गुडग़ांव, 5 अप्रैल (अशोक): बिजली चोरी के मामले की सुनवाई करते हुए सिविल जज विक्रांत की अदालत ने बिजली निगम के अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों के आधार पर बिजली चोरी का मामला गलत पाया है। जिस पर अदालत ने बिजली निगम को आदेश दिए हैं कि उपभोक्ता द्वारा निगम में जमा कराई गई 2 लाख 11 हजार की राशि को 9 प्रतिशत ब्याज की दर से वापिस किया जाए।

उधर उपभोक्ता बिजली निगम पर बेवजह परेशान करने व मानहानि का दावा करने की तैयारी में भी जुट गया है। उपभोक्ता के अधिवक्ता क्षितिज मेहता से प्राप्त जानकारी के अनुसार सैक्टर 9 की कमलेश अरोड़ा का बिजली का मीटर बिजली निगम ने अपनी मर्जी से बदल दिया था। उपभोक्ता से भी कोई सहमति नहीं ली गई थी। 18 जुलाई 2015 को मीटर बदलकर बिजली निगम ने टेस्टिंग के लिए बिजली निगम की लैब भेज दिया था। टेस्टिंग में पाया गया कि मीटर टेंपर कर बिजली की चोरी की जा रही थी। अधिवक्ता का कहना है कि मीटर टेस्टिंग के समय भी लैब में उपभोक्ता को नहीं बुलाया गया। बिजली निगम ने उपभोक्ता पर 2 लाख 11 हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया। बिजली का कनेक्शन न कट जाए इस भय से उपभोक्ता ने जुर्माना की राशि निगम में जमा करा दी थी।

अधिवक्ता का कहना है कि उपभोक्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत में सुनवाई हुई। बिजली निगम के अधिकारियों द्वारा अदालत में जो सबूत व दस्तावेज पेश किए गए, उनसे साबित नहीं हो सका कि उपभोक्ता ने बिजली चोरी की है। जिस पर अदालत ने बिजली चोरी का मामला झूठा करार दिया और बिजली निगम को आदेश दिए कि उपभोक्ता को जमा कराई गई 2 साल 11 हजार रुपए की धनराशि 9 प्रतिशत ब्याज दर से वापिस की जाए। अधिवक्ता का कहना है कि उपभोक्ताओं को परेशान करने के लिए बिजली निगम इस प्रकार के बिजली चोरी के मामले बनाती रही है।

जबकि अधिकांश मामले अदालत में खारिज भी होते रहे हैं। इस प्रकार के मामलों से उपभोक्ता बड़े परेशान हैं।

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