–प्रियंका ‘सौरभ’………… रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, फेक न्यूज ऐसी खबरें, कहानियां या झांसे हैं जो जानबूझकर गलत सूचना देने या पाठकों को धोखा देने के लिए बनाई जाती हैं। आमतौर पर, इन कहानियों को या तो लोगों के विचारों को प्रभावित करने, राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने या भ्रम पैदा करने के लिए बनाया जाता है और अक्सर ऑनलाइन प्रकाशकों के फायदे के लिए होती है। 2013 का मुजफ्फरनगर दंगे के नकली वीडियो ने सांप्रदायिक भावनाओं को हवा दी। सोशल मीडिया ने राजनीति को अस्त-व्यस्त कर दिया है और लोगों को अपने आसपास के परिवेश से अलग होने पर मजबूर किया है। सोशल मीडिया के कारण हमारे राजनीतिक विमर्श में गिरावट आई है, जहां “हॉट टेक” और मीम्स ने गंभीर जुड़ाव की जगह ले ली गई है। मीडिया में फैली गलत सूचना और दुष्प्रचार एक गंभीर सामाजिक चुनौती बनता जा रहा है। यह वेब पोर्टल्स पर जहरीला माहौल पैदा कर रहा है और सड़क पर दंगों और लिंचिंग का कारण बन रहा है। इंटरनेट के युग में (व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर) यह एक गंभीर समस्या है क्योंकि भारत में 35 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के बीच आसानी से अफवाहें, मॉर्फ्ड इमेज, क्लिक-बैट्स, प्रेरित कहानियां, असत्यापित जानकारी, विभिन्न हितों के लिए रोपित कहानियां फैलती जा रही है। ऑनलाइन अफवाहों के कई उदाहरण हैं जिनमें निर्दोष लोगों की हत्याएं हुई हैं। कुछ मामलों में, मंत्रियों ने पहले साझा की गई फर्जी खबरों को महसूस करने के बाद ट्वीट्स को हटा दिया है। अनपढ़ लोगों को आर्थिक रूप से धोखा देने के लिए फेक न्यूज का भी इस्तेमाल किया गया है। उदाहरण- चिटफंड योजनाओं ने स्पैम ईमेल के माध्यम से ऑनलाइन धोखाधड़ी के जाल बुने हैं। फेक न्यूज ने सोशल, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में लोगों का विश्वास कम किया है और मीडिया के लाभों को प्रभावित किया है। नकली समाचारों की वर्तमान प्रतिक्रिया मुख्य रूप से तीन पहलुओं के इर्द-गिर्द घूमती है – खंडन, नकली समाचारों को हटाना और जनता को शिक्षित करना। ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि दुर्भावनापूर्ण संपादन और गलत आरोपण जैसी त्रुटियों को इंगित करके नकली समाचारों को खारिज कर दिया जाता है। मगर अब फेसबुक और यूट्यूब जैसी तकनीकी कंपनियां अपने प्लेटफॉर्म से लगातार फर्जी खबरों को हटाने के लिए एल्गोरिदम का इस्तेमाल करती हैं। साथ ही, व्हाट्सएप ने संदेशों को अग्रेषित करने की एक सीमा निर्धारित की है, ताकि फेक न्यूज के प्रसार को सीमित किया जा सके। ऐसे माहौल में सरकार को इस सूचना युद्ध की वास्तविकताओं से जनता के सभी वर्गों को अवगत कराने की पहल करनी चाहिए और इस अघोषित युद्ध से लड़ने के लिए आम सहमति विकसित करनी चाहिए। साथ ही फेक न्यूज देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। उदाहरण के लिए इटली ने प्रयोगात्मक रूप से स्कूली पाठ्यक्रम में ‘फर्जी समाचारों की पहचान’ को जोड़ा है। भारत को सभी स्तरों पर शैक्षणिक पाठ्यक्रम में साइबर सुरक्षा, इंटरनेट शिक्षा, फर्जी समाचार शिक्षा पर भी गंभीरता से जोर देना चाहिए। चैटबॉट और अन्य सॉफ्टवेयर का उपयोग करके फैलाए जा रहे समाचारों को स्वचालित रूप से विशेष स्क्रीनिंग के लिए चुना जाना चाहिए। सरकार को फर्जी खबरों को नियंत्रित करने के मुद्दों के संबंध में हि एक मसौदा तैयार करना चाहिए। सोशल और अन्य मीडिया में प्रसारित किए जा रहे डेटा को सत्यापित करने के लिए सरकार के पास स्वतंत्र एजेंसी होनी चाहिए। एजेंसी को वास्तविक तथ्य और आंकड़े पेश करने का काम सौंपा जाना चाहिए। एक लोकपाल संस्थान के द्वारा फर्जी खबरों की शिकायत प्राप्त करना और तत्काल कार्रवाई शुरू करना चाहिए। सोशल मीडिया वेबसाइटों को ऐसी गतिविधियों के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए ताकि फर्जी खबरों के प्रसार पर बेहतर नियंत्रण रखना उनकी जिम्मेदारी बन जाए। नकली समाचार की समस्या से निपटने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीकों, विशेष रूप से मशीन लर्निंग और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण का लाभ उठाया जा सकता है। फेक न्यूज देश के नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचित विकल्पों को प्रभावित करती है, जिससे लोकतंत्र का अपहरण होता है। इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि इस खतरे से व्यापक रूप से निपटने के लिए इसमें शामिल सभी हितधारकों का सामूहिक प्रयास हो। भारत में फेक न्यूज पर अंकुश लगाने के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक नियामक निकाय है जो समाचार पत्र, समाचार एजेंसी, संपादक या पत्रकार को चेतावनी दे सकता है, निंदा कर सकता है या निंदा कर सकता है या संपादक या पत्रकार के आचरण को अस्वीकार कर सकता है यदि यह पाता है कि समाचार पत्र या समाचार एजेंसी ने पत्रकारिता की नैतिकता का उल्लंघन किया। न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन निजी टेलीविजन समाचार और करंट अफेयर्स ब्रॉडकास्टर्स का प्रतिनिधित्व करता है। ये निकाय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के खिलाफ शिकायतों की जांच करता है।इंडियन ब्रॉडकास्ट फाउंडेशन चैनलों द्वारा प्रसारित सामग्री के खिलाफ शिकायतों को देखता है। प्रसारण सामग्री शिकायत परिषद टीवी प्रसारकों के खिलाफ आपत्तिजनक टीवी सामग्री और फर्जी खबरों की शिकायतों को स्वीकार करती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (दंगा भड़काने के इरादे से उकसाना) और धारा 295 (किसी भी वर्ग के धर्म का अपमान करने के इरादे से पूजा स्थल को चोट पहुँचाना या अपवित्र करना) को नकली समाचारों से बचाने के लिए लगाया जा सकता है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम २००० की धारा 66 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति, बेईमानी से या कपटपूर्वक, धारा 43 (कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम को नुकसान) में निर्दिष्ट कोई कार्य करता है, तो उसे एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जा सकता है, जिसे बढ़ाया भी जा सकता है। ये तीन साल तक हो सकती है या पांच लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है। आईपीसी की धारा 499 (मानहानि) और धारा 500 (जो कोई भी दूसरे को बदनाम करेगा, उसे साधारण कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना, या दोनों के साथ) मानहानि के मुकदमे का प्रावधान है। प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत से ही फेक न्यूज का अस्तित्व रहा है, लेकिन इंटरनेट और सोशल मीडिया के युग में, इसने एक जबरदस्त मंच पाया है। सोशल मीडिया और सर्च इंजन के एल्गोरिदम का हेरफेर अब एक वैश्विक प्रवृत्ति है। मीडिया में फैली गलत सूचना और दुष्प्रचार सोशल मीडिया पर फेक न्यूज और गलत सूचना समाज में जहर बाँट रही है,एक गंभीर सामाजिक चुनौती बनती जा रही है। Post navigation कहानी सीसीटीवी की तरह समाज पर नजर रखती है: कमलेश भारतीय स्वर्ण पदक विजेता सिकन्दर का गांव बापोड़ा में किया स्वागत