जमीन खराब हो रही है तो वहीं अहीरवाल जैसा क्षेत्र की पर्याप्त नहरी पानी न मिलने से जमीन सूखती जा रही है।

विद्रोही ने कहा कि 1994 में हरियाणा में जहां अधिक पानी की वजह से 6 लाख एकड़ जमीन सेमग्रस्त थी, वह वर्ष 2022 में बढ़कर 9.82 लाख एकड़ तक पहुंच चुकी है। दुर्भाग्य से प्रदेश में सबसे कम वर्षा भी अहीरवाल क्षेत्र में होती है और सबसे कम नहरी पानी भी इसी क्षेत्र को दिया जाता है। प्रदेश की हालत यह है कि अहीरवाल को छोडकर अन्य क्षेत्रों व जिलों में 40 से 90 प्रतिशत खेती नहरी पानी से सिंचित होती है जबकि अहीरवाल के महेन्द्रगढ, रेवाडी, गुरूग्राम जिले में केवल 2 से 3 प्रतिशत ही जमीन नहरी पानी से सिंचित होती है। खेती की जमीन में नहरी पानी से सिंचित होने के आंकड़े बताते है कि अहीरवाल के साथ नहरी पानी देने में कितना बडा भेदभाव हो रहा है। विद्रोही ने कहा कि प्रकृति भी कम वर्षा करके अहीरवाल क्षेत्र को पानी की कमी से तरसाती है व हरियाणा सरकार भी अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम पानी देकर अहीरवाल के लोगों को पानी के लिए तरसाती है। यदि भापजा सरकार हरियाणा और विशेषकर अहीरवाल क्षेत्र के गिरतेे भू-जलस्तर को रोकने की रणनीति नही बनाई तो भविष्य में अहीरवाल सहित प्रदेश के कई हिस्सों में पीने का पर्याप्त पानी भी मिलना एक बड़ी समस्या बन जायेगा। 

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