शहीद कपिल की माता बोली…..जिस जवान की जान बचाई वह सेवानिवृत्त होकर घर लौट आया

सैन्य अधिकारी के रूप में बेटे कपिल कुंडू ने साथी की जान बचाई.
अपने जीते जी कोई भी मां बेटे को किस प्रकार से भुला सकती है

फतह सिंह उजाला
पटौदी । 
किसी भी माता-पिता के लिए वह पल और दिन बहुत भारी और पहाड़ जैसा होता है , जब यह पता चले कि उनका इकलौता जवान बेटा अब लौटकर नहीं आ सकेगा । लेकिन धन्य है वह जननी और माता जोकि अपने जिगर और कलेजे  के टुकड़े बेटे की शहादत के बाद भी अपने दृढ़ निश्चय और जीवट का परिचय देते हुए युवा वर्ग को विभिन्न माध्यमों से प्रोत्साहित करने में रात-दिन एक किए हुए हैं ।

शुक्रवार को युवा शहीद बेटे कैप्टन कपिल कुंडू के शहादत दिवस के मौके पर बातचीत के दौरान भावुक होते हुए और नेत्रों में आंसुओं के सैलाब को रोककर बात करते श्रीमति अनिता कूंडू ने कहा की बेशक से मेरा बेटा आज मेरे पास नहीं है । लेकिन बेटे कपिल कुंडू के साथ जो अन्य सैनिक मोर्चे पर थे , उनमें से एक जवान की जान बचाने के लिए बेटे कपिल कुंडू ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की। मुझे संतोष है कि आज वह जवान फौज से सेवानिवृत्त होकर अपने घर परिवार के बीच पहुंच चुका है । लेकिन बेटा कपिल कुंडू अपना सर्वाेच्च बलिदान देकर हमेशा के लिए जीवित ही रहेगा । शहीद कपिल कुंडू की माता श्रीमती अनीता कुंडू ने बताया कि कपिल को पढ़ाई लिखाई का बहुत शौक था और वह हमेशा पढ़ाई के लिए ही बातें किया करता था ।

उसके इसी सपने को पूरा करने के लिए यहां शहीद स्मारक पर पुस्तकालय अभी बनाया गया है। इतना ही नहीं बेटे कपिल कुंडू का जो सपना था उसी सपने को साकार करते हुए शहादत दिवस के मौके पर स्कूली छात्रों के बीच विभिन्न प्रकार की ऑनलाइन प्रतियोगिताएं भी करवाई गई। जिससे कि आज के युवा वर्ग और छात्रों में शिक्षा के प्रति जागरूकता और लगन बनी रहे । एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बीते 4 वर्ष से बेटे की शहादत पर बहुत कुछ बोल चुकी , अब कहने के लिए कुछ शब्द बाकी नहीं है। लेकिन अपने मन की पीड़ा को जाहिर करते हुए उन्होंने इतना अवश्य कहा कि शहीद दिवस के मौके पर राजनीतिक लोग आते हैं , वादे करते हैं, भरोसा भी देते हैं, लेकिन जब काम के लिए इन्हीं नेताओं के पास जाने का मौका मिलता है तो उसका अनुभव कुछ अलग ही मिलता है । जो वादे किए गए उन पर काम तो किया जा रहा है , लेकिन जिस तेजी से और बिना किसी परेशानी के काम पूरे होने चाहिए थे उस दिशा में वायदे करने वाले इतनी अधिक गंभीर नहीं दिखाई देते। जितने धीर और अधीर आज जैसे आयोजन के मौके पर अक्सर दिखाई देते हैं।

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