-कमलेश भारतीय

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम कल आयेंगे लेकिन प्रमुख दलों ने अपने प्रत्याशियों की पहले से बाड़ेबंदी शुरू कर दी है । सन् 2017 तक यह खेल अकेली भाजपा चुपके से खेलती थी और विरोधी दल देखते रह जाते थे । देखते देखते गोवा व मणिपुर में सरकार बनाने का कांग्रेस का सपना धरा का धरा रह गया था । जैसे अंगूर खट्टे हो गये थे लोमड़ी के । गोवा में तो और भी हद हुई बाद में सत्रह में से पंद्रह विधायक भाजपा में ही शामिल हो गये और दलबदल में देश भर में बीते पांच सालों में गोवा के विधायकों ने तो कीर्तिमान ही बना दिया । मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद भाजपा ने उनके बेटे को ही टिकट नहीं दिया । यह भी अपने आप में एक कमाल की बात हुई ।

अब पंजाब और उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस की कड़ी टक्कर बताई जा रही है और विधायकों की खरीद फरोख्त के डर से पहले से ही कांग्रेस भी सावधान हो गयी है । गोवा में कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों को रिसोर्ट में भेज दिया है एहतियात बरतते हुए । उत्तराखंड में नियंत्रण के छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेंद्र बघेल को भेजा गया है तो कर्नाटक के डीके शिव कुमार भी सक्रिय हो चुके हैं । गोवा में कांग्रेस आप और तृणमूल कांग्रेस के लगातार सम्पर्क में है । पंजाब में कैप्टन को भाजपा स्पोर्ट कर रही है , गठबंधन भी है और जोड़ तोड़ का सहारा भी है । क्या होगा ? आप का पलड़ा भारी बताया जा रहा है पंजाब में और कांग्रेस दूसरे नम्बर पर मानी जा रही है । कहीं ऐसा न हो कि भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए पंजाब में आप और कांग्रेस मिल कर सरकार न बना लें । कुछ भी हो सकता है राजनीति में । सारी संभावनाएं खुली हैं ।

पर यह रिसोर्ट कल्चर की संस्कृति राजनीति को कहां ले जा रही है ? यह प्रत्याशियों की बाड़ेबंदी कहां ले जायेगी विधायकों के सम्मान को ? कितनी गिरावट आ गयी राजनीति में कि रिसोर्ट में छिपा कर रखने पड़ रहे हैं विधायक या प्रत्याशी ,,,,
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।