भारतीय ज्योतिष में हर घटना को पूर्ण वैज्ञानिक रूप से निरूपित करने की कला.
माताएं इसी दिन अपने बच्चों को अक्षर ज्ञान आरंभ भी कराना शुभप्रद समझती.
आज ही के दिन पृथ्वी की अग्नि, सृजन की तरफ अपनी दिशा करती

फतह सिंह उजाला

गुरूग्राम। आज के ही दिन सृष्टि के सबसे बड़े वैज्ञानिक के रूप में जाने जाने वाले ब्रह्मदेव ने मनुष्य के कल्याण हेतु बुद्धि, ज्ञान विवेक की जननी माता सरस्वती का प्राकट्य किया था। मनुष्य रूप में स्वयं की पूर्णता के परम उद्देश्य का साधन मात्र और एक मात्र भगवती सरस्वती के पूजन का ही है। इसलिए, आज के ही दिन माताएं अपने बच्चों को अक्षर ज्ञान आरंभ भी कराना शुभप्रद समझती हैं। आज ही के दिन पृथ्वी की अग्नि, सृजन की तरफ अपनी दिशा करती है। जिसके कारण पृथ्वी पर समस्त पेड़ पौधे फूल मनुष्य आदि गत शरद ऋतु में मंद पड़े़ अपने आंतरिक अग्नि को प्रज्जवलित कर नये सृजन का मार्ग प्रशस्त करते हैं। बसंत पंचमी के पर्व पर त्रिवेणी संगम में स्नान के उपरांत श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज ने माँ गंगा का पूजन किया । पूज्य शंकराचार्य  महाराज ने मां गंगा से राष्ट्र की समृद्धि, विश्व मांगल्य, दुष्टों के दमन तथा मानवता के संरक्षण एवम सम्बर्धन की प्रार्थना भी की।

शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा स्वयं के स्वभाव प्रकृति एवं उद्देश्य के अनुरूप प्रत्येक चराचर अपने सृजन क्षमता का पूर्ण उपयोग करते हुए, जहां संपूर्ण पृथ्वी को हरी चादर में लपेटने का प्रयास करता है, वहीं पौधे रंगबिरंगे सृजन के मार्ग को अपनाकर संपूर्णता में प्रकृति को वास्तविक स्वरूप प्रदान करते हैं। इस रमणीय, कमनीय एवं आदर्श ऋतु में पूर्ण वर्ष शान्त रहने वाली कोयल भी अपने मधुर कंठ से प्रकृति का गुणगान करने लगती है । भारतीय ज्योतिष में प्रकृति में घटने वाली हर घटना को पूर्ण वैज्ञानिक रूप से निरूपित करने की अद्भुत कला है। मूल रूप से शरद ऋतु के ठंड से शीतल हुई पृथ्वी की अग्नि ज्वाला, मनुष्य के अंतःकरण की अग्नि एवं सूर्य देव के अग्नि के संतुलन का यह काल होता है। यह मात्र वह समय है (बसंत ऋतु) जहां प्रकृति पूर्ण दो मास तक वातावरण को प्राकृतिक रूप से वातानुकूलित बनाकर संपूर्ण जीवों को जीने का मार्ग प्रदान करती है। बसंत पंचमी के पावन पर्व पर शंकराचार्य महाराज के साथ स्वामी बृजभूषणानन्द महाराज, स्वामी प्रपन्नाचार्य महाराज, दिनेश द्विवेदी, शशांक धर द्विवेदी आदि ने भी संगम में स्नान किया।

मठ-मन्दिर तत्काल सरकारी नियंत्रण से मुक्त हों
तत्पश्चात त्रिवेणी मार्ग स्थित अपने शिविर के पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रवचन सत्र में शंकराचार्य नरेंद्रानंद महाराज ने श्रद्धालूओं के बीच कहा कि सरकार मठ-मन्दिरों को तत्काल सरकारी नियंत्रण से मुक्त करे । सनातनी श्रद्धालुओं द्वारा मन्दिरों में अर्पित धन का सरकार दुरुपयोग कर रही है । मन्दिरों में हिन्दू श्रद्धालुओं द्वारा अर्पित धन का सदुपयोग सनातन धर्म के संरक्षण एवम् सम्बर्धन में किया जाना चाहिए। शंकराचार्य महाराज ने कहा कि सरकार तत्काल 1958 के मठ-मन्दिरों के अधिग्रहण एक्ट कानून को समाप्त करे, जिसके द्वारा मठ-मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में लेने सम्बन्धित प्राविधान है । इसके साथ ही साथ धारा 29 और 30 को समाप्त कर शिक्षण संस्थानों में सनातन धर्म के धर्मग्रंथों का पठन-पाठन अनिवार्य किया जाय, जिससे समग्र विश्व में शान्ति एवम् सौहार्द का वातावरण निर्मित हो सके । मात्र सनातन धर्म ही “ सर्वे भवन्तु सुखिनरू सर्वे सन्तु निरामया की कामना करता है । सनातन धर्म की मजबूती से ही विश्व मांगल्य कर विश्व बन्धुत्व की भावना स्थापित कर सकती है। सनातन धर्म का ही उद्देश्य “ कृण्वन्तो विश्वमार्यम है ।

भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करें
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द ने कहा कि अब भारत सरकार तत्काल संवैधानिक रूप से भारत को “सनातन वैदिक हिन्दू राष्ट्र घोषित करे । सन्तों का चिन्तन सदैव राष्ट्र के हित के लिए ही होता है, देश के लिए सन्तों के त्याग और बलिदान की एक गौरवशाली परम्परा रही है । प्रयागराज की पावन भूमि से सन्तों के चिन्तन एवम् मार्गदर्शन ने कई अनेकों स्वर्णिम इतिहास की रचना की है । इस मौके पर ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती जी महाराज, रसिक पीठाधीश्वर स्वामी जनमेजय शरण महाराज, जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी घनश्यामाचार्य जी महाराज, स्वामी बृजभूषणानन्द महाराज सहित अनेक सन्त एवम् श्रद्धालु उपस्थित मौजूद रहे।

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