श्मशान की अग्नि और राख को नहीं मिलता सम्मान.
यज्ञ की अग्नि और राख होती है बहुत ही पवित्र.
भारत देश और इसके प्रांतों में अलग-अलग त्योहार.
लोहड़ी का पर्व समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक

फतह सिंह उजाला
पटौदी ।
 धर्माचार्य, वेदों के ममर्ज्ञ, समाज सुधारक और चिंतक महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने कहां है कि अग्नि एक ही होती है, लेकिन इसके स्वरूप अनेक होते हैं । जहां जिस स्थान पर अग्नि प्रज्वलित की जाती है, उस अग्नि को उसी दृष्टिकोण और मानवीय भावनाओं से देखते हुए आकलन सहित अनुसरण भी किया जाता है । यह बात उन्होंने गुरुवार देर से सायं सुख समृद्धि हर्षाेल्लास के पर्व लोहड़ी के मौके पर आश्रम हरी मंदिर पटौदी परिसर में लोहड़ी पूजन के मौजूद श्रद्धालुओं और अपने अनुयायियों के बीच कहीं। इससे पहले विधि विधान और मंत्रोच्चारण के बीच लोहड़ी में अपने हाथों से अग्नि प्रज्वलित की।

इस मौके पर महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने कहा यज्ञ, वन, समुंदर, चूल्हे, शमशान , वन अन्य स्थानों पर अग्नि जलती है अथवा जलाई भी जाती है । इन सभी स्थानों की अग्नि एक जैसी होती है , लेकिन उसके स्वरूप सहित उपयोगिता भिन्न-भिन्न होती है । उन्होंने कहा पानी में भी आग होती है , इस अग्नि को बड़वानल-दावानल कहा गया है । पेट की अग्नि को जेठाग्नि कहा गया है। उन्होंने कहा लोहड़ी का पर्व वास्तव में पंजाब का और पंजाबी संस्कृति का एक ऐसा त्योहार अथवा पर्व है , जो कि सुख -समृद्धि तथा मस्ती वाला भी माना जाता है। लोहड़ी को लेकर पंजाबी में विभिन्न प्रकार के हंसी ठिठोली और प्रेरणादाई गीत भी मौजूद हैं । भारत देश त्योहारों का देश है और प्रत्येक प्रदेश की अपनी एक अलग संस्कृति भी होती है । प्रदेश में भी विभिन्न जिलों में अलग-अलग पर और संस्कृतियों देखने के लिए मिलती हैं।

भारत देश में आस्तिक, आध्यात्मिक, धार्मिक सभी प्रवृत्ति के निवासी रहते हैं । जो कि अपनी अपनी संस्कृति के मुताबिक त्योहारों को मनाते आ रहे हैं । अग्नि के विषय में महामंडलेश्वर धर्मदेव ने कहा की चूल्हा में अग्नि जलती है तो भोजन पक कर तैयार किया जाता है। यज्ञ में अग्नि जलती है तो देवी देवताओं का आह्वान करते हुए सभी के मंगल की कामना की जाती है, वहीं पर्यावरण भी शुद्ध होता है। लेकिन शमशान की अग्नि को सम्मान से नहीं देखा जाता , जब कि इसको भी पवित्र माना गया है। इसके विपरीत यज्ञ की अग्नि और राख को पवित्र मानते हुए नमन कर माथे से भी लगाया जाता है । इसके विपरीत शमशान की अग्नि से बनी राख को कोई भी पवित्र नहीं मानता। उन्होंने कहा चूल्हा की अग्नि और राख भी पवित्र मानी गई है , चूल्हा की अग्नि से बनी राख से बर्तन इत्यादि भी साफ़ किए जाते हैं , यहां तक की दंत मंजन के तौर पर भी इस अग्नि की राख का इस्तेमाल किया जाता है । अंत में उन्होंने कहा लोहड़ी की अग्नि भी पवित्र ही होती है । यही कारण है कि इस पर्व के मौके पर अग्नि को नमन करते हुए श्रद्धा और उमंग साथ में त्योहार को मना कर श्रद्धा अनुसार मूंगफली, गजक, मिठाई इत्यादि का भी प्रसाद वितरित कर बड़े-बुजुर्गो का आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है । वास्तव में लोहड़ी पर एक तरह से परिवार को एकता के सूत्र में बांधे रखने का त्यौहार है , जब परिवार एकजुट रहेगा तो समाज में भी एकता बनी रहेगी। 

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