सुरेश गोयल धूप वाला,
मीडिया प्रभारी , डॉ कमल गुप्ता, शहरी स्थानीय निकाय मंत्री ,

यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने पूरे विश्व को संकट में डाल दिया है । एटमी वार का खतरा बढ़ता जा रहा है। पूरी दुनिया गहरी चिंता और खोप में है।

यह बात सर्वविदित है कि दुनिया की महाशक्तियां केवल अपने अपने देशो का हित साधने में लगी है। दुनिया बेसक गर्त में चली जाए इस बात से उन्हें कोई सरोकार नही।

चीन हो या रूस या अमरिका या दुनिया का कोई अन्य देश अपनी विस्तारवादी नीति व विश्व सम्राट बनने की फिराक में कम शक्तिशाली या शून्य शक्ति शाली राष्ट्रों के लिए चुनोती बन कर खड़े हो गए हैं। बड़े देश अपने से छोटे पड़ोसी देशों को अपनी कालोनी सरीखा बना कर रखना चाहते हैं। औऱ दूसरे देशों के विरुद्ध जमीन का इस्तेमाल करते हैं।

आज पूरा विश्व संकट की स्थिति में खड़ा दिखाई दे रहा है। रूस बार बार अपनी एटमी ताकत को प्रदर्षित कर नाटो देशो को धमका रहा है।

एटमी खतरे के मद्देनजर नाटो के देश भी घबराये हुवे है, लगता है दिल से अब युद्ध को ओर आगे बढ़ाना भी नही चाहते, परंतु होनी तो बलवान है उसे तो केवल परमात्मा ही रोक सकते हैं।

युद्ध के कारणों पर यदि नजर डाले तो यह केवल रूस का अपने पड़ोसी देश के प्रति असिहष्णुता व विस्तारवादी सोच का ही परिणाम है।

यदि गौर करे तो रूस ही नही चीन व अमेरिका भी इसी नीति के परिचायक है। चीन की बात करे तो चीन अपनी साम्राज्यवादी व विस्तारवादी नीति के लिए पहचाना जाता है। अपने अडोस-पड़ोस के राष्ट्रों से उसका तनाव हमेशा बना रहता है।चीन की नीयत अपने पड़ोसी देशों के प्रति कभी सद्द्भावना की रही ही नही।

जल क्षेत्रो में भी वह अपना आधिपत्य स्थापित करने मे हमेशा लगा रहता है। चीन की अर्थव्यस्था में मजबूती के लिए दुनिया के अन्य देशों के साथ साथ भारत का भी बड़ा योगदान रहा है । परंतु अपने स्वार्थ व अति महत्वकांक्षा में इतना अंधा हो चुका है कि वह किसी भी स्तर पर जा सकता है। वह पूरी दुनिया का सम्राट बनने के लिए पूरी तरह व्याकुल ओर बेचैन है।

यूक्रेन संकट के बीच वह बार बार अपने पड़ोसी ताइवान को धमका रहा है। उसको अपने देश काअभिन्न हिस्सा बता कर कब्जा करने की फिराक में है।

1962 में भारत के एक बड़े हिस्से पर आज तक कब्जा किये बैठा है। चीन ने भारत के अक्साई चीन में लगभग 38000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर अपना अधिकार जमा लिया। वह भारत की सीमाओं पर अपनी गिद्ध दृष्टि बनाये रखने व छेड़-छाड़ करने से बाज नही आ रहा।

चीन हमारे पड़ोसी दुश्मन देश पाकिस्तान को सैन्य व आर्थिक सहायता देकर हमे कमजोर करने की फिराक में हमेशा रहता है। परंतु यह तो भारत का सौभाग्य है कि देश का नेतृत्व बहुत ही सुदृढ़ हाथो में है जो उनकी गिद्दढ़ धमकियों को मुंह तोड़ जवाब दे रहा है। चीन की दुश्नीति व विस्तारवादी दृष्टिकोण के कारण ताइवान के अतिरिक्त जापान, वियतनाम, इंडोनेशिया व दक्षिण कोरिया जैसे देश बुरी तरह त्रस्त है।

अमेरिका की बात की जाए तो वह भी अपने आपको दुनिया का थानेदार समझने में परहेज नही करता । छोटे छोटे देशो को धमकाना अपना कर्तव्य समझता रहा है। दुनिया ने कभी भी उसे जबान का धनी नही माना । कभी भी उसकी जबान फिसल जाए कोई भरोसा नही। वह अपनी बात पर कायम रहेगा कोई गारंटी नही । गंगा गए गंगा दास , जमुना गए जमुना दास बनते हमने उसे हमेशा देखा है। भारत जनसंख्या के लिहाज से बड़ा देश होने के कारण अमेरिका के लिए एक बड़ा बाजार है ।वह यह नही चाहता की कोई देश उससे आगे बढ़े , चीन को आगे बढ़ने से रोकने के लिए वह भारत से मित्रता की पींगे बढ़ाता रहता है। जो उसकी सोची समझी रणनीति का ही एक हिस्सा है। पिछले दिनों वह अफगानिस्तान को तालिबानियों के भरोसे अधर में छोड़ कर भाग खड़ा हुवा था। इसी बात से यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि यह किसी का भी सगा नही है।
किसी भी संकटकाल में अमेरिका हमारी कोई मदद करेगा बहुत बड़ी भूल होगी। हमे ऐसी कोई अपेक्षा भी नही रखनी चाहिए। भारत की बात की जाए तो हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व व जनता के मनोबल की बदौलत ही हम अपने आपको पूरी तरह सक्षम व आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अग्रसर है। हम बहुत आगे बढ़ चुके हैं । प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हम दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति अवश्य बनेगें , यह निश्चित है।

भारत की नीति हमेशा जियो औऱ जीने दो की सनातन संस्कृति की रही है । वह खुद भी अमन औऱ चैन से जीना चाहता है और दुनिया को भी चैन से जीना देना चाहता है। भारत चहाता है पूरी दुनिया मे सद्द्भावना का माहौल हो। विश्व का कल्याण भारत का मूल मंत्र है । भारत का दर्शन वासुदैवकुटुंकम्म का है । भारतीय संस्कृति पूरे विश्व को एक परिवार की तरह मानती आई है। भारत तो चहाता है युद्ध शीघ्र समाप्त हो और शांति का म माहौल कायम हो।

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