-कमलेश भारतीय

क्या हरियाणा प्रदेश काग्रेस के अध्यक्ष पद का मसला इतना पेचीदा है कि कांग्रेस हाईकमान लगातार मैराथन बैठकें करके भी इसे सुलझाने में असमर्थ है ? या फिर शैलजा का मोह जो किसी फैसले पर मोहर नहीं लगने दे रहा ? या फिर अनिर्णय से अभी हरियाणा कांग्रेस को और धरातल में धकेलना है ? या फिर अभी जो संगठन ही खड़ा नहीं कर पाये उन अध्यक्ष के सहारे चलते रहना है ? या फिर बेकार की बहस कि जाट समाज से या गैर जाट समाज से अध्यक्ष बनाना हो ? कितनी सारी बुझारतें और पहेलियां जिनका कोई अर्थ नहीं , उनपर मैराथन किसलिए ? कितने सारे फाॅर्मूलों पर अभी विचार करना है ? कभी सोचिए और सर्वे करवाइए कि कौन हरियाणा में मजबूत पकड़ रखता है । क्या जाट तो क्या गैर जाट ? इस बहस को छोड़कर सोचिए ।

कभी पी के क्या कहता है तो कभी दूसरे नेता क्या कहते हैं ? अरे आपको कुछ पता भी नहीं चलता की कौन हरियाणा में सबसे ज्यादा सक्रिय है और कौन मौके पर चौका लगाने चला आया है ? जो अपने विधानसभा क्षेत्र में अपनी मौजूदगी प्रेस नोट से लगवाये और देश विदेश में घूमते प्रेसनोट भिजवाये , उसके प्रति इतनी तवज्जो किसलिए ? जो अपनी पार्टी बना कर पूरे प्रदेश में अपना भविष्य खो चुका हो और गैर जाट की राजनीति को जनता ने ठेंगा दिखा दिया हो , वही आज दावेदार कैसे ? आखिर फैसले की घड़ी कब आयेगी ? तब जब सब कुछ खत्म होने को होगा ? जब कोई व्यक्ति इसे संभाल ही न पायेगा ?

पहले अशोक तंवर को निकालने की हिम्मत न दिखाई , फिर पंजाब में नवजोत सिद्धू को अध्यक्ष बना कर क्या पाया ? महाराजा की रानी को निकाल न सके ? कैसी और कितनी कमजोर है हाईकमान ? कैसे फैसले ? इसीलिए क्या युवा और क्या वरिष्ठ सबके सब नाराज ? न अशोक तंवर संगठन खड़ा कर सके और न शैलजा । प्रेस में सवाल पूछो तो एक ही रटा रटाया जवाब -जल्दी ही । यह जल्दी ही कभी नहीं हुई और कार्यकाल खत्म होने पर आ गया । सिर्फ प्रेस के बीच चेहरा दिखाते रहने से क्या होगा ? कोई आंदोलन न चला पाये । इस ढुलमुल तरीके से क्या आप भाजपा संगठन को हरा पायेंगे? जो हर बूथ तक अपनी पैठ बनाने की ओर बढ़ रही है । और आपके नेता लगातार एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं? क्यों इतनी देरी की जा रही है ? किस सोच में डूबी है हाईकमान ? यह मोह मोह के धागे तोड़ने से ही हरियाणा में फिर से पैठ बना सकते हो । इस तरह की अस्थायी व्यवस्था से कुछ नहीं होने वाला ।

कांग्रेस हाईकमान के हाथ से किसी दिन तीरकमान ही छूट न जाये और देरी से कहीं कोई नेता अपना फैसला ले ले , फिर पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत ,,,,आखिर अध्यक्ष पद को फुटबाल मैच क्यों बना रखा है ?
पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

error: Content is protected !!