आयुर्वेदिक  से असाध्य से असाध्य रोगों का उपचार संभव: वैद्य सुखबीर

पृथ्वी पर उपचार की एक मात्र आयुर्वेद सबसे पुरानी और स्वीकार्य पद्धति.

महाभारत और रामायण काल में भी आयुर्वेद से ही किये जाते थे उपचार

देश, दुनिया भर के पहाड़ो-जंगलों में आयुर्वेद का खजाना है मौजूद

एलोपैथी के साइड इफेक्ट, लेकिन आयुर्वेद में साइड इफेक्ट नहीं

फतह सिंह उजाला

पाटौदी/गुरुग्राम । पृथ्वी पर प्रकृति में आयुर्वेद, जड़ी-बूटी का अनमोल खजाना मौजूद है।  आयुर्वेद का यह खजाना पहाड़ों और जंगलों में आज भी उपलब्ध है, जरूरत इस बात की है कि आयुर्वेद उपचार के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली जड़ी बूटियों जंगली पौधों इत्यादि को कैसे और किस प्रकार से पहचाना जाए ? आयुर्वेद में अथवा आयुर्वेद के उपचार के द्वारा असाध्य से असाध्य रोगों का उपचार संभव है। जब पृथ्वी पर एलोपैथी के द्वारा इलाज संभव नहीं था, उस वक्त हमारे ऋषि-मुनियों , तपस्वीयों, वैद्यो के द्वारा जंगली जड़ी बूटियों के द्वारा गंभीर से गंभीर रोगों का उपचार किया जाता था । यह पद्धति आज भी असाध्य रोग से पीड़ित रोगियों के लिए जीवन प्रदान करने में सक्षम है । यह बीते करीब 4 दशक से अधिक समय से आयुर्वेद के माध्यम से उपचार कर रहे विख्यात वैद्य सुखबीर गौतम का कहना है।  

आयुर्वेद और देसी जड़ी बूटियों के अलावा जंगली औषधीय पेड़ पौधों के गुण को पहचानने वाले वैद्य सुखबीर गौतम ने बताया कि कैंसर, थायराइड, लीवर, मिर्गी, किडनी, माइग्रेन , स्पाइनल प्रॉब्लम , बच्चेदानी की या अन्य रसौली, साइनस , ह्रदय रोग, अपेंडिक्स , घुटनों के जोड़, शरीर के जोड़ों में दर्द, सर्वाइकल, हार्ट अटैक जैसे अनेक रोगों अथवा बीमारियों का आयुर्वेद के माध्यम से उपचार संभव है । उन्होंने कहा वह बीते करीब 45 वर्ष से अनगिनत ऐसे गंभीर रोगियों का आयुर्वेद के माध्यम से उपचार कर चुके हैं, जिन रोगियों का उपचार एलोपैथी या फिर ऑपरेशन से भी संभव नहीं हो सका । वैद्य सुखबीर गौतम के मुताबिक पटौदी क्षेत्र में ही बीते करीब 2 माह के दौरान 1 दर्जन से अधिक ऐसे पुरुष और महिला रोगियों का आयुर्वेद अथवा देसी दवाइयों से उपचार कर चुके हैं जिनके गुर्दे और लीवर पूरी तरह से नकारा हो चुके थे तथा ऐसे लोगों ने अथवा रोगियों ने अपना जिंदा रहने तक की उम्मीद को भी छोड़ दिया था।

उन्होंने बताया की भारत में आयुर्वेद पर लिखित अनेक पांडुलिपियां विभिन्न राज्यों में मौजूद हैं , इस प्रकार की पांडुलिपियों में विभिन्न रोगों का देसी जड़ी बूटियों जिन्हें की आयुर्वेद की भी संज्ञा दी गई है के माध्यम से उपचार संभव है । आज भी हमारे आसपास अनेक ऐसे औषधीय गुणों से भरपूर पौधे मौजूद हैं, लेकिन ऐसे पौधों की पहचान करने वाले अब बहुत कम लोग रह गए हैं । उन्होंने कहा सरकारी स्तर पर आयुष विभाग सक्रिय है , लेकिन सवाल यह है कि ऐसे विभाग में कितने लोग मौजूद हैं जिनको की प्रकृति में मौजूद औषधीय पौधों और उनके गुणों के विषय में ज्ञान और पहचान है । उन्होंने बताया कि अक्सर यह देखा गया है कि लोगों के हाथ पांव और गर्दन में लगातार कंपन होता रहता है । ऐसे लोग अथवा बीमारी का एलोपैथी में कोई उपचार नहीं है । इस प्रकार की बीमारी अथवा रोग उपचार के लिए औषधीय पौधों की खोज के दौरान भ्रमण पर निकले तो जंगलों में मौजूद 102 वर्षीय बुजुर्ग ने कुछ खास किस्म के औषधीय पौधों के विषय में जानकारी देते हुए बताया जिसकी बदौलत शरीर के विभिन्न अंगों के कंपन का इलाज आज सफलतापूर्वक किया जा रहा है । उन्होंने बताया अपनी युवा अवस्था के दौरान दिल्ली ग्रेटर कैलाश में रहकर आयुर्वेद की पुस्तकों को पढ़ा और उनका अध्ययन कर मनन किया । आज भी उनके साथ औसतन 10 किलो ऐसी पुस्तकें मौजूद रहती हैं , जिनमें केवल आयुर्वेद उपचार पद्धति और इनसे संबंधित पेड़ पौधों जड़ी बूटियों के विषय में ही जानकारी लिखी है ।

मौजूदा समय में वैद्य सुखबीर गौतम पटौदी क्षेत्र के सबसे बड़े गांव बोहड़ाकला में स्थित हनुमान मंदिर में प्रति मंगलवार को निशुल्क और निस्वार्थ भाव से ऐसे रोगियों का उपचार करने के लिए पहुंच रहे हैं, जिनका एलोपैथी से उपचार संभव नहीं हो पा रहा है । उन्होंने बताया एक पुलिस अधिकारी के कहने पर यहां पहुंचा था, हनुमान मंदिर परिसर में गौशाला को देखकर और बेबस लाचार अपाहिज गोधन की हालत देखी तो मन बेहद विचलित हो गया । उन्होंने कहा इस पृथ्वी पर गोधन की सेवा से बढ़कर कोई सेवा और पुण्य का कार्य नहीं हो सकता है । उन्होंने कहा कैंसर विभिन्न प्रकार का होता है , यदि एक बार कैंसर के रोगी ने बायोप्सी , कीमो, रेडिएशन से उपचार आरंभ करवा दिया तो फिर पूरी तरह से स्वस्थ होना अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती बन जाता है । वैद्य सुखबीर गौतम के मुताबिक कैंसर का आरंभिक स्टेज पर पता लग जाए तो किसी भी प्रकार का कैंसर हो, आयुर्वेद में ऐसी ऐसी औषधियां उपलब्ध हैं कैंसर को आरंभिक स्तर पर ही समाप्त किया जा सकता है ।

उन्होंने बताया कर्नाटक गुजरात शिमला सहित अन्य राज्यों के जंगलों में अनमोल आयुर्वेद का खजाना उपलब्ध है । एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा की जितनी भी आयुर्वेद की औषधियां है , उनमें से अपने आप तैयार की गई औषधियों के माध्यम से ही असाध्य रोगियों का उपचार करते चले आ रहे हैं। उन्होंने दावा किया सर्वाइकल और हार्ट अटैक की शिकायत होते ही यदि पीड़ित अथवा रोगी उनके संपर्क में आए तो कुछ ही देर के समय के उपचार के बाद ऐसी बीमारी से हमेशा के लिए छुटकारा दिलवा सकते हैं। उन्होंने बताया की प्रभाजी आयुर्वेद संस्थान के नाम से संस्था बनाकर वह मुख्य स्वयं जरूरत पड़ने पर अपने सहयोगियों के सहयोग से विभिन्न स्थानों पर उपरोक्त तमाम असाध्य रोगों का निस्वार्थ भाव से उपचार करते आ रहे हैं ं।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहां की बीते कुछ समय से वह गोधन पर भी रिसर्च कर रहे हैं , क्योंकि एक गौशाला में जाने पर जब उन्होंने देखा कि अचानक वहां 2 दर्जन से अधिक गोधन की मौत हो चुकी है इसके बाद से उन्होंने इस बात पर रिसर्च आरंभ कर दी कि आखिर ऐसा क्या कारण अथवा बीमारी रही जिसकी वजह से गोधन की मौत हो गई । उन्होंने बताया कुछ आयुर्वेदिक औषधियां विदेश भ्रमण के दौरान भी उनकी जानकारी में आई , जिनके विषय में केवल उन्होंने भारतीय प्राचीन पुस्तकों अथवा ग्रंथों में ही पड़ा और सुना था । इस प्रकार की कुछ औषधियां इंडोनेशिया और श्रीलंका में उपलब्ध है , जहां से इन औषधियों को वह आयुर्वेदिक उपचार के लिए अपने साथ लेकर आए । उन्होंने बताया कि आज भी देश के बड़े से बड़े प्रतिष्ठित अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टर मित्र जरूरत पड़ने पर ऐसे रोगियों के उपचार के लिए उन्हें बुलाते हैं , जिन रोगियों का उपचार एलोपैथी या फिर ऑपरेशन से भी होने की गारंटी बाकी नहीं बच जाती है।

उन्होंने कहा यह सब कार्य वह निशुल्क कर रहे हैं और इस कार्य में जो आत्म संतोष के साथ साथ स्वस्थ होने वाले रोगी अथवा पीड़ित का आशीर्वाद अथवा दुआ मिलती है, उसका कोई मोल इस पृथ्वी पर संभव ही नहीं है । उन्होंने कहा जब तक सांस है तब तक इसी प्रकार से उनके पास जो भी आयुर्वेद का खजाना है , उसकी बदौलत तमाम असाध्य रोगों के पीड़ितों का उपचार करते रहेंगे।

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