संतो की रजा में गुजर-बसर करने वाले रहते हैं सुखी : हुजूर कँवर साहेब जी महाराज 

चरखी दादरी/अंबाला बलाना जयवीर फोगाट

13 मार्च,माता पिता से बढ़ कर कोई दर्जा नहीं है। अगर किसी को जिंदा भगवान देखना है तो कहीं और भटकने की आवश्यकता नहीं है। जिंदा भगवान अगर कहीं हैं तो आपके घर में बैठे आपके मां बाप हैं। उनकी सेवा कर लो उनको खुश रखो परमात्मा स्वत खुश हो जाएगा। सत्संग भी तभी सार्थक है जब आप सत्संग स्वयं से करना सीख लोगे। यह वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने अंबाला के हिसार रोड पर बलाना गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में साध संगत को फरमाए। 

हुजूर कंवर साहेब जी ने फरमाया कि हम सुखों के लिए छटपटाते हैं क्योंकि रूह जिस देश से आई थी वहां सुख ही सुख और खुशी ही खुशी थी। इस माया देश में आकर रुह गाफिल हो जाती है और इन्हीं क्षणभंगुर वस्तुओ में सुख ढूंढती है लेकिन जल्दी ही इन सुखों में ही उसे दुख आने लगता है तब ये रुह फिर सुख पाने के लिए लालायित हो उठती है। असल सुख उसे तभी मिलता है जब ये रुह संतो की शरण में चली जाती है। उन्होंने कहा कि इंसान सांसारिक सुखों में इतना उलझ जाता है कि एक दिन जब उसे हकीकत का पता चलता है कि जिनको वह सुख समझे बैठा था वो तो एक सपने की भांति ही था। ये सुख आपकी मृगतृष्णाए हैं। उन्होंने कहा कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार रूपी राक्षस इंसान को काट खाने को तैयार बैठे है और इनमे सबसे शक्तिशाली राक्षस है अहंकार।

कामी क्रोधी भी कभी ना कभी तिर जाएगा लेकिन अहंकारी इंसान का कभी भला नहीं हो सकता। अहंकार केवल संतो की ओट आने से ही खत्म हो सकता है। किसी को रूप का अहंकार है तो किसी को बल का, किसी को दौलत का तो किसी को बेटे पौतो का। अहंकार से कोई नहीं जीत पाया। अहंकार ने रावण और दुर्योधन जैसे राजा महाराजाओं को भी नही बक्शा। अहंकार तो केवल संतो की शरनाई और सेवा से ही खत्म हो सकता है। गुरु महाराज जी ने फरमाया कि संतो के आगे कौन चीज बादशाही। संतो के सामने जो दीन, अधीन, हीन, गरीब बन कर जाता है उसे वो बादशाह बना देते हैं। इस मानगनहारे जगत में सब कुछ ना कुछ मांगते ही है अगर कोई देने वाला है तो केवल सतगुरु है। सतगुरु नाम का देवनहारा है और जिसने सतगुरु से नाम ले लिया उसे सब कुछ मिल गया समझो।

अहंकार का करे त्याग

गुरु महाराज जी ने महाभारत काल का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि युद्ध के पश्चात जब पांडव यज्ञ के दौरान सब संत महात्माओं को दान देने के पश्चात जब आहुति डालने लगे तो अग्नि ने आहुति स्वीकार नहीं की। यज्ञ के घंटे नहीं बजे। श्रीकृष्ण ने कहा कि एक सुषुप्त नाम का महात्मा है जिसको दान नही दिया गया। भीम ने कहा कि मैं उस महात्मा को लेकर आता हूं। भीम अपने बल के अहंकार वश होकर महात्मा को लेने चला गया। महात्मा ने कहा कि आप मेरी माला उठा कर दे दो मैं चल पडूंगा। जिस भीम में दस हजार हाथियों का बल था उससे महात्मा की माला नहीं उठी। अहंकार टूटा और शर्मिंदा होकर वापस आ गया। द्रौपदी ने पूछा कि भीम आप अहंकार को त्याग कर नहीं गए। द्रौपदी स्वयं नंगे पैर जाकर दंडवत हुई और आग्रह किया कि आप यज्ञ की शोभा बढ़ाइए। महात्मा ने कहा कि चल पडूंगा लेकिन मुझे स्वयं भोजन बना कर खिलाना पड़ेगा। द्रौपदी ने हामी भरी। वहां जाकर महात्मा ने सारे पकवानों को आपस में मिला दिया और खाने लगा। द्रौपदी को गुस्सा आया कि मैने इतने स्वादिष्ट व्यंजन बनाए थे लेकिन इसको खाना भी नही आता। यानी अहंकार आ गया। घंटे बजने फिर बंद हो गए। गुरु महाराज जी ने कहा कि प्रसंग शिक्षा देता हैं कि अहंकार किसी का ना तो हित करता है और ना ही किसी को हित करवाने देता है।

संतो की शरण में कटते हैं सभी पाप

गुरु महाराज जी ने कहा कि अजामिल राज घराने के पंडित का बेटा था जो खुद भी राज पुरोहित बन गया था लेकिन कर्म अच्छे नहीं थे। काम, क्रोध, मद, लोभ के सब विकार थे लेकिन जब वो भी संतो की शरण में आया तो उसके भी सारे पाप कट गए। संतो की शरण में तो कितने ही कष्ट क्यों ना आए फिर भी आपके हितकारी हैं। उन्होंने फरमाया कि इंसान के पास सब कुछ है वो सब प्रकार से संपन्न है लेकिन उसकी तृष्णा फिर भी नहीं रुकती। जिसने तृष्णा को मार लिया, चाह चिंता को मिटा दिया वो शाह का शाह है क्योंकि उनकी हर इच्छा परमात्मा की मौज में निहित है। उन्होंने कहा कि कर्मो की आजादी हर जीव को है किसी को कोई मनाही नहीं है ऐसे में जो संतो की रजा में रह कर गुजर बसर करते हैं वो ही सुखी हैं। उन्होंने कहा कि पांच रस इंसान को लगे हैं जो उसे बंधनों में जकड़े रहते हैं। गुरु महाराज जी ने फरमाया कि जैसे लकड़ी में आग दिखाई नही देती, दूध में मक्खन दिखाई नही देता वैसे ही कण कण में समाया परमात्मा भी दिखाई नही पड़ता। संतो के सामने झुकना सीखो क्योंकि संतो के सामने कोड़ा होने से कोढ़ चला जाता है, मोधा होने से विकार चले जाते हैं और जो उन्हे दंडवत करते हैं उसके तो वारे न्यारे हो जाते हैं।

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