-कमलेश भारतीय

हरियाणा में 48 शहरी स्थानीय निकाय चुनावों के अप्रैल के अंत में होने की घोषणा के साथ ही हरियाणा सरकार को होश आई और पांच प्रतिशत विकास शुल्क के आदेश वापिस ले लिये । ये आदेश सुखद हैं लेकिन यदि चुनावों की घोषणा न होती तो यह शुल्क लागू होकर रहता । वैसे विपक्ष ने इसका तुरंत संज्ञान लिया और विपक्षी दल कांग्रेस के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस मामले को विधानसभा में उठाने की बात कही । इसको देखते हुए और चुनावों में अपने दल के होने वाले नुकसान के डर से तुरंत आदेश वापस लेने में ही भलाई समझी ।

वैसे केंद्र में भाजपा सरकार ने भी यही किया जैसे ही पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव आए पेट्रोल , डीजल के दामों पर तुरंत ब्रेक लगा दिये नहीं तो इनके दाम ऐसे आते थे जैसे क्रिकेट मैच के स्कोर । इसी तरह तीन कृषि कानून भी बिना किसी वार्ता के एकदम वापिस लेने की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर दी । यह सब चुनावी फैसले तुरंत लिये गये । अब खबर आ रही है कि पेट्रोल व डीजल के दाम फिर बढ़ने के आसार हैं यानी चुनाव खत्म और घोषणाएं वापिस यानी बैक गेयर लगाया जायेगा ।

चुनाव और घोषणाओं का चोली दामन का साथ है । घोषणाओं को लुभावन वादे भी कह सकते हैं । सबसे लुभावना वादा था -अच्छे दिन आने वाले हैं और कसम ऊपर वाले की अच्छे दिनों का इंतज़ार करते करते आंखें थक गयीं । अच्छे दिन तो आए नहीं और जनता ने कहा कि हमारे पुराने दिन ही लौटा दीजिए , साहब । कोरोना ने भी सिखाया कि अस्पतालों का निर्माण जरूरी है न कि भव्य मूर्तियों का । दिल्ली में आप पार्टी के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दूसरे राज्यों में जाकर शिक्षा व स्वास्थ्य को ही अपना एजेंडा बता रहे हैं । शिक्षा और स्वास्थ्य सबसे बड़ी प्राथमिकताएं होनी चाहिएं न कि भव्य मूर्तियों का निर्माण । उत्तर प्रदेश में बसपा प्रमुख मायावती ने भी पार्कों में अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियां लगवाईं और जनता के पैसे को पानी की तरह बहाया और फिर जनता ने मायावती को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया । यही है राइट च्वाइस बेबी ।

चुनावों पर करोड़ों करोड़ों रुपये लगा देने पर जनता पूछती है कि विकास के छोटे छोटे काम के लिए बजट न होने का रोना रोने वाले नेताओ आप यही पैसा विकास पर खर्च क्यों नहीं करते ? यदि ऐसा करें तो विकास शुल्क लगाने की नौबत ही न आए । ऐन चुनावों से पहले बड़ी बड़ी विकास योजनाएं पहले याद क्यों नहीं आतीं ? हमेशा हर पार्टी सत्ता में रहते समय पर योजनाएं क्यों नहीं बनातीं ? रबा खैर करे ,,,जो भी हो विकास शुल्क से एक बार तो बच निकले ,,,
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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