मुख्यमंत्री ने कहा था कि हरियाणा इंजीनियरिंग वक्र्स पोर्टल पर ही होंगे टेंडर
एक ही वाहन अलग-अलग जगह पर किराये पर
निगम में मर्जी से शर्तें बनाते हैं अधिकारी टेंडर देने के लिएविधानसभा विशेष निगरानी कमेटी के चेयरमैन सुधीर सिंगला ने भी कहा था— अधिकारी विधायकों की नहीं मानते

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम नगर निगम सदा ही भ्रष्टाचार के लिए चर्चा में बना रहता है। यहां कुछ भी हो जाता है, पकड़ा भी जाता है, इंक्वायरी भी हो जाती है और फिर आदमी बरी हो जाता है। हमारी ही कुछ निगम के लोगों से चर्चा हुई तो उनका कहना था कि पंडित जी 70 साल के हो गए, अभी भी नहीं समझे। अरे, रिश्वत देकर लगे थे, रिश्वत लेते पकड़े गए और रिश्वत देकर ही छूट गए, बचा क्या? क्यों परेशान होते हो, आराम करो। तो उन बातों से दिमाग की खिड़कियां कुछ खुलने लगीं कि चर्चाएं ठीक ही हैं।

वर्तमान की बात करें तो मुख्यमंत्री ने कहा था कि 9 तारीख के बाद सब टेंडर पोर्टल पर लगेंगे। उसके बाद 10 और 11 तारीख दोनों दिन बिना पोर्टल के अर्थात पुरानी वेबसाइट पर टेंडर लगाए गए। यह गुरुग्राम ही नहीं मानेसर में भी लगाए गए। अब और बात करें, रात को गए थे मुख्यमंत्री जी निगम और जीएमडीए की स्वाइपिंग मशीनों की जांच करने गए थे। अब पता नहीं वह क्या जांच करके आए, वह तो कोई विज्ञप्ति उन्होंने भिजवाई नहीं लेकिन यह जरूर पता चला है कि वे मशीनें नाम को ही चलती हैं। और कुछ सड़कों पर जहां वह चलती हुई बताते हैं, वहां तो मशीनों की ब्रश सड़क तक पहुंचती भी नहीं है। जानें कैसे-कैसे करते हैं? इनका खर्चा भी करोड़ों में बताते हैं। इससे पूर्व भी सफाई की 150 करोड़ की पेमेंट के बारे में जांच हो रही है लेकिन जांच वही अधिकारी कर रहे हैं, जिन्होंने वह पेमेंट की है।

अब इंजीनियरिंग विंग की बात देख लो, पहले तो इंजीनियरों में सब अपने अधिकारियों के चहेते बनते हैं और अधिकारियों के चहेते बनकर अपने चहेते ठेकेदारों को काम देते हैं। काम देते वक्त शर्तें टेंडर में इस प्रकार की लगा देते हैं कि वह उनके पसंद के आदमी को सूट करें। अर्थात उनकी पसंद का ठेकेदार ही पूरी कर पाए। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि अपनी मर्जी से ही सब नियम-कायदों को ताक पर रखकर टेंडर अलॉट किए जाते हैं, आवश्यकतानुसार शर्तें लगा दी जाती हैं और आवश्यकतानुसार हटा भी दी जाती हैं। यही है डिजीटल इंडिया।

अब कहने को तो बहुत है। कुछ ठेकों की तो ऐसा सुनने में आया है कि उसके 10 गुणा तक रेट दे दिए जाते हैं और कुछ ठेके ऐसे दे दिए जाते हैं, जहां काम पहले ही हुआ होता है। कुछ पेमेंट ऐसी भी कर देते हैं, जहां काम हुआ ही नहीं। यहां तक कि अधिकारी पार्षदों के फर्जी दस्तखत करके पेमेंट करा लेते हैं, शिकायत भी हो जाती हैं। अधिकांश तो इस किस्म की बातें मेल-मिलाप से या यूं कहें बंदरबांट से निपटा ली जाती हैं, जनता के सामने नहीं आतीं लेकिन कभी-कभी जब बंदरबांट में झगड़ा पड़ जाता है तो कहीं किसी तरह से वे बातें बाहर आ जाती हैं और उन पर भी विभागीय जांच के नाम पर झाड़ू फेर दी जाती है। यही है हमारे मुख्यमंत्री का भ्रष्टाचार मुक्त गुरुग्राम।

अब अकेले मुख्यमंत्री को क्या कहें। यहां के सांसद भी हैं, जिन्होंने निगम के मेयर बना रखे हैं, विधायक भी हैं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ भी यहीं निवास करते हैं, भाजपा संगठन के भी रोज नए-नए प्रकोष्ठ बनाने के समाचार आते हैं। आम भाजपाई को भी यह नहीं पता कि कितने प्रकोष्ठ हैं और कितने बनेंगे। सबका कहना है कि वह प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार मुक्त देश और प्रदेश के लिए काम कर रहे हैं। और जनता का सुख-दुख हमारे लिए सर्वोपरि है। अब या जनता ही सोचे कि इनमें कौन कितना सजग है।

बातें तो और बहुत है कहने के लिए कहेंगे आप लोगों की राय जानकर

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