आज श्याम खोसला की पुण्यतिथि पर विशेष — अशोक मलिक श्याम खोसला अमृतसर में 1931 में जन्मे और शिमला, चंडीगढ़, रोहतक तथा दिल्ली में रहते हुए लंबे समय तक पत्रकारिता और सामाजिक सरोकारों से गहराई से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार श्याम खोसला सही अर्थों में एक संवेदनशील पत्रकार और साहसी बौद्धिक योद्धा थे। सेना इंजीनियरिंग सेवा में कार्यरत पिताजी के आरंभिक विरोध के बाद उन्होंने डाक विभाग की नौकरी छोड़ कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में चंडीगढ़ में सामाजिक जीवन शुरू किया और सामाजिक राष्ट्रीय सरोकारों से जुड़े। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उनका संबंध जीवन भर रहा और संघ तथा संघ के अनुषांगिक संगठनों के सभी वरिष्ठ कार्यकर्ताओं — संघ के दूसरे सरसंघचालक श्री गोलवलकर और उनके बाद के सभी सरसंघचालकों, पूर्व-प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व-उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी आदि सहित — उनके आत्मीय तथा अंतरंग संबंध रहे। यह उनकी व्यावसायिक ईमानदारी और बौद्धिक सत्यनिष्ठा का सबूत है कि व्यक्तिगत वैचारिक निकटता के बावजूद उनकी पत्रकारिता हमेशा लगभग पूर्णतः निष्पक्ष रही। रोहतक में ट्रिब्यून (चंडीगढ़) के स्टाफ रिपोर्टर के रूप में नियुक्ति से पहले पटना और फिर काठमांडू में हिन्दुस्थान समाचार संवाद एजेंसी के रिपोर्टर के रूप में उन्होंने संवाद एजेंसी की अंग्रेजी सेवा की शुरुआत का महत्वपूर्ण काम किया। रोहतक मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा छात्रों के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा की स्थापना और संघ के मोबाइल ओटीसी (प्रशिक्षण) शिविर उस दौर में उनकी स्मरणीय गतिविधियां रही। लगभग दो दशक लंबे इस दौर में उन्होंने रोहतक की हरियाणा की राजनीतिक राजधानी के रूप में पहचान को मजबूत बनाने का महत्वपूर्ण काम भी किया। रोहतक के इस कालखंड में आपातकाल के दौरान पूरे 19 महीने तक सरकार ने उन्हें जेल में रखा, इस अवधि का सदुपयोग करते हुए उन्होंने जेल में भरपूर स्वाध्याय किया, वहां नियमित शाखा लगाई, चौधरी देवीलाल जैसे राजनेताओं के साथ रहते हुए राज्य और देश की राजनीति का नजदीक से अध्ययन किया। इसी कालखंड में उन्होंने हरियाणा में पत्रकारों को संगठित करके हरियाणा यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स की स्थापना और उसके नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) से जोड़ने की प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाई। ट्रिब्यून समाचार पत्र ने 1980 के बाद उन्हें रोहतक से चंडीगढ़ बुलाकर हरियाणा सरकार के मुख्यालय की रिपोर्टिंग का महत्वपूर्ण काम सोंपा। अखबार में जिम्मेदारियां बढ़ने के साथ साथ उन्होंने पंजाब और हिमाचल में नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स इंडिया की इकाइयों के गठन में बड़ी भूमिका निभाई। हरियाणा और पंजाब में यूनियन के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने यूनियन को सक्रिय और मजबूत बनाया। चडीगढ़ में अपने निवास के दौर में उन्होंने पंजाब के बिगड़ते हालात के दौर में सामाजिक समरसता की जरूरत को समझते हुए सामाजिक संवाद तथा वैचारिक मजबूती के मंच के रूप में पंचनद शोध संस्थान की स्थापना की। आज पंचनद शोध संस्थान पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, दिल्ली तथा जम्मू कश्मीर में बुद्धिधर्मी वर्गों में विमर्श का सक्रिय मंच है। पंजाब में संकट के दौर में समाज के सभी पक्षकारों को बंद कमरे में एक साथ लाकर दो दिन तक समस्या को समझने और सुलझाने के लिए लगातार चले खुले बेबाक संवाद का पंचनद शोध संस्थान का सफल प्रयास खोसला जी की सोच और क्षमता का मुँहबोलता सबूत बन गया। पंचनद शोध संस्थान के एक उपक्रम के रूप में शुरू हुआ सेंटर फॉर पॉलिसी इनीशिएटिव देश की विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए नीति निर्माण के लिए विमर्श के बौद्धिक सहयोग का एक विशिष्ट प्रयास रहा। श्याम जी विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित अनेक संस्थाओं की स्थापना के प्रेरणा स्रोत रहे उन्होंने अनेक लोगों को राष्ट्र के प्रति अपने व्यवसाय के प्रति समाज के प्रति समर्पित होने का दिशाबोध कराने के सफल प्रयास किए। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब शीर्ष राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा विद्वानों ने उनसे परामर्श और मार्गदर्शन प्राप्त किया। नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) के माध्यम से जर्नलिस्ट्स वेलफेयर फाउंडेशन की स्थापना और यूरोपीय संघ के भारतीय समाज से सीधे जुड़ाव की दिशा में काम के लिए इंडिया न्यूज़ इन यूरोप परियोजना उनके विशिष्ट योगदान के रूप में याद किए जाएंगे। पत्रकारिता के क्षेत्र में परिवर्तन के साथ-साथ उनकी पीड़ा पत्रकारिता में होने वाली विकृतियों से बढ़ती गई और उन्होंने मीडिया जगत में मूल्य बोध और सामाजिक दायित्व को स्थापित करने के लिए इंडियन मीडिया सेंटर की स्थापना की जिसमें पत्रकारिता जगत के सभी पक्षकार और विचारशील समाज के प्रतिनिधि एक मंच पर इकट्ठे हुए। पत्रकार के रूप में और व्यक्तिगत स्तर पर श्याम जी ने हमेशा अच्छे कार्यों के लिए प्रशंसा की, प्रोत्साहन और प्रेरणा दी तो अनुचित कार्य या निष्क्रियता की स्थिति में प्रताड़ना से भी संकोच नहीं किया। पत्रकारिता और समाज जीवन में उन्हें अपने गुरु और शिक्षक के रूप में देखने वालों की संख्या बहुत बड़ी है। एक स्पष्ट चिंतक और लेखक के रूप में उनका योगदान उनके लेखन के साथ-साथ के द्वारा उनके द्वारा संकलित और संपादित अनेक पुस्तकों तथा पंचनद शोध पत्रिका के वार्षिक अंको में आज भी उपलब्ध है। 1991 में ट्रिब्यून से सेवानिवृत्ति के बाद कुछ वर्ष तक उन्होंने दिल्ली में इंडियन एक्सप्रेस के राजनीतिक संवाददाता के रूप में पत्रकारिता की और उसके बाद अपना स्वास्थ्य बिगड़ने से पहले तक लगातार “ऑर्गेनाइजर” पत्रिका में नियमित कॉलम में विश्लेषण और खोजी पत्रकारिता का एक प्रतिमान स्थापित किया। पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने पहले गुरु और और चार दशक से अधिक समय तक जीवन के अनेक क्षेत्रों में अपने सहृदय मार्गदर्शक को नमन। Post navigation हरियाणा के गौरवमयी संस्कृति व ऐतिहासिक धरोहरों को दर्शाता है संग्रहालय: राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय शैलजा के इस्तीफे के बारे में मुझे कोई इल्म नहीं : हुड्डा