एक प्लाट, अलग-अलग दो दो रजिस्ट्रीया बन गई मिस्ट्री.
यह मामला पटोदी तहसील का जो बन गया अब सुर्खियां.
तहसीलदार, गिरदावर सहित 13 लोगों पर एफ आई आर.
आरोप जमीन की खरीद-फरोख्त में सगे बेटे को बनाया गवाह.
पीड़ित के द्वारा कराया गया पाटोदी थाना में मुकदमा दर्ज

फतह सिंह उजाला

पटौदी । हरियाणा में बीजेपी और जेजेपी गठबंधन सरकार जीरो टोलरेंस के मुद्दे को लेकर भ्रष्टाचार मुक्त शासन प्रशासन सहित पारदर्शिता से कार्यों में प्राथमिकता लाने के लिए प्रतिबद्ध है । लेकिन फिर भी ऐसे- ऐसे मामले सामने आ ही जाते हैं, जिन्हें देखकर समझना अपने आप में चुनौती सहित अबूझ पहेली बन जाता है । ऐसा अक्सर जमीनों से संबंधित खरीद-फरोख्त के मामलों में ही होता है।

ऐसा ही एक मामला पटौदी तहसील से संबंधित सामने आकर एकाएक सुर्खियां बनता जा रहा है। सीधे और सरल शब्दों में- फर्जी, फर्जी और फर्जी खेल करने वाले ने भी हद कर दी । लेकिन जो भी तहसील में कार्य हुआ , कथित रूप से वह फर्जी और नकली दस्तावेजों लेन देन खरीद-फरोख्त और गवाहों के दम पर अंजाम दिया और दिलवाया गया । अब इस मामले में पीड़ित पक्ष के द्वारा तमाम सबूतों और साक्ष्यों को आधार बनाकर पुलिस में शिकायत दी गई । दी गई शिकायत और साक्ष्यों के दृष्टिगत पटौदी थाना पुलिस में पटौदी के तहसीलदार, गिरदावर, पटवारी, राजस्व विभाग के कर्मचारियों सहित कुल 13 लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। यह मामला सामने आने और मुकदमा दर्ज होने के साथ ही इस प्रकरण में आरोपित बनाए गए लोगों के बीच में कहीं ना कहीं बेचौनी का आलम बना हुआ है ।

इस मामले में शिकायतकर्ता रोशन लाल के आरोप अनुसार पुलिस में दी गई शिकायत में कहा गया है कि उसने 11 कनाल 16 मरला का 2 बटा 3 भाग सविता पत्नी बहादुर सिंह से 1975 में खरीद किया था। इस जमीन को खरीदने के बाद से वह यहीं पर कब्जेदार भी है । इसी जमीन में ही सविता की दो पुत्रियों का भी हिस्सा था, हिस्सेदार इन दोनों पुत्रियों का निधन हो चुका है तथा कोई वारिसान नहीं होने के कारण यह जमीन फिर से वापिस सविता के नाम हो गई । इसके बाद में वर्ष 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगों की वजह से सविता जोकि सिख समुदाय से संबंध रखती थी, वह यहां से चली गई । इसके बाद से सविता का कोई भी अता पता नहीं लग पाया है वह कहां है किस हालात में है जीवित है अथवा उसकी मृत्यु हो चुकी है ? कथित रूप से इन सब बात और तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कुछ लोगों की नजरें जमीन पर टिकी हुई थी और मौका मिलते ही साठगांठ करके जमीन की खरीद-फरोख्त का खेल भी खेल दिया गया ।

पुलिस में दी गई शिकायत के अनुसार पटौदी के वार्ड नंबर 2 की रहने वाली महिला के आधार कार्ड उसकी फैमिली आईडी को प्रस्तुत कर फर्जी रजिस्ट्री सविता के तौर पर कराई। सवाल उठाया गया है कि जब आधार कार्ड में नाम अलग ही सामने आ रहा है तो खरीददार 1984 से लापता सविता कैसे बन गई? शिकायतकर्ता के मुताबिक सविता अपने पति की मौत के उपरांत विधवा हो चुकी थी , सवाल यह है कि रजिस्ट्री के समय जो फैमिली आईडी प्रस्तुत की गई , वह अन्य महिला के नाम और उसका पति भी जीवित है । आरोप लगाया गया है कि एक प्लाट की अलग-अलग रजिस्टर करवाई गई । फर्जीवाड़े को छिपाने के लिए या फिर राजस्व अधिकारियों को धोखे में रखने के लिए आरोप अनुसार दोनों केस में ही सगे बेटे को ही खरीद-फरोख्त का गवाह बनाया गया है । जमीन की खरीद-फरोख्त में फर्जीवाड़ा नहीं किया जाता तो सगे बेटे के स्थान पर किसी अन्य को भी गवाह बनाया जा सकता था। लेकिन इस पूरे खेल को खेलने के लिए ही सगे बेटे को गवाह बनाया गया ।

दूसरी ओर इसके साथ ही जो पैसे के भुगतान चेक के माध्यम से किए गए, उसको लेकर भी सवाल उठाए गए । एक रजिस्ट्री में 17 और 18 लाख रुपए अलग-अलग तिथि को भुगतान बताया गया है और दूसरी रजिस्ट्री में 18 लाख और 12 लाख रुपए का भुगतान अलग-अलग तिथि में बताया गया है । इस भुगतान के लिए जो चेक दिए गए उनका क्रम संख्या एक ही बताया गया है । ऐसे में सवाल उठाया गया है कि जब खरीदार अलग-अलग, रजिस्टरी अलग-अलग हुई तो फिर एक ही क्रम संख्या के चेक के द्वारा किस प्रकार से भुगतान संभव है । जमीन के खरीदारों के आवास तथा परिजन भी अलग-अलग है । पूरे मामले में पीड़ित के द्वारा दी गई शिकायत और साक्ष्यों के आधार पर पटौदी थाना में पटौदी के तहसीलदार, हल्का गिरदावर, बैंक शाखा प्रबंधक, टोकन इंचार्ज वह अन्य कुल 13 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 419, 420, 465, 467, 468, 471, और 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज कर पुलिस के द्वारा अपनी जांच पड़ताल आरंभ कर दी गई है।

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