-कमलेश भारतीय

राजनीतिक दल अब प्रचार थमने वाले दिन रोड शो जरूर करते हैं । हालांकि इस रोड शो की शुरूआत एक प्रकार से कांग्रेस हाईकमान सोनिया गांधी ने की थी । उनकी हिंदी बहुत अच्छी नहीं थी और उन्हे ज्यादा भाषण न देना पड़े इसे देखते हुए यह नया तरीका आजमाया गया और जनता सन् 90 के बाद राजनीति में उतरीं सोनिया गांधी को देखने उमड़ रही थी । मज़ेदार बात कि तब भाजपा की सुषमा स्वराज ने चुटकी ली कि सोनिया गांधी कांग्रेस को सड़क पर ले आएंगीं लेकिन इन्हीं रोड शो के चमत्कार से कांग्रेस सत्ता में लौट आई और उसके बार हर राजनीतिक दल ने रोड शो पर विश्वास कर लिया । रोड शो ने कांग्रेस में जान डाल दी थी ।

अब रोड शोज के चलते जनता बेहाल हो जाती है । हर शहर में सड़कों पर जाम लगना आम बात है जिसमें से निकल कर जाना बहुत मुश्किल काम हो जाता है । सबसे बड़ी मुसीबत झेलनी पड़ती है रोगियों को जिनकी एंबुलेंस को रास्ता मिलना कठिन हो जाता है । सबसे मुश्किल होता है कर्मचारियों को जिन्हें अपने ऑफिसिज में जाना पहाड़ पर चढ़ने जैसा काम हो जाता है । रोड शो हर राजनीतिक दल के शक्ति प्रदर्शन बन गये हैं । पश्चिमी बंगाल में अमित शाह का रोड प्रदर्शन में काफी विरोध का सामना करना पड़ा था । जहां तक कि दिल्ली पहुंच कर कहा कि वे अपनी जान बचा कर आए हैं । ऐसे रोड शो किस काम के ? किसलिए ? पंजाब में शुरू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रोड शो तो नहीं करना था फिरोजपुर में लेकिन हुसैनीवाला जाना था और सुरक्षा को खतरा भांप कर सारा दोष चन्नी पर डाल कर उन्होंने भी एयरपोर्ट पर ऑफिसर्स से कहा कि अपने मुख्यमंत्री चन्नी को धन्यवाद दे देना कि मैं सुरक्षित बच कर आ गया । इस बयान की सब तरफ आलोचना हुई । यह भी कहा गया कि जब प्रधानमंत्री ही सुरक्षित नहीं तो बाकी देशवासियों क्या हाल होगा ?

अब कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी बाड्रा भी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में रोड शो करने के बाद खुद ही जाम में फंस गयीं और अध्यक्ष अजय लल्लू को मोटरसाइकिल पर बिठा कर एयरपोर्ट तक छोड़ने जाना पड़ा । ऐसी नौबत क्यों आई ? रोड शो से जो जाम लगता है , उसकी एक झलक प्रियंका को भी मिल गयी । सभी नेताओं को ऐसी झलक मिले तो शायद रोड शो पर पुनर्विचार हो । काश ! जनता की तकलीफ को ये नेता समझ पायें जो रोड शो के समय झेलनी पड़ती है ।
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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