डॉ कमल गुप्ता, शहरी स्थानीय निकाय मंत्री भारतीय संविधान के महान शिल्पकार समाज के दलित शोषित वर्ग के मसीहा, महान लेखक, ओजस्वी वक्ता, दार्शनिक डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महाराष्ट्र में हुआ। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल मेजर सूबेदार के पद पर एक सैनिक अधिकारी थे। उनकी माता भीमाबाई एक बहुत ही धर्मपरायण महिला थी। डॉ भीमराव की प्रारंभिक शिक्षा दापोली और सातारा में हुई। पूरे क्षेत्र में मेधावी छात्र के रूप में उन्होंने विशेष प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी, इसी बात से प्रभावित होकर बड़ोदा नरेश सयाजीराव गायकवाड उनसे बहुत खुश थे। यही कारण रहा कि उन्हें फेलोशिप प्रदान कर उन्हें उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित किया। उन्होंने 1912 में मुम्बई विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा पास की। वे संस्कृत पढ़ना चाहते थे, परंतु संस्कृत पढ़ने से मनाही होने पर उन्होंने फारसी लेकर अच्छे नंबरों से पास हुए। बड़ोदा नरेश डॉ आंबेडकर से इस हद तक प्रभावित थे कि उन्हें दोबारा फेलोशिप देकर अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में भेजा गया। 1915 में उन्होंने स्नातकोत्तर की परीक्षा पास की। उन्होंने अमेरिका से ही पीएचडी की। शोध का विषय था ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्तीय का विकेन्द्रीयकरण। उन्होंने अपना शोध प्राचीन भारत वाणिज्य भी लिखा। अमेरिका से वापिस आकर वे बड़ोदा नरेश के दरबार में सैनिक अधिकारी व वित्तीय सलाहकार के रूप में नियुक्त किए गए। बाबा साहब को कोलंबिया विश्वविद्यालय से डी लिट की मानक उपाधि से भी सम्मानित किया गया था। उनके नाम के साथ 26 उपाधियां जुड़ चुकी थी, जिनमें बीए, एमए, एमएससी, पीएचडी, बैरिस्टर, डीएससी व डी लिट् आदि शामिल हैं। समाज सुधार की दिशा में बाबा साहब की अग्रणी भूमिका रही है, उन्होंने इस दिशा में ऐसे अनेको कार्य व आंदोलन किए जो पूरे भारतीय समाज मे प्रमुखता से गिने जाते हैं। उनकी सोच थी कि जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का एक कारण बनती रही है। उन्होंने जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए भारतीय समाज मे जागृति उत्पन्न की। शिक्षा के प्रति विशेष कर महिला शिक्षा के प्रति उनका खास जोर रहा। वे जहां भी जाते अक्षर ज्ञान व साक्षरता का महत्व बताए बिना नही चूकते थे। उनका कहना था कि शिक्षा व ज्ञान के द्वारा ही हम अपने जीवन स्तर को ऊपर उठा सकते हैं । उनका चितन था कि रूढि़वादिता समाज के विकास में बहुत बड़ी बाधा है । हमें उन रूढिय़ों को तोडऩा ही पड़ेगा। अंधविश्वास के वे घोर विरोधी रहे, उनका कथन था एक जागरूक समाज की नींव रूढ़िवादी सोच व अंधविश्वास को समाप्त कर ही प्राप्त की जा सकती है। डॉ भीम राव अम्बेडकर ने समाज मे नई क्रांति का अलख जगाते हुए राष्ट्रीय हितों से कभी समझौता नहीं किया। राष्ट्र के हित पहले इसी मूल मंत्र के साथ उन्होंने समाज की भलाई के लिए कार्य किए। भारतीय संस्कृति और मूल्यों के वे कट्टर समर्थक थे। उनका चिंतन था राष्ट्र केवल भौतिक इकाई नही है, राष्ट्र एक जीवित आत्मा है। वे राष्ट्र को एक संगठित सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में मानते थे। वे राष्ट्रवाद के कट्टर समर्थक थे। एक उदाहरण से यह बात अच्छी तरह समझी जा सकती है कि महान क्रांतिकारी वीर सावरकर ने जब रत्नगिरि में जाति उन्मूलन आंदोलन चलाया तो उस समय बाबा साहेब उस आंदोलन के मुरीद हुए, उन्होंने सावरकर को पत्र लिख कर कहा भी कि ऐसे आंदोलन तो पूरे देश मे चलाये जाने की आवश्यकता है। 1939 में नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग में वे बिना आमंत्रण के ही पहुंच गए थे। उस समय प्रथम सरसंघचालक हेडगेवार जीवित थे और वर्ग में उपस्थित थे। दोनों महापुरुषों ने एक साथ भोजन किया। बाबा साहेब शिक्षार्थियों से मिले। उन्होंने उनसे बातचीत की। उन्होंने बाद में हैरानी जताते हुए कहा कि मैंने कहीं पहली बार ऐसा देखा है कि कोई भी किसी की जाति नहीं जानता है। सभी एक साथ मिलकर खेलते और एक साथ भोजन करते हैं। इस बात का जिक्र उन्होंने कई बार अलग-अलग अवसरों पर किया। बाबा साहब डॉ अम्बेडकर को भारतीय संविधान का शिल्पकार अथवा वास्तुकार कहा जाता है। दुनिया में भारत का संविधान सर्वश्रेष्ठ संविधान माना जाता है। इसका पूरा श्रेय बाबा साहब को ही दिया जाता है। वास्तव में वे भारत माता के सच्चे सपूत थे। Post navigation 13 अप्रैल 1919 को जलियावाला बाग में किया गया नरंसहार दुनिया के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है भारत छोड़ो आंदोलन, पूर्ण स्वतंत्रता के विरोधी, दबे-कुचले वर्गों के मसीहा अंबेडकर