शास्त्री हस्पताल के संचालक ज्योतिषाचार्य डा. महेंद्र शर्मा के सानिध्य में भगवान परशुराम जन्मोत्सव पर विचार गोष्ठी

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

पानीपत : 1 मई – भगवान परशुराम जन्मोत्सव, ऋषि पाराशर जयंती एवं शंकराचार्य जयंती के अवसर पर आज एक विचार गोष्ठी का आयोजन सनौली रोड, बाबा गंगापुरी मार्ग स्थित शास्त्री हस्पताल में किया गया। गोष्ठी की शुरूआत हनुमान चालीसा के साथ हुई। सभा के अध्यक्ष विजय कुमार पराशर त्रिखा जी का पुष्पमालाओं से स्वागत किया गया। ज्योति प्रज्जवलन के बाद वक्ताओं ने अपने विचार रखे।

सर्वप्रथम संजय शर्मा ने आज की युवा पीढ़ी के शास्त्रों की जानकारी का अभाव तथा अपने महापुरूषों के चरित्रों से अनभिज्ञता के बारे में अपने विचार रखे। तत्पश्चात वयोवृद्ध ब्राह्मण युधिष्ठिर शर्मा ने वर्तमान परिस्थिति में ब्राह्मणों की दशा के बारे में बताते हुए कहा कि जब तक भारत में शास्त्र और शस्त्र की पूजा की जाती रहेगी। तब तक हमारी संस्कृति अक्षुण्ण रहेगी।

अशोक शर्मा ने कहा आज इंटरनेट के जमाने में सब शास्त्रों को जानते हैं लेकिन शस्त्र पूजा आज समय की आवश्यकता है। यह भारत देश तभी तक है जब तक यहां सनातन धर्म है जब धर्म नष्ट हो जाएगा तब निस्संदेह यह देश तो क्या विश्व भी नहीं बचेगा। विजय शर्मा ने इस अवसर पर संस्कृत शिक्षा के सम्बंध में प्रश्न को उठाया उन्होंने कहा कि आज के समय में संस्कृत के माध्यम से वेद शिक्षा ग्रहण करने पर रोजगार के साधनों का अभाव है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह इस सम्बंध में शिक्षा नीति बनाए।

पुरूषोत्तम शर्मा ने कहा कि संतोष को भले ही शास्त्रों में एक धन माना गया है लेकिन आज के समय में तभी न्याय मिलता है जब उसकी मांग की जाए। ब्राह्मण समाज के पीछे रहने का कारण उसका परंपरागत रूप से उसका संतोषी जीवन जीना भी है। पं. निरंजन पारशर ने इस अवसर पर कहा कि एक 10 सदस्यीय शिष्ट मण्डल बनाया जाए जो सरकार से मिलकर मांग करे कि संस्कृत में धार्मिक विषयों को विश्वविद्यालय से सम्बद्धता मिलनी चाहिए, क्योंकि आज के समय में पूरे देश में ऐसे संस्थान न के बराबर हैं जहां कि संस्कृत भाषा में शास्त्रों के अध्ययन को मान्यता मिली हो।

अंत में डा. महेन्द्र शर्मा ने परशुराम जी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि परशुराम जी ने शास्त्र के साथ आवश्यकता पड़ने पर शस्त्र को भी उठाया इस विषय में अपने भाईयों एवं परिवार से विवाद होने के कारण वे महेन्द्र पर्वत पर एकान्त साधना में चले गए। अन्यायी और अत्याचारी राजाओं को दंडित करते हुए उन्होंने 21 बार धरती को मुक्ति दिलवाकर धर्म की स्थापना की।

इस अवसर पर मदन लाल शर्मा, लाल चंद गोस्वामी, चंद्रशेखर शर्मा, सतनारायण शर्मा, जितेन्द्र गुप्ता, दैवेन्द्र तूफान, विकास टुटेजा, राजेन्द्र टुटेजा, विजय गौड़, विनोद त्रिखा, जे.पी. शर्मा, ईश्वर लाल उपमन्यु, पिंकल शर्मा, सोनू शर्मा, सुनील भार्गव, ईश शर्मा,वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, अश्विनी भरद्वाज रामपाल कौशिक ,विजेंद्र अत्रि , देवेंद्र तूफान आदि उपस्थित रहे।

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